Sunday, October 10, 2010

यहाँ हम क्या कुछ कर रहे हैं ?


प्रोफ़ेसर आइन्स्टाइन कह रहे हैं :-------
ऐसे बहुत कम लोग हैं जो ........
* अपनी आँखों से देखते हैं और ------
* अपने ह्रदय से समझते हैं ॥

बीसवीं शताब्दी का एक महान वैज्ञानिक कुछ ऐसे बोल रहा है जैसे उपनिषद् का ऋषि बोल रहा हो ,
लेकीन यह सत्य है की .........
यहाँ कोई नहीं देखता , सब अंधे हैं और
सब झूठे हैं ॥
आप ज़रा दूर नहीं अपनें ही घर में देखना की क्या - क्या आप चला रहे हैं जैसे -------
[क] दादा पोते से झूठ बोल रहा है ......
[ख] दादी अपनें पोती से झूठ बोल रही है ......
बहू अपनी सास से झूठ बोल रही है ......
और सास अपने पति से झूठ बोल रही है , आखिर क्यों ....... ?
झूठ बोलनें का अभ्यास हो रहा है , बड़े - बूढ़े अपनी आगे आनें वाली पीढी को झूठे संसार में टिके रहनें
का अभ्यास करा कर तसल्ली करना चाहते हैं की उनकी औलाद सब से ऊपर का झूठा होगा ॥

परमात्मा जब सब को बना लिया तब सोचा की अब एक ऐसे जीवधारी को बनाते हैं जो .......
सीमा रहित बुद्धि वाला हो .......
जो भोग से मुझ तक की यात्रा करनें में सक्षम हो ......
जो ब्रह्माण्ड का नक्शा बना सके और ----
उसमें सफ़र कर सके , लेकीन .......
ऐसा जीव बना तो जरूर पर प्रभु को स्वयं निराकार होना पडा ------
वह , जो भोग से भगवान् तक ....
अज्ञान से ज्ञान तक ......
जन्म से मृत्यु तक ......
राग से वैराग्य तक के मार्ग पर चल सकता हो , मनुष्य है ,
लेकीन -----
मनुष्य क्या कर रहा है ......
क्या देख रहा है .......
क्या सुनता है ......क्या समझता है ,
इस बात पर -----
आप सोचना ॥

==== हम अपने आर्ग पर कांटे बिछा रहे हैं =======

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