एक भेड़ों का चरवाहा अपनें संस्मरण में लिखा है----------
मैं हर समय पहाड़ों पर अपनी भेड़ों के साथ रहा करता था और आये दिन साधुओं से मेरी मुलाकात हुआ करती थी , यह बात मेरे जवानी की है / मैं साधुओं से प्रायः पूछा करता , आप लोग यहाँ क्या करते हैं , मैं तो अपनी भेड़ों के खातिर यहाँ हूँ लेकिन आप लोग ? सभीं लोगों का प्रायः एक सा ही उत्तर होता , मैं परमात्मा को यहाँ खोजनें आया हूँ /
चरवाहा आगे लिखता है , एक दिन की बाते , मैं एक पहाडी पर एक भेद के बच्चे के साथ बैठा हुआ उस से कुछ बातें कर रहा था कि इतनें में एक साधू वहाँ आ पहुंचे और बोले , बेटा तुम किस से बातें कर रहा है ? मैं बोला , मेरे पास यह बच्चा है इस से बातें कर रहा हूँ / साधू महाराज वहीं बैठ गए और मुझ से बातें करें लगे / मैं उनसे कहा , महाराज मैं एक बात कहूँ आप नाराज तो नहीं होंगे ? साधु महाराज बोले , नहीं पूछ , नाराज क्या होना , तूं तो बच्चा है / मैं उनसे पूछा , मैं बहुत छोटा था तबसे इन पहाड़ों पर रह रहा हूँ अपनी भेड़ों के साथ लेकिन कभीं एक भी भेद मुझसे गुम न हुयी
आज तक / मुझे यह नहीं पता चल रहा कि यहाँ जितनें भी साधु हैं सबका परमात्मा खोया हुआ है और सभीं उसे खोज रहे हैं , क्यों आप लोगों का परमात्मा खो जाता है ? मुझसे यदि एक भी भेड गुम हो जाए तो मेरा पाप मुझे घर से निकाल देगा , मुझे लगता है आप सबके सब घर से नीकाले हुए लोग हैं और आप लोग परमात्मा को यहाँ खोज रहे हैं , हैं न ऎसी बात ? वह साधू महाराज हसने लगे और चल पड़े , आज मैं समझता हूँ कि मैं उस समय कितना भोला था //
लोग प्रभु को खोज रहे हैं
और
प्रभु ऐसे बंदे को तलाश रहाहै जिसमें भक्ति भाव ऊपर से बह रहा हो //
भक्त का प्रभु कभीं नहीं खोता,वह प्रभु में जीता है और प्रभु में मर ता है//
प्रभु भी खोज रहा है उस चरवाहे जैसे भोले लोगों को//
=======ओम्===============
2 comments:
खूबसूरत प्रस्तुति ||
बधाई ||
बहुत गहरी बात की चरवाहे ने....
बेहतरीन।
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