* संसार में कौन सुखी है और कौन दुखी ?
आप इसे अपनें बुद्धि -योगका बिषय बना सकते हैं । * बुद्धके ध्यानका मूल बिषय था दुःख की सत्यता और उन्हें सात साल लग गए दुःख को समझनें में ।
* ऐसे कितनें हो सकते हैं जो अपनें दुःखका कारण स्वयंको मानते हों ? ऐसा हजारों - लाखों में कोई एकाध मुश्किल से मिलेगा । ज्यादातर लोग अपनें दुःखका कारण दूसरों को बनाते हैं ।
* भोग - तत्त्वों की रस्सियाँ जितनी मजबूत होती है ,वह ब्यक्ति उतना ही गहरा दुखी रहता है ।
* कामना ,मोह ,राग - द्वेष , क्रोध , लोभ और अहंकार - ये सात भोगके मूल तत्त्व हैं ।
* भोगकी रस्सियों से बधा ब्यक्ति पूरी तरह से न तो भोग से जुड़ पाता है और न योगकी ओर रुख कर पाता है ; बिचारा ! भोग और भगवानके मध्य एक पेंडुलम सा लटकता रहता है ।
* दुःख से भागो नहीं , दुःखको समझो ।
* दुःख की दवा जबतक बाहर खोजते रहोगे , दुखी रहोगे ।
* आपके दुःखका वैद्य कोई और नहीं , आप स्वयं हैं , इस बात को समझो ।
~~ ॐ ~~
Sunday, September 7, 2014
यह क्या है , उनका दुःख मेरे लिए सुख है ?
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vicharniya
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