जरा ! कोई जल्दी
नहीं , आराम से अकेले एकांत में बैठ कर इस बिषय पर मनन करें , क्या पता यह आपका मनन आपको कुछ ऐसी औषधि दे सके जो आपको हर पलकी भागा दौड़ी के रहस्यको स्पष्ट कर सके तथा शांति - रसका आनंद दिला सके ।
● आपकी तनहाई आपको न उधर जानें दे रही न इधर रुकने दे
रही , आखिर आप इस तनहाई से डरते क्यों हैं ?
क्यों , इसकी हवा लगते ही आपके शरीर में कम्पन पैदा होने लगता है ? आप इसकी एक झलक पाते ही क्यों सिकुड़नें लगते हैं ?
क्या है , आपकी मजबूरी ?
जब आप शांत मन में इन प्रश्नोंके उत्तरको खोजेंगे तब आप उस आयाम में पहुँच सकते हैं जहाँ आपका मन - बुद्धि तंत्र प्रश्न रहित परम स्थिरता में आपको परम शून्यताका रस पिला सकते हैं और उसी रस की खोज आपकी तनहाईका कारण भी है ।
● आज आप जिस जाल में उलझे हुए हैं , उसका निर्माण कर्ता भी तो आप ही हैं , क्या निर्माणके समय यह बात नहीं समझ में आई थी कि यह जाल एक दिन आपके गले की फास बन जायेगी ? अभीं भी आप इस जालको समझ सकते हैं और जिस घडी इसकी समझ की उर्जा आप में प्रवाहित होनें लगेगी , आप देखनें लगेगें कि यह जाल जो आपको उलझा रखी है वह मात्र एक आपका
भ्रम था ।
● है न यह कमाल का बिषय कि काम ,कामना ,
क्रोध , लोभ , मोह ,भय , आलस्य और अहँकार रहित जीवनका होना हमारी कल्पना से बाहरका बिषय
है ? हम यह मान बैठे हैं कि इन तत्त्वोंके बिना जीवनमें कोई रस नहीं और बात भी सही दिखती है । लेकिन क्या ऐसा संभव नहीं कि ऊपर बताये कर्म - तत्त्वों या भोग -तत्त्वों की गुलामी के बिना जीवन हो ? जीवन में कर्म तत्त्व तो रहेंगे ही लेकिन आपको उनका गुलाम नहीं बनाना है , वे आपके इशारे पर सक्रीय होते रहें , कोशिश करके देखो तो सही ।
* प्रभु श्री कृष्ण गीतामें अपनें लगभग 575 श्लोकोंके माध्यम से अर्जुनको क्या ज्ञान देते हैं ?
* उनके ज्ञानका केंद्र यही तो है कि यह युद्ध एक अवसर है जिसमें तुम कर्म -तत्त्वों की गुलामी को समझ कर उनका द्रष्टा बन कर युद्ध करते -करते उस आयाम नें पहुँच सकते हो , जिस आयाम में मैं हूँ और इस प्रकार तुम मुझ जैसा बन सकते हो ।
<> भोग -तत्त्व जीवनमें कांटे नहीं हैं , ये माध्यम हैं जो परम सत्य तक पहुँचा सकते हैं ।
# अर्जुन और प्रभु कृष्ण में क्या अंतर है ?
* प्रभु कर्म तत्त्वों के द्रष्टा हैं
* और *
* अर्जुन उनका गुलाम *
~~ ॐ ~~
1 comment:
सुन्दर प्रस्तुति
स्वयं शून्य
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