> और <
<> हर मनुष्य तीर्थंक <>
* इस बातको समझनें में हमारा तो सारा जीवन गुजर सा गया लेकिन हो सकता है आप इसे चंद घंटों में ध्यानके माध्यम से समझ सकें ।
* मैं जब अपनें जीवनको देखता हूँ तो स्वयंको एक वेहिकल (vehicle )जैसा पाता हूँ ।
* वह जो इस वेहिकल को ठीक से अपनाया , वह एक दिन पहुँच गया अपनें गन्तब्य पर और जो इसे ठीक से नहीं अपनाया ,वह क्या ख़ाक पहुँचेगा ।
* आज तक मुझे तीन लोग अपनाए और आज तीनों प्रभुके आशीर्वाद से अपनें -अपनें गन्तब्य पर पहुँच चुके हैं ।
* अकेलापन भी मजे का आयाम है जहाँ कुछ नहीं होता ,उनके लिए जो बाहर से देखते हैं और जो अकेलेपनसे मैत्री साध लिया
है ,उसे उसके अकेलेपन में सब कुछ दिखता रहता है ।
● अकेलेपनकी मौनता एक ओंकारसे मिला सकती है।
~~ ॐ ~~
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