क्या यह पृथ्वी मनुष्यों की ही है ?
क्या यहाँ पशु , पंक्षी ,अन्य जीव - जंतु एवं पेड़ - पौधों के लिए कोई स्थान नहीं ?
क्या यहाँ जल - चर के लिए कोई जगह नहीं ?
क्या यहाँ पहाड़ एवं दरियां आजादी के साथ नहीं रह सकते ?
मनुष्य क्या कर रहा है -------
थोड़ी सी जगह में .......
मगरमच्छ , मछलियाँ , घड़ियाल , शेर , चीता , भालू , सब को बसा रखा है और अपनें लिए .....
गगन चुम्बी इमारते एक के बाद एक बनाता जा रहा है और फिर भी बिचारा बेचैन है ।
मनुष्य अपनें घरों को सजानें के लिए ........
बहुमूल्य पेड़ों की नश्ल तक को समाप्त कर डाला -----
मार्बल जहां हैं जैसे राजस्थान के इलाके , वहाँ जहां पहाड़ हुआ करते थे आज झीलें बनती जा रही हैं ....
भू खनन से पृथ्वी की सतह प्रोफाइल बदल रही है फल स्वरुप .....
नदियों एवं नालों के मार्ग बदलते जा रहे हैं और .......
इनका दूर गामी बहुत खराब परिणाम होनें वाला है ।
आज बच्चे कम पैदाकरनें पर जोर है पर ....
प्रति ब्यक्ति अधिक स्कोइर फीट रहनें के लिए जगह की तलाश सब को है ।
शहर अपना दामन फैला रहे हैं ......
गाव धीरे - धीरे सिकुड़ते जा रहे हैं .....
मनुष्य की लम्बाई घट रही है पर चौड़ाई बढ़ रही है ।
समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है
और मनुष्य अपनें मकानों की उचाइयां बढ़ा रहा है ।
मनुष्य सब को मारनें का पूरा - पूरा इंतजाम करता जा रहा है
और ......
स्वयं के लिए अमरत्व की दवा तलाश रहा है ।
प्रकृति भी कम नहीं .......
आये दिन अपना नज़ारा दिखाए बिना उसे कहाँ चैन लेकीन ......
मनुष्य अपनी ज्ञानेन्द्रियों को बंद करके रहनें की अच्छी प्रेक्टिस कर रखी है ।
एक बात ====== सोचना ======
जब भी तुशामी की खबर आती है तब साथ यह भी खबर होती है की .......
इतनें हजार लोग समाप्त हो गए लेकीन ......
ऎसी कोई सूचना नहीं होती की ......
इतने पशु - पंक्षी समाप्त हो गए ,
ऐसा क्यों होता है ?
प्रकृति का कहर उन पर पड़ता है
जो ......
प्रकृति में रहते हुए भी स्वयं को उस से दूर रखते हैं ॥
प्रकृति के साथ रहनें वालों को
तुशामी जैसी घटनाएँ प्रभावित नहीं करती ॥
===== ॐ =====
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