सब कुछ करनें के बाद भी ….
तनहा बना है ?
वह कोई कसर तो नहीं छोड़ रहा …..
कभी मंदिर का दरवाजा खटखटाता है …..
कभी पेंड पौधों से भी सलाह ले लेता है ….
कभी पशुओं से भी राय लेनें में पीछे नहीं रहता …..
कभी दरगाह भी पहुँचता है ….
कभी दान देता है , कभी दान देता भी है …..
कभी प्यार करता और कभी करवाता भी है …..
कभी पेंड - पौधों में अमृत की तलाश करता है …..
कभी घीया के पानी में कैंसर को ठीक करनें की शक्ति को देखता है ….
कभी योग तो कभी आयुर्वेद को पकडे रहता है ……
कभी इमानदारी का रोब डालता है ……
कभी फैक्टरी लगाता है …..
और जब सब से दिल भर जाता है ……
तब -----
राजनीति को अपनाता है
यह इंसान …..
हर पल अपना खून बदल रहा है और
इसकी इस हरकत को देख कर खुदा भी ….
स्वयम को …….
निराकार बना लिया है //
कहते हैं -----
सत्- युग में प्रभु सब लोगों के साथ ही रहते थे और ……
उस समय परमात्मा शब्द न था ……
क्योंकि -----
जो थे , वे सब के सब परमात्मा ही थे //
===== ओम ======
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