Monday, March 21, 2011

मनुष्य प्रकृति से खेल रहा है

आइन्स्टाइन की गणित कहती है ..........

चिटुकी भर मिटटी के कणों में इतनी ऊर्जा है की यदि उनको विद्दयुत - ऊर्जा में बदलनें का तरिका
विकशित कर लिया जाए तो -----
एक सप्ताह तक एक गाँव में सात घंटे प्रति दिन के हिसाब से बिजली दी जा सकती है ।

बिज्ञान मिटटी से बिजली पैदा करनें का तरिका तो न निकाल पाया लेकीन मिटटी के स्थान पर
युरेनियम को खोज निकाला जो मनुष्य सभ्यता के लिए .........
महा काल है ॥

प्रकृति अपनें ढंग से चल रही है और मनुष्य उसकी चाल में अपनी टाँगे उलझा रहा है ।
प्रकृति फ़ैल रही है और मनुष्य उसके लुफ्त में मस्त न हो कर उसे मापना चाहता है ,
वह सूत्र बनाना चाहता है की , यह किस नियम , कायदा एवं क़ानून के हिसाब से फ़ैल रही है ?
लेकीन मनुष्य के मन - बुद्धि की सीमा है , वह प्रकृति की चाल से आगे नहीं निकल सकता ।

अब कुछ प्रकृति की बातों को देखिये -------
[क] क्या आप जानते हैं की आप जिस पृथ्वी पर रहते हैं वह 108000 किलो मीटर प्रति घंटे की चाल से
अपनी कक्षा में चल रही है ।
क्या मनुष्य द्वारा निर्मित हैं कोई और बस्तु जिसकी रफ़्तार इतनी हो ?

[ख] हमारी गलेक्सी में एक सितारा है जिसका नाम है - ETA जो सूर्य से 5 million times अधिक
रोशनी फेकता है ।

[ग] मरकरी प्लैनेट की चाल है - 1,72,800 km/hr. , क्या आप इसकी कल्पना भी कर सकते हैं ?

मैक्स प्लैंक कहते हैं ..........
इन्शान प्रकृति को अपनी मुट्ठी में कभी बंद नहीं कर सकता ।

===== ॐ =======

1 comment:

blogtaknik said...

बहुत अच्छी जानकारी आपका आभार