सोचै सोच न होवहीं
जो सोची लाख बार ….
नानक जी साहिब कह रहे हैं,चाहे लख बार सोचो लेकिन जब तक सोच मन – बुद्धि में है उसकी
[ मालिक ] की सोच उस मन – बुद्धि में नहीं आ सकती और अब आगे ----------
नानाक जी साहिब जब 19 साल के हुए तब इनका ब्याह हो गया और 30 साल की उम्र में इनको परम का बोध हुआ / श्री नानकजी साहिब एक अद्भुत योगी थे जिनको इतनी कम उम्र में ज्ञान की प्राप्ति
हुयी / श्री नानकजी साहिब मात्र दो बातें बार – बार कहते हैं जो इस प्रकार हैं ------
नाम जपो [ Naaam Japo ]
कीरत करो [ Kirat Karo ]
क्या है नाम उसका ?
उसका क्या नाम है ? वह कहाँ रहता है ? वह कैसा है ? उसकी आवाज कैसी है ? उसका रंग कैसा है ? ऐसे एक नहीं अनेक प्रश्न हैं जिनका कोई उत्तर नहीं और वह जो उत्तर पा लेता है वह चुप हो जाता है क्योंकि उसे ब्यक्त कौन कर सकता है ? श्री नानक जी साहिब कहते हैं , एक ओंकार सत् नाम अर्थात
ओंकार का जप करना ही उसके नाम का जप करना है /
हमारे सामनें सब कुछ घटित होता रहता है और हम अपनी ज्ञानेन्द्रियों को बंद करके रखते हैं फिर क्या होनें वाला है,अब देखिये इनको-------
मीरा जब २० साल की थी तब कबीर जी देह छोड़ गए थे
कबीरजी साहिब जब 29 साल के हुए तब नानक जी साहिब का जन्म हुआ
कबीरजी साहिब के जन्म के 10 साल बाद रबिदास जी साहिब पैदा हुए
श्री नानक जी साहिब के देह छोडनें के08साल बाद मीरा चल बसी
मीरा के जानें के ठीक एक साल बाद रसखान जी आये
आप इन सभीं बातों पर सोचें क्योंकि ------
सोचै सोचि न होवहीं
जो सोची लख बार
आप सोचते रहिये लेकिन भोग सोच में डूबे रहनें से जो मिलेगा वह क्षणिक सुख तो दे सकता है लेकिन परम सुख यदि आप चाहते हैं तो उस परम की सोच में डूबें जिसको श्री नानक जी साहिब कहते हैं ------
एक ओंकार सत् नाम
=====ओम=====
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