Thursday, September 8, 2011

कल आज और कल


कल आज और कल इनमें सिमटा हुआ यह मिटटी का पुतला इतना तनहा क्यों दिखता है?

वह जो नियम बनाता है,

वह जो राह बनाता है,

वह जो उस राह पर चलता है वही इतनी तनहाई में क्यों रहता है?

मनुष्य भोग के नये - नये साधन खोज रहा है , और कोई जीव नहीं ऐसा कर रहा , मनुष्य योग के नये - नये ढंग तलाश रहा है और कोई जीव ऐसा नहीं कर रहा , मनुष्य ऐसे - ऐसे योग दे रहा है जिसकी कल्पना तक बाबा गोरख नाथ एवं पतांजलि नहीं किये होगें और कोई जीव ऐसा नहीं कर

रहा , योग से ब्रह्म तक की यात्रा के एक नहीं अनेक उपाय दिखा रहा है और कोई जीव ऐसा नहीं कर रहा लेकिन फिरभी तनहाई की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि सभी उपाय विफल हो रहे हैं /

मनुष्यों का समुदाय एक ऐसा समुदाय है जहां भक्त – भगवान और दोनों के मध्य एक धर्म – गुरु होता है जबकी अन्य जीवों में उनके और परमात्मा के मध्य कोई और नहीं होता , क्या पता परमात्मा भी रहता है या नहीं और यदि रहता भी हो तो उनको इसका इल्म नहीं होता होगा / सृष्टि प्रारम्भ होने के बाद कुछ समय तक सभीं जीव जीनें की राह खोज नहीं रहे थे बना रहे थे और जब राह बन गयी तब से आज तक सभीं जीव उस अपनी - अपनी राह पर चल रहे हैंलेकिन मनुष्य क्या कर रहा है ?

मनुष्य संदेह के उजाले में जीता है और-------

संदेह के अँधेरे में मरता है//

संदेह ही जिसके जीवन की ऊर्जा हो वह कभी हंस नहीं सकता,वह तनहा ही रहेगा//

अब आगे ======

आज गुजरे हुए कल का प्रतिबिम्ब है …..

और----

आज आनें वाले कल की बुनियाँद है …...

आज के जीवन में गुजरे हुए कल को देख कर अपनी गलतियों को सुधारों जिससे आप के कल की बुनियाँद संदेह पर नहीं हकीकत पर रहे //

सच्चाई से भागो नहीं यह आप को कहीं भी चैन से नहीं रहनें देगी ----

सच्चाई को स्वीकारो //


=====ओम======


No comments: