सोचै सोच न होवई-----
जो सोची लख बार----
परम गुरु श्री नानकजी साहिब कह रहे हैं-----
सोचै सोच न होवई , जो सोचि लख बार
अर्थात
जबतक मन में सोच भरी है तबतक उसकी सोच उस मन में नहीं उभड़ सकती और -----
गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं-------
भोग – भगवान की ऊर्जा एक मन में एक साथ नहीं होती //
य हाँ एक परा भक्त हैं जिनको सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड एक के फैलाव रूप में उस से एवं उसमें दिखता
रहता है,जो संसार की सभीं सूचनाओं में प्रभु के अलावा और कुछ देखता ही नहीं और दूसरे हैं पूर्णावतार श्री कृष्ण जो एक साख्य – परम योगी के रूप में गीता में हैं//
सोच क्या है ? क्या सोच कामना का एक और नाम तो नहीं ? कामना राजस गुण का एक मूल तत्त्व है और प्रकृति के तीन गुण ; सात्त्विक , राजस एवं तामस मनुष्य को तीन मार्ग के रूप में उपलब्ध हैं जिनमें से किसी एक को पकड़ कर वह परम में पहुँच सकता है लेकिन वह जिसकी यात्रा में कहीं रुकावट न आनें पाए //
वह जिसकी अनुभूति हो रही होती है अनुभूति करता उसे तो स्वीकारता है लेकिन जब वह उसे बताना चाहता है जिसको उसकी अनुभूति नहीं हुयी होती तब वह वहाँ चूक जाता है और अपनी अनभूति को शब्दों के माध्यम से उस तरह ब्यक्त नहीं कर पाता जैसी उसक अनुभूति हुयी होती है//यहाँ सभीं
संत,महापुरुष,आंशिक अवतार एवं पूर्णावतार श्री कृष्ण सभीं असफल हो कर गए हैं,संसार में जो भी सत्य को ब्यक्त करना चाहा वह फेल हुआ क्योंकि सत्य चेतना की अनुभूति है उसे मन – बुद्धि स्तर पर नहीं समझा जा सकता/
आदि गुरु श्री नानकजी साहिब कह रहे हैं -----
पहले अपनें मन को रिक्त करो,कैसे रिक्त करो?इस प्रश्न के सन्दर्भ में गुरु जी साहिब कहते हैं---
पंचा का गुरु एक धियानुअर्थात मनुष्य का एक गुरु है,ध्यान और कोई नहीं अर्थात ध्यान के माध्यम से अपनें मन – को रिक्त करो और जब मन रिक्त हो जाता है तब सत्य स्वयं उस रिक्त मन में भर जाता है//ध्यान मन के बंद द्वार को खोलता हैऔर जब द्वार खुल जाता है तब उस मन से भोग की सोच स्वतः बाहर निकल जाती है और जो बच रहता है वह और कुछ नहीं परम सत्य
ही होता है//
=====ओम=======
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