जीवन दर्शन
भाग –01
जरा सोचो
आखिर कबतक किसी की उंगली पकड़ कर चलते रहोगे ?
आखिर कबतक अपनें से दूर – दूर भागते रहोगे ?
आखिर कबतक औरों को सुनाते रहोगे ?
आखिर कबतक स्वयं को धोखा देते रहोगे ?
आखिर कबतक अच्छा बनाते रहोगे ?
आकिर कबतक अपना गुणगान करते रहोगे ?
आखिर कबतक अपनें माथे के पसीनें को पोछते रहोगे ?
आखिर कबतक मन का गुलाम बने रहोगे ?
आखिर कबतक भागते रहोगे ?
आखिर कबतक अहंकार की अग्नि में जलते रहगे ?
1 comment:
बहुत सुन्दर सार्थक रचना। धन्यवाद।
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