Wednesday, February 1, 2023

पतंजलि अष्टाङ्ग योगाभ्यास से वैराग्य और वैराग्य से परामानांद

पतंजलि समाधि पाद सूत्र : 12 - 16 पतंजलि अष्टाङ्ग योगाभ्यास से वैराग्य और वैराग्य में गुणातीत की स्थिति पा कर परामानंदित होने का रहस्य # पतंजलि समाधि पाद सूत्र : 12 - 13 " अभ्यास वैराग्य अभ्याम् तन्निरोधः " # अभ्यास - वैराग्य से चित्त - वृत्तियों का निरोध होता है। " तत्र स्थितौ यत्न: अभ्यासः " # चित्त वृत्ति निरोध हेतु किये जाने वाले यत्न को अभ्यास कहते हैं। # पतंजलि समाधि पाद सूत्र - 14 " स तु दीर्घकाल नैरंतर्य सत्कारा सेवितो दृढ़भूमि : " अभ्यास के दीर्घ काल तक निरंतर लंबे अवधि तक श्रद्धायुक्त अभ्यास करने से चित्त वृत्ति निरोध हेतु दृढ भूमि मिलती है । श्रद्धा क्या है ? श्रद्धा (ऋग +धा ) का अर्थ है ,सत्यको धारण करना । ध्यान रखें ! असत्यको धारण करना श्रद्धा नहीं लेकिन गीता अध्याय : 17 श्लोक : 2 - 5 में गुणों के आधार पर 03 प्रकार की श्रद्धा बतायी गयी है । # पतंजलि समाधि पाद सूत्र : 15 " द्रष्ट अनुश्रविक - विषय वितृष्णस्य वशीकार संज्ञा वैराग्यम् " बिषय - इंद्रियं संयोग से मिलनें वाले सभीं भोगों और शास्त्रों में वर्णित सभीं भोगों के प्रति वितृष्णा के भाव का उदय होना वैराग्य कहलाता है या इसे । पतंजलि समाधि पाद सूत्र - 16 "तत् परम् पुरुष ख्याते : गुणवैतृष्णयम् " सूत्र - 15 में बताये गए वैराग्य की जब सिद्धि होती है तब चित्त स्वरूपाकार पुरुष को अपनें मूल स्वरूप का बोध हो जाता है । योग में यह गुणातीत की स्थिति होती है । ~~ ॐ ~~

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