सिद्ध और सिद्धि प्राप्ति ⤵️
पतंजलि योग दर्शन के विभूति पाद में संयम सिद्धि से 45 प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति की बात कही गई है । जिन्हें योग साधना में सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है , उन्हें सिद्ध योगी की संज्ञा मिलती है । ऐसे योगी जब सिद्धियों से प्राप्त शक्ति से ऐश्वर्य दिखा कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने लगते हैं तब उनका पतन होने लगता है और वे पुनः वहीं पहुंच जाते हैं जहां से वे योग - यात्रा प्रारंभ की थी अर्थात भोग में पहुंच जाते हैं । इन्ही सिद्ध प्राप्त योगियों में कुछ सिद्ध योगी सिद्धियों से अप्रभावित रहते हुए अपनी योग साधना में लगे रहते हैं जिन्हें धर्ममेघ समाधि सिद्धि के बाद कैवल्य का द्वार दिखने लगता है और ऐसे योगी किसी भी समय अपना शरीर त्याग कर मोक्ष प्राप्त करते हैं । कैवल्य में स्थित योगी परम तुल्य होते हैं लेकिन ऐसे योगी दुर्लभ भी हैं। ऊपर दो स्लाइड्स दी गई हैं । पहली में परमहंस रामकृष्ण द्वारा व्यक्त सिद्धि प्राप्त सिद्ध योगियों को 05 श्रेणियों में समझाया गया है । दूसरी स्लाइड पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र - 01 पर आधारित है । इस स्लाइड में सिद्धि प्राप्ति के 05 श्रोतों को स्पष्ट किया गया है ।
स्लाइड - 01 में परमहंस श्री रामकृष्ण जी कह रहे हैं , किसी को स्वप्न में सिद्धि मिल जाती है । किसी को मंत्र जाप अभ्यास से और किसी को अपनें आप स्वत: एकाएक सिद्धि मिल जाती है । कुछ ऐसे भी हैं जिनको गुरु कृपा से अर्थात गुरु द्वारा किए गए शक्तिपात से सिद्धि मिलती है और कोई जन्म से सिद्धि प्राप्त होता है। शक्ति पाद को समझते हैं। जब शुद्ध गुरु देखते हैं कि अमुक शिष्य सिद्धि प्राप्त योगी तैयार है तब वे अपनें ऊर्जा को उस शिष्य में स्थानांतरिक कर देते हैं । यह कार्य एक विशेष प्रकार से होता है जिसे व्यक्त करना संभव नहीं ।
स्लाइड - 02 में पतंजलि कहते हैं ,किसी की जन्म से सिद्धि मिली होती हैं, किसी को औषधि से सिद्धि मिल जाती है , किसी को मंत्र जाप अभ्यास से सिद्धि मिलती है , किसी को तप सिद्धि से सिद्धियां मिलती हैं और किसी को समाधि सिद्धि से सिद्धियां मिलती हैं । समाधि सिद्धि से सिद्धियां कैसे मिलती हैं ? इस्नप्रश्न को समझते हैं । पतंजलि अष्टांगयोग में धारणा , ध्यान और समाधि की सिद्धी एक साथ घटित होने लगे तब इसे संयम सिद्धि कहते हैं और संयम सिद्धि से नाना प्रकार की सिद्धियां मिलती हैं जो साधना की उच्च भूमियों में पहुंचने में अवरोध पैदा करती है अतः सिद्धि से अप्रभावित रहते हुए साधना की उच्च भूमियों में चढ़ते जाना कैवल्य में पहुंचाता है ।। ॐ ।।
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