पतंजलि योग दर्शन में अष्टांगयोग
भाग - 02 , यम एवं नियम
पिछले अंक में पतंजलि अष्टांगयोग के निम्न अंगों की परिभाषाओं को देखा गया और अब यहां इन अंगों में से प्रथम दो अंगों - यम और नियम को समझते हैं …
यम के 05 तत्त्व
अपनें दैनिक जीवन में यम के पांच तत्त्वों - अहिंसा , सत्य , अस्तेय , ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का अभ्यास करते रहना चाहिए । अष्टांगयोग साधना की पहली सीढ़ी यम है अतः पूरे होश में इन पांच तत्त्वों का अभ्यास करते रहना है ।
तन और मन से किसी जड़ - चेतन को हानि न पहुँचाने का भाव , अहिंसा है ।
जो जैसा है , उसे ठीक वैसे समझना , सत्य है।
सत्य सिद्धि प्राप्त योगी की क्रियाएं और उनके फल उसके नियंत्रण में होते हैं अर्थात ऐसे योगी के कर्म और उनके फल उसके नियंत्रण में होते हैं ।
चोरी न करने के भाव में स्थिर रहना , अस्तेय है ।
ब्रह्मचर्य सिद्धि प्राप्त योगी को वीर्य लाभ मिलता है अर्थात उसके पास असीमित ऊर्जा होती है ( साधन पाद सूत्र - 38 ) ।
अपरिग्रह का अर्थ है भोग वस्तुओं का संग्रह न करना । अपरिग्रह सिद्ध योगी केवल जिज्ञासा मात्र से अपनें जन्म के बिषय में जान लेता है अर्थात ऐसा योगी यह जानता है कि उसे अपनें वर्तमान जीवन में क्या करना है ( साधनपाद सूत्र - 39 )।
नियम के 05 तत्त्व
नियम तत्त्वों का जीवन में पालन करते रहना चाहिए ।
शौच - शौच का अर्थ है , निर्मलता ; तन और अंतःकरण की निर्मलता।आतंरिक शौंच सिद्धि से निम्न 05 योग्यताएँ मिलती हैं (साधनपाद सूत्र - 41 )...
1 - बुद्धि निर्मल होती है , 2 - मन शांत रहता है , 3 - एकाग्रता साधना में सहयोग मिलता है , 4 - इंद्रियों पर पूर्ण नियंत्रण रहता है और 5 - आत्म दर्शन में मदद मिलती है ।
संतोष - कामना मुक्त होना ही संतोष है । संतोष से सर्वोच्च लाभ मिलता है ( साधनपाद सूत्र - 42 )
तप - काया इन्द्रिय सिद्धि : अशुद्धि क्षयः तपः
काया और इंद्रियों की निर्मलता बनाए रखने के लिए जो किया जाय उसे तप कहते हैं (साधनपाद सूत्र - 43 )।
स्वाध्याय - चित्त वृत्तियों का भावातीत अवस्था में दर्शक बने रहना , स्वाध्याय है । स्वाध्याय सिद्धि से इष्ट देवता से मिलना होता है
(साधनपाद सूत्र - 44 ) । इष्ट देवता योग की उच्च भूमियों में पहुंचने में मदद करते हैं ।
ईश्वर प्रणिधान - ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण भाव का होना , ईश्वर प्रणिधान है । ईश्वर के सम्बन्ध में पतंजलि समाधि पाद सूत्र : 23 - 29 तक को देखना चाहिए । प्रणव को पतंजलि ईश्वर का संबोधन मानते हैं।
पतंजलि का ईश्वर क्या है ?
पतंजलि का ईश्वर ॐ ( प्रणव ) है जिसका जाप करने से चित्त की वृत्तियाँ शांत होती हैं और योग साधना में आने वाली सभीं बाधाएं दूर होती हैं ।
ईश्वर क्लेश , कर्म , कर्मफल और चित्त से अछूता है । यह सनातन , सर्वश्रेष्ठ , पूर्व में उत्पन्न सभीं गुरुओं का गुरु है और सर्वज्ञता का बीज है। ईश्वर प्रणिधान से सम्प्रज्ञात समाधि मिलती है (साधनपाद सूत्र - 45 )
।।।। ॐ।।।
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