Friday, January 17, 2025

पतंजलि अष्टांग योग के प्रारंभिक दो अंग



पतंजलि योग दर्शन में अष्टांगयोग 

भाग - 02 , यम एवं नियम 

पिछले अंक में पतंजलि अष्टांगयोग के निम्न अंगों की परिभाषाओं को देखा गया और अब यहां इन अंगों में से प्रथम दो अंगों - यम और नियम को समझते हैं …

यम के 05 तत्त्व 

अपनें दैनिक जीवन में यम के पांच तत्त्वों -  अहिंसा , सत्य , अस्तेय , ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का अभ्यास करते रहना चाहिए । अष्टांगयोग साधना की पहली सीढ़ी यम है अतः पूरे होश में इन पांच तत्त्वों का अभ्यास करते रहना है ।

तन और मन से किसी जड़ - चेतन को हानि न पहुँचाने का भाव , अहिंसा है ।

जो जैसा है , उसे ठीक वैसे समझना , सत्य है।

सत्य सिद्धि प्राप्त योगी की क्रियाएं और उनके फल उसके नियंत्रण में होते हैं अर्थात ऐसे योगी के कर्म और उनके फल उसके नियंत्रण में होते हैं । 

चोरी न करने के भाव में स्थिर रहना , अस्तेय है ।

 ब्रह्मचर्य सिद्धि प्राप्त योगी को वीर्य लाभ मिलता है अर्थात उसके पास असीमित ऊर्जा होती है ( साधन पाद सूत्र - 38 ) ।

अपरिग्रह का अर्थ है भोग वस्तुओं का संग्रह न करना । अपरिग्रह सिद्ध योगी केवल जिज्ञासा मात्र से अपनें जन्म के बिषय में जान लेता है अर्थात ऐसा योगी यह जानता है कि उसे अपनें वर्तमान जीवन में क्या करना है ( साधनपाद सूत्र - 39 )।

नियम के 05 तत्त्व 

नियम तत्त्वों का जीवन में पालन करते रहना चाहिए ।

शौच - शौच का अर्थ है , निर्मलता ; तन और अंतःकरण की निर्मलता।आतंरिक शौंच सिद्धि से निम्न 05 योग्यताएँ मिलती हैं (साधनपाद सूत्र - 41 )...

1 - बुद्धि निर्मल होती है , 2 - मन शांत रहता है , 3 - एकाग्रता साधना में सहयोग मिलता है , 4 - इंद्रियों पर पूर्ण नियंत्रण रहता है और 5 - आत्म दर्शन में मदद मिलती है ।

 संतोष - कामना मुक्त होना ही संतोष है । संतोष से सर्वोच्च लाभ मिलता है ( साधनपाद सूत्र - 42 )

 तप - काया इन्द्रिय सिद्धि : अशुद्धि क्षयः तपः 

काया  और इंद्रियों की निर्मलता बनाए रखने के लिए जो किया जाय उसे तप कहते हैं (साधनपाद सूत्र - 43 )।

 स्वाध्याय - चित्त वृत्तियों का भावातीत अवस्था में दर्शक बने रहना , स्वाध्याय है । स्वाध्याय सिद्धि से इष्ट देवता से मिलना होता है 

(साधनपाद सूत्र - 44 ) । इष्ट देवता योग की उच्च भूमियों में पहुंचने में मदद करते हैं ।

ईश्वर प्रणिधान - ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण भाव का होना , ईश्वर प्रणिधान है ।  ईश्वर के सम्बन्ध में पतंजलि समाधि पाद सूत्र : 23 - 29 तक को देखना चाहिए । प्रणव को पतंजलि ईश्वर का संबोधन मानते हैं। 

पतंजलि का ईश्वर क्या है ? 

पतंजलि का ईश्वर ( प्रणव )  है जिसका जाप करने से चित्त की वृत्तियाँ शांत होती हैं और योग साधना में आने वाली सभीं बाधाएं दूर होती हैं  ।

 ईश्वर क्लेश , कर्म , कर्मफल और चित्त से अछूता  है । यह सनातन , सर्वश्रेष्ठ , पूर्व में  उत्पन्न सभीं गुरुओं का गुरु है और सर्वज्ञता का बीज है। ईश्वर प्रणिधान से सम्प्रज्ञात समाधि मिलती है (साधनपाद सूत्र - 45 ) 

।।।। ॐ।।।

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