Thursday, April 24, 2025

पतंजलि कैवल्य पाद में धर्ममेघ समाधि का स्वरूप


पतंजलियोग दर्शन में योग सिद्धि का फल है , कैवल्य , 

कैसे ? देखें , यहां ⤵️


पतंजलि योग सूत्र दर्शन में 195 सूत्र हैं जो 04 पादों (अध्यायों ) में निम्न प्रकार से विभक्त हैं …

पाद >

समाधि

साधन

विभूति

कैवल्य

योग

सूत्र सं 

51

55

55

34

195

अभी तक कैवल्य पाद के  34 सूत्रों में से 27 सूत्रों से परिचय हो चुका है और अब यहां सूत्र : 28 , 29 और 30  सूत्रों की यात्रा प्रारंभ करने से पहले यात्रा को और सरल बनाए रखने हेतु पिछले सूत्र : 25 - 27  के सार को  पुनः देखते हैं -


कैवल्यपाद सूत्र 25 - 27 तक का सार


प्रकृति - पुरुष का दृष्टा अंतर्मुखी होता है और विवेक ज्ञान में डूबा रहता है लेकिन जब  विवेक की धारा टूटती है तब उसके चित्त में बीज रूप में उपस्थित संस्कार अंकुरित होने लगते हैं ।

 अब आगे बढ़ने से पहले निम्न सूत्रों को भी एक बार देख लेते हैं क्योंकि कैवल्यपाद सूत्र 28 - 30 को ठीक से समझने में इन सूत्रों की मदद की आवश्यकता पड़ती है ….

  • ईश्वर प्रणिधान से समाधि भाव जागृत होता है…

 (पतंजलि साधन पाद सूत्र : 45 ) 

ईश्वर समर्पण को ईश्वर प्रणिधान कहते हैं और पतंजलि का ईश्वर प्रणव ( ॐ ) है । 

पतंजलि योगसूत्र में ईश्वर को समझने के लिए देखें पतंजलि समाधिपाद सूत्र 23 - 29 ।

  • समाधि भाव जागृत होते ही क्लेष तनु अवस्था में आ जाते हैं । त्रिगुणी सुख - दुख के हेतु क्लेश हैं ।

अविद्या ,अस्मिता ,राग , द्वेष और अभिनिवेष , ये पञ्च क्लेश हैं । क्लेशों के लिए साधनपाद सूत्र 3 - 14 देखें ।

 

  • जबतक क्लेश प्रभावी हैं, सुख - दुःख भोगते रहना पड़ता है और क्लेश आवागमन चक्र से निकलने नहीं देते। 

(साधन पाद सूत्र : 13 ) 

  • क्रियायोग और ध्यान से क्लेषों का नाश होता ..

(पतंजलि साधन पाद : 10 +11 ) 

  • तपः स्वाध्याय ईश्वरप्रणिधान क्रियायोगः

(साधन पाद - 01)

ऊपर दिए गए सार तत्त्वों की स्मृति के साथ अब कैवल्यपाद सूत्र : 28 , 29 और सूत्र 30 की यात्रा करते हैं …


💐 कैवल्य पाद सूत्र : 28

                             हानमेषाम् क्लेशवदुक्तम् 

▶️अवरोध उत्पन्न करने वाली पूर्व संस्कारों की वृत्तियों का भी नाश वैसे ही करना चाहिए जैसे क्लेशों का नाश किया जाता है । इस सूत्र को समझते हैं ….

अष्टांगयोग के 08 अंगों की सिद्धि मिलने के साथ योगी के चित्त में केवल सात्त्विक गुण की वृत्तियों का आना -जाना बना रहता है और शेष दो गुणों की वृत्तियों का निग्रह हो गया होता है । योगाभ्यास का प्रारंभ तो है लेकिन जबतक श्वास चल रही है तबतक धारणा , ध्यान और समाधि का अभ्यास बिना किसी रुकावट नियमित चलता रहता है । जब एक आसान में बैठे धारणा , ध्यान और समाधि की सिद्धि एक साथ घटित होने लगती है तब उसे संयम कहते हैं ( विभूतिपाद - 4 )। धीरे - धीरे धारणा , ध्यान और समाधि के बीच की दूरी कम होती चली जाती है और योगी सीधे संयम में पहुंच जाया करता हैं। संयम सिद्धि के आधार पर सिद्धियां मिलती हैं जो योग साधना में रुकावटें पैदा करती हैं। ऐसा योगी जो सिद्धियों का गुलाम बन जाता है , उसकी साधना खंडित हो जाती हैं और वह कैवल्य मुखी न रह कर भोग मुखी हो जाता है । लेकिन जो सिद्धियों के अप्रभावित रहते हुए साधना की उच्च भूमियों की यात्रा करता रहता है , वह कैवल्य प्राप्त करता है । 

💐 कैवल्यपाद सूत्र : 29

         प्रख्याने: अपि अकुसीदस्य सर्वथा विवेकख्याते धर्ममेघ : 

▶️ विवेक ज्ञान प्राप्ति से मिलने वाले ऐश्वर्यों से भी जब वैराग्य हो जाता है तब वह योगी विवेक ख्याति में बस गया होता है । यह अवस्था धर्ममेघ समाधि का द्वार होती है । 

💐कैवल्य पाद सूत्र - 30

                   ततः क्लेश कर्म निवृत्ति:

▶️धर्ममेघ समाधि प्राप्त योगी क्लेश और कर्म मुक्त होता है।

क्लेश मुक्त योगी आवागमन चक्र से मुक्त हो जाता है और वह श्रीमद्भगवद्गीता  का निष्काम कर्मयोगी होता है , जो  परमानंद में डूबा हुआ मोक्ष प्राप्त करता है ।

अगले अंक में कैवल्य पाद के शेष 04 सूत्रों को लिया जायेगा। 

~~ ॐ ~~

Saturday, April 19, 2025

पतंजलि कैवल्यपाद में विवेक ज्ञान

पतंजलि योगसूत्र दर्शन आधारित साधना विवेक ज्ञान में पहुंचाती है 

और विवेक ज्ञानी कैवल्य प्राप्त करता है 

पतंजलि योगसूत्र में 195 सूत्र हैं जो समाधिपाद , साधनपाद , विभूतिपाद और कैवल्य पाद में विभक्त हैं। समाधिपाद में डी समाधि के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न की जाती हैं। साधनपाद में समाधि प्राप्ति के मार्ग के रूप में अष्टांगयोग से जोड़ा जाता है। विभूतिपाद में समाधि से सिद्धियों की प्राप्ति होती है। सिद्धियां योग साधना मार्ग की मजबूत रुकावटों के रूप में बताई गई है । ऐसा योगी जो सिद्धि प्राप्ति के बाद उनसे आकर्षित नहीं होता , वह निरंतर धारणा , ध्यान और समाधि का योगाभ्यास करते रहने से कैवल्य में प्रवेश करता है । कैवल्य में स्थित योगी , विवेक ज्ञानी होता है तथा पुरुषार्थ शून्य एवं गुणातीत होता है ।  अब आगे  कैवल्यपाद के सूत्र 23 - 27 में यात्रा करते हैं जिसके लिए सांख्य कारिका :3 एवं 22 को भी स्मृति में रखना होगा ……

संदर्भ सूत्र 

  •  ईश्वरकृष्णरचित सांख्य कारिका > 3 + 22

  •  पतंजलि  कैवल्यपाद सूत्र 23 - 27


सांख्य कारिका : 3 

मूल प्रकृति : अविकृत महत् आदि प्रकृति विकृतयः सप्त ।

षोडकः अस्तु विकारो न प्रकृतिः न विकृतिः पुरुषः ।।

🌹पुरुष - प्रकाश के प्रभाव में अविकृति मूल प्रकृति से  07 कार्य - कारण ( बुद्धि , अहंकार , 05 तन्मात्र )  और 16 केवल कारण

 (11 इन्द्रियाँ + 05 महाभूत )  उत्पन्न होते हैं 💐

सांख्य कारिका - 22

💐 प्रकृति - पुरुष संयोग से महत् की उत्पत्ति है । महत् से अहँकार , अहँकार से 11 इंद्रियों एवं  05 तन्मात्रों की उत्पत्ति है और तन्मात्रों से पञ्च महाभूतों की उत्पत्ति हुई है ।

सांख्य कारिका 3 + 22 का सार तत्त्व 

तीन गुणों की साम्यावस्था वाली मूल प्रकृति का जब निर्गुणी शुद्ध चेतन से संयोग होता है तब मूल प्रकृति विकृत होने से बुद्धि , अहंकार , 11 इंद्रियों और 5 तन्मात्रो  की उत्पत्ति होती हैंऔर तन्मात्रों से उनके अपने - अपनें महा भूतों की उत्पत्ति होती हैं । इनमें से बुद्धि , अहंकार और 5 तन्मात्र  , कारण - कार्य  दोनों हैं और 11 इंद्रियां एवं 5 महाभूत  कारण हैं । कारण वह तत्त्व होता है जो किसी और तत्त्व को उत्पन्न करता है और उत्पन्न होने वाले तत्त्व को कार्य कहते हैं। 

सभी दृश्य वर्ग जैसे योगी , साधक , हम , आप एवं अन्य , ऊपर व्यक्त  25 तत्त्वों के समूह से हैं । पतंजलि योग साधना करने वाला योगी भी मूलतः प्रकृति और पुरुष के संयोग से निर्मित है जिसमें पुरुष चेतन एवं निर्गुणी हैं और प्रकृति अपनें 23 तत्त्वों के साथ जड़ एवं त्रिगुणी हैं। जब प्रकृति एवं चेतन निर्गुणी पुरुष का संयोग होता है तब चेतन निर्गुणी पुरुष चित्त केंद्रित हो कर चित्त स्वरूपाकार बन जाता है और सगुण जैसा व्यवहार करता है । बुद्धि , अहंकार और मन के समूह को चित्त कहते है । सभी जीवों का स्थूल देह प्रकृति है और उस देखनका देही पुरुष है । चित्त और संसार का प्रतिबिंब उभड़ता रहता है। चित्त केंद्रित पुरुषभूष प्रतिबिंब को देख कर संसार को समझता है ।

प्रकृति केंद्रित पुरुष को प्रकृति के मुक्त कराने और मुक्त कराकर उसे अपने मूल स्वरूप में स्थित करने का उपाय पतंजलि योग सूत्र सिखाता है । योग सिद्धि से योगी विवेक ज्ञानी हो जाता है जिसे यथार्थ प्रकृति का एवं स्वयं का बोध हो जाता है जिसे कैवल्य कहते हैं।  

अब इन बातों के साथ पतंजलि योग सूत्र के कैवल्यपाद के सूत्र : 23 - 27 को समझते हैं ….

<> दृष्टदृश्योपरक्तम् चित्तम्  सर्व अर्थम्

 ~ पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र - 23 ~

पुरुष एवं प्रकृति से रंगा हुआ चित्त सभीं अर्थों  वाला भाषता है

बुद्धि , अहंकार और मन के समूह को चित्त कहते हैं , जैसा पहले भी बताया जा चुका है । चित्त त्रिगुणी जड़ तत्त्व हैं , जिसे अपने बारे में भी कुछ पता नहीं होता लेकिन पुरुष प्रकाश के प्रभाव में यह चेतन जैसा  व्यवहार करता भाषता है । 

<> तदसंख्येयवासनाभि: चित्रमपि परार्थ संहत्यकारित्वात् 

~ पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र - 24 ~

असंख्य वासनाओं से विचित्त होने के साथ चित्त,परार्थ  एवं 

संहत भी होता है । 

इस सूत्र में विचित्त ,परार्थ और संहत शब्दों को समझते हैं ..

विचित्त > वासनाओं की संग्रहभूमि चित्त है जहां अनेक वासनाएं बीज रूप में रहती हैं । चित्त एक समय में एक वासना पर सक्रिय रहता है जबकि उस के पास अनेक वासनाएं निष्क्रिय अवस्था में रहती हैं। एक से अधिक वासनाओं के संग्रह भूमि होने के कारण उस सूत्र में चित्त को विचित्त कहा जा रहा है ।

परार्थ (पर + अर्थ ) > दूसरे के लिए जो कार्य करता हो , उसे परार्थ कहते हैं । चित्त परार्थ कैसे है ? चित्त जड़ तत्त्व है जिसे स्वयं का पता नहीं , फिर वह और को कैसे जानेगा ! चित्त स्वयं भोगी नहीं , चित्त पुरुष के लिए उसकी ऊर्जा के प्रभाव में कार्य करता है अतः उसे परार्थ कहा जा रहा है ।

संहत > संहत का अर्थ है - मिलजुल कर कार्य करने वाला ।

अब यहां यह देखना होगा कि चित्त किन से मिल - जुल कर और किसके लिए कार्य करता है ? चित्त ( बुद्धि , अहंकार , मन )  शेष 20 तत्त्वों ( 10 इंद्रियां , 5 तन्मात्र और 5 महाभूत ( से मिल कर पुरुष के लिए कार्य करता है अतः उसे संहत कहते हैं ।

<> विशेष , दर्शिन , आत्मभाव , भावना , विनिवृत्ति:

~ पतंजलि कैवल्य पास सूत्र - 25 ~

विशेष दर्शी आत्मभाव भावना से मुक्त होता है ।

इस सूत्र में विशेष दर्शी को समझना होगा । विशेष दर्शी अन्य जिज्ञासाओं के साथ आध्यात्मिक जिज्ञासाओं जैसे मैं कौन हूं ? कहां से आया हूं ? क्यों आया हूं ? आदि से भी मुक्त रहता हैं और इस प्रकार वह समभाव होता है ।

<> तदा विवेकनिम्नं कैवल्यप्राग्भारं चित्तम् <>

~ पतंजलि कैवल्यपाद सूत्र - 26 ~

विशेष दर्शी का चित्त विवेक की गहराई में डूबा , कैवल्य मुखी होता है । इस सूत्र में  तदा शब्द पिछले सूत्र -25 के लिए प्रयोग किया गया है ।

<> तत् छिद्रेषु प्रत्यय अंतराणि संस्कारेभ्य : <>

~ पतंजलि कैवल्यपाद सूत्र - 27 ~

विवेक की धारा टूटने पर संस्कार प्रभावी हो उठते हैं।


अब सूत्र : 25 , 26 और सूत्र - 27 का भावार्थ एक साथ देखते हैं …


विशेष दर्शी का चित्त आत्म भाव भावना से मुक्त रहता है , उसका चित्त विवेक ज्ञान में डूबे रहने के कारण कैवल्य मुखी रहता है लेकिन जब भी उस योगी के चित्त में विवेक की धारा टूटती है तब वह योगी पुनः संस्कारों के प्रभाव में होता है । समाधि टूटने पर परमहंस रामकृष्ण रो - रो कर क्यों कहा करते थे है मां , हे मां मैं वहीं खुश था , तीन मुझे क्यों यहां का दिया ! संभवतः अब आप उनके रोने के कारण को समझ  गए होंगे !

 संस्कार क्या है ?

शुक्ल , कृष्ण और शुक्ल - कृष्ण मिश्रित , ये तीन प्रकार के कर्म हम करते रहते हैं । इन कर्मों के फल बीज रूप में चित्त में एकत्रित होते रहते हैं जिन्हें संस्कार कहते हैं।  चित्त को कर्माशय भी कहते हैं।

~~ ॐ ~~

Wednesday, April 9, 2025

पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र 25

पतंजलि योगसूत्र कैवल्य पाद सूत्र :  25 

समाधि में उतरे योगी की स्थिति


सूत्र में डूबने से पहले निम्न बातों को देख लेते हैं …

सांख्य दर्शन और पतंजलि योग सूत्र दर्शन एक दूसरे के पूरक दर्शन हैं ।  बिना पतंजलि योग सूत्र दर्शन , सांख्य दर्शन को यथार्थ रूप में समझना संभव नहीं और बिना सांख्य दर्शन को समझे , पतंजलि योग सूत्र को यथार्थ रूप में समझना संभव नहीं । सांख्य प्रकृति - पुरुष संयोग को सृष्टि निष्पति का कारण बताता है । पतंजलि योग सूत्र प्रकृति - पुरुष वियोग के उपायों को स्पष्ट करता है । सांख्य से हमें अपने वजूद का पता चलता है अर्थात माइनर कौन हूं ? प्रश्न का उत्तर सांख्य देता है । पतंजलि योग सूत्र कहता है , प्रकृति - पुरुष संयोग से हम हैं और इस रहस्य की अनुभूति प्राप्त करना भी संभव है । प्रकृति - पुरुष वियोग की अनुभूति के लिए पतंजलि योग सूत्र के 195 सूत्र उपलब्ध हैं जिनको समाधि पाद , साधनपाद , विभूतिपाद और कैवल्य पाद में विभक्त किया गया है । कैवल्य पाद में कुल 34 सूत्र हैं , जिनमें से 24 सूत्रों के संबंध में पहले बताया जा चुका है अब हम प्रारंभ में दिए गए कैवल्य पाद के सूत्र - 25 को समझते हैं ….

सूत्र रचना 


विशेष , दर्शिन , आत्मभाव , भावना , विनिवृत्ति:


सूत्र का हिन्दी अनुवाद

समाधि अनुभूति वाले योगी आत्मभाव भावना से मुक्त होते हैं 


सूत्र के शब्दों का भावार्थ


#विशेष शब्द , पुरुष - प्रकृति  के मूल स्वरूप के लिए प्रयोग किया गया है ।

 सनातन शुद्ध चेतन और निर्गुण स्वरूप पुरुष का है ।  सनातन , जड़ , प्रसवधर्मी और तीन गुणों की साम्यावस्था , मूल प्रकृति का स्वरूप है । 

पुरुष ऊर्जा के प्रभाव में मूल प्रकृति विकृत हो जाती है और इसके कार्य रूप में जड़ एवं त्रिगुणी 23 तत्त्वों की निष्पति होती है ( बुद्धि , अहंकार , 11 इंद्रियां , 05 तन्मात्र और 05 महाभूत ) । प्रकृति के ये जड़  एवं त्रिगुणी 23 तत्त्व चित्त केंद्रित पुरुष को कैवल्य प्राप्ति में सहयोग करते हैं ।

#दर्शिन शब्द का अर्थ है देखने वाला , विषय के  यथार्थ स्वरूप को समझने वाला ।

#आत्मभाव भावना का अर्थ 

 मैं कौन हूँ ? , कहाँ से आया हूँ ? , क्यों आया हूँ ? आदि रहस्यों के जानने की जिज्ञासा ।

#विनिवृत्ति का अर्थ है , पूर्ण रूपसे निवृत होना ।


अब सूत्र भावार्थ को देखते हैं 👇


प्रकृति - पुरुष एक नहीं , दो अलग - अलग तत्त्व है , दोनों तत्त्व सनातन हैं । पुरुष चेतन एवं निर्गुण है और प्रकृति प्रसवधर्मी एवं त्रिगुणी जड़ तत्त्व है । इस तत्त्व जान का ज्ञानी

मैं कौन हूं ? , कहां से आया हूं ? और क्यों आया हूं ?  आदि जैसी दार्शनिक जिज्ञासाओं से मुक्त रहता है …

अर्थात

 

 प्रश्न की निष्पति संदेह से होती है और संदेह , अज्ञान के उत्पन्न होता है । प्रकृति एवं पुरुष के यथार्थ स्वरूप का दृष्टा , तत्त्व ज्ञानी होता है जो संदेह और जिज्ञासाओं से अछूता रहता है ।

निष्कर्ष 

समाधि की बार - बार अनुभूति प्राप्त करने वाला योगी प्रकृति एवं पुरुष का बोधी  , समभाव में स्थित , गुणातीत एवं त्रिगुणी विषयों का यथार्थ दृष्टा होता है ।

।। ॐ ।।