Wednesday, April 9, 2025

पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र 25

पतंजलि योगसूत्र कैवल्य पाद सूत्र :  25 

समाधि में उतरे योगी की स्थिति


सूत्र में डूबने से पहले निम्न बातों को देख लेते हैं …

सांख्य दर्शन और पतंजलि योग सूत्र दर्शन एक दूसरे के पूरक दर्शन हैं ।  बिना पतंजलि योग सूत्र दर्शन , सांख्य दर्शन को यथार्थ रूप में समझना संभव नहीं और बिना सांख्य दर्शन को समझे , पतंजलि योग सूत्र को यथार्थ रूप में समझना संभव नहीं । सांख्य प्रकृति - पुरुष संयोग को सृष्टि निष्पति का कारण बताता है । पतंजलि योग सूत्र प्रकृति - पुरुष वियोग के उपायों को स्पष्ट करता है । सांख्य से हमें अपने वजूद का पता चलता है अर्थात माइनर कौन हूं ? प्रश्न का उत्तर सांख्य देता है । पतंजलि योग सूत्र कहता है , प्रकृति - पुरुष संयोग से हम हैं और इस रहस्य की अनुभूति प्राप्त करना भी संभव है । प्रकृति - पुरुष वियोग की अनुभूति के लिए पतंजलि योग सूत्र के 195 सूत्र उपलब्ध हैं जिनको समाधि पाद , साधनपाद , विभूतिपाद और कैवल्य पाद में विभक्त किया गया है । कैवल्य पाद में कुल 34 सूत्र हैं , जिनमें से 24 सूत्रों के संबंध में पहले बताया जा चुका है अब हम प्रारंभ में दिए गए कैवल्य पाद के सूत्र - 25 को समझते हैं ….

सूत्र रचना 


विशेष , दर्शिन , आत्मभाव , भावना , विनिवृत्ति:


सूत्र का हिन्दी अनुवाद

समाधि अनुभूति वाले योगी आत्मभाव भावना से मुक्त होते हैं 


सूत्र के शब्दों का भावार्थ


#विशेष शब्द , पुरुष - प्रकृति  के मूल स्वरूप के लिए प्रयोग किया गया है ।

 सनातन शुद्ध चेतन और निर्गुण स्वरूप पुरुष का है ।  सनातन , जड़ , प्रसवधर्मी और तीन गुणों की साम्यावस्था , मूल प्रकृति का स्वरूप है । 

पुरुष ऊर्जा के प्रभाव में मूल प्रकृति विकृत हो जाती है और इसके कार्य रूप में जड़ एवं त्रिगुणी 23 तत्त्वों की निष्पति होती है ( बुद्धि , अहंकार , 11 इंद्रियां , 05 तन्मात्र और 05 महाभूत ) । प्रकृति के ये जड़  एवं त्रिगुणी 23 तत्त्व चित्त केंद्रित पुरुष को कैवल्य प्राप्ति में सहयोग करते हैं ।

#दर्शिन शब्द का अर्थ है देखने वाला , विषय के  यथार्थ स्वरूप को समझने वाला ।

#आत्मभाव भावना का अर्थ 

 मैं कौन हूँ ? , कहाँ से आया हूँ ? , क्यों आया हूँ ? आदि रहस्यों के जानने की जिज्ञासा ।

#विनिवृत्ति का अर्थ है , पूर्ण रूपसे निवृत होना ।


अब सूत्र भावार्थ को देखते हैं 👇


प्रकृति - पुरुष एक नहीं , दो अलग - अलग तत्त्व है , दोनों तत्त्व सनातन हैं । पुरुष चेतन एवं निर्गुण है और प्रकृति प्रसवधर्मी एवं त्रिगुणी जड़ तत्त्व है । इस तत्त्व जान का ज्ञानी

मैं कौन हूं ? , कहां से आया हूं ? और क्यों आया हूं ?  आदि जैसी दार्शनिक जिज्ञासाओं से मुक्त रहता है …

अर्थात

 

 प्रश्न की निष्पति संदेह से होती है और संदेह , अज्ञान के उत्पन्न होता है । प्रकृति एवं पुरुष के यथार्थ स्वरूप का दृष्टा , तत्त्व ज्ञानी होता है जो संदेह और जिज्ञासाओं से अछूता रहता है ।

निष्कर्ष 

समाधि की बार - बार अनुभूति प्राप्त करने वाला योगी प्रकृति एवं पुरुष का बोधी  , समभाव में स्थित , गुणातीत एवं त्रिगुणी विषयों का यथार्थ दृष्टा होता है ।

।। ॐ ।।

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