पतंजलि योगसूत्र कैवल्य पाद सूत्र : 25
समाधि में उतरे योगी की स्थिति
सूत्र में डूबने से पहले निम्न बातों को देख लेते हैं …
सांख्य दर्शन और पतंजलि योग सूत्र दर्शन एक दूसरे के पूरक दर्शन हैं । बिना पतंजलि योग सूत्र दर्शन , सांख्य दर्शन को यथार्थ रूप में समझना संभव नहीं और बिना सांख्य दर्शन को समझे , पतंजलि योग सूत्र को यथार्थ रूप में समझना संभव नहीं । सांख्य प्रकृति - पुरुष संयोग को सृष्टि निष्पति का कारण बताता है । पतंजलि योग सूत्र प्रकृति - पुरुष वियोग के उपायों को स्पष्ट करता है । सांख्य से हमें अपने वजूद का पता चलता है अर्थात माइनर कौन हूं ? प्रश्न का उत्तर सांख्य देता है । पतंजलि योग सूत्र कहता है , प्रकृति - पुरुष संयोग से हम हैं और इस रहस्य की अनुभूति प्राप्त करना भी संभव है । प्रकृति - पुरुष वियोग की अनुभूति के लिए पतंजलि योग सूत्र के 195 सूत्र उपलब्ध हैं जिनको समाधि पाद , साधनपाद , विभूतिपाद और कैवल्य पाद में विभक्त किया गया है । कैवल्य पाद में कुल 34 सूत्र हैं , जिनमें से 24 सूत्रों के संबंध में पहले बताया जा चुका है अब हम प्रारंभ में दिए गए कैवल्य पाद के सूत्र - 25 को समझते हैं ….
सूत्र रचना
विशेष , दर्शिन , आत्मभाव , भावना , विनिवृत्ति:
सूत्र का हिन्दी अनुवाद
समाधि अनुभूति वाले योगी आत्मभाव भावना से मुक्त होते हैं
सूत्र के शब्दों का भावार्थ
#विशेष शब्द , पुरुष - प्रकृति के मूल स्वरूप के लिए प्रयोग किया गया है ।
सनातन शुद्ध चेतन और निर्गुण स्वरूप पुरुष का है । सनातन , जड़ , प्रसवधर्मी और तीन गुणों की साम्यावस्था , मूल प्रकृति का स्वरूप है ।
पुरुष ऊर्जा के प्रभाव में मूल प्रकृति विकृत हो जाती है और इसके कार्य रूप में जड़ एवं त्रिगुणी 23 तत्त्वों की निष्पति होती है ( बुद्धि , अहंकार , 11 इंद्रियां , 05 तन्मात्र और 05 महाभूत ) । प्रकृति के ये जड़ एवं त्रिगुणी 23 तत्त्व चित्त केंद्रित पुरुष को कैवल्य प्राप्ति में सहयोग करते हैं ।
#दर्शिन शब्द का अर्थ है देखने वाला , विषय के यथार्थ स्वरूप को समझने वाला ।
#आत्मभाव भावना का अर्थ
मैं कौन हूँ ? , कहाँ से आया हूँ ? , क्यों आया हूँ ? आदि रहस्यों के जानने की जिज्ञासा ।
#विनिवृत्ति का अर्थ है , पूर्ण रूपसे निवृत होना ।
अब सूत्र भावार्थ को देखते हैं 👇
प्रकृति - पुरुष एक नहीं , दो अलग - अलग तत्त्व है , दोनों तत्त्व सनातन हैं । पुरुष चेतन एवं निर्गुण है और प्रकृति प्रसवधर्मी एवं त्रिगुणी जड़ तत्त्व है । इस तत्त्व जान का ज्ञानी
मैं कौन हूं ? , कहां से आया हूं ? और क्यों आया हूं ? आदि जैसी दार्शनिक जिज्ञासाओं से मुक्त रहता है …
अर्थात
प्रश्न की निष्पति संदेह से होती है और संदेह , अज्ञान के उत्पन्न होता है । प्रकृति एवं पुरुष के यथार्थ स्वरूप का दृष्टा , तत्त्व ज्ञानी होता है जो संदेह और जिज्ञासाओं से अछूता रहता है ।
निष्कर्ष
समाधि की बार - बार अनुभूति प्राप्त करने वाला योगी प्रकृति एवं पुरुष का बोधी , समभाव में स्थित , गुणातीत एवं त्रिगुणी विषयों का यथार्थ दृष्टा होता है ।
।। ॐ ।।
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