Wednesday, February 7, 2024

सांख्य एवं पतंजलि योगसूत्र दर्शनों में प्रकृति संयोग सिद्धांत के आधार पर मनुष्य की स्थिति

सांख्य दर्शन और पतंजलि योग सूत्र दर्शन 

के आधार पर स्वयं को समझते हैं …….

  सांख्य दर्शन और पतंजलि योग सूत्र दर्शन के अनुसार पुरुष शुद्ध चेतन , स्वतंत्र , निर्गुण और  सनातन तत्त्व है । प्रकृति जड़ , स्वतंत्र , सनातन और त्रिगुणी तत्त्व है । तीन गुणों की साम्यावस्था को मूल प्रकृति कहते हैं । पुरुष और प्रकृति अति सूक्ष्म तत्त्व हैं । 

मूल प्रकृति , पुरुष से जुड़ते ही  विकृत हो जाती है और फलस्वरूप बुद्धि , अहंकार , 11 इंद्रियां , पांच तन्मात्र और पांच महाभूतों के रूप में 23 तत्त्वों की निष्पत्ति होती हैं । इन 23 तत्त्वों में से प्रथम 03 तत्त्व - बुद्धि , अहंकार एवं मन को चित्त कहते हैं । मूल प्रकृति के जड़ और त्रिगुणी होने के कारण उसके 23 तत्त्व भी मूलतः जड़ एवं त्रिगुणी होते हैं ।

चित्त को कर्माशय भी कहते हैं । चित्त के अंग मन में सृष्टि प्रारंभ से वर्तमान तक के सभी किए गए कर्मों के फलों के बीज सूक्ष्म रूप में संचित रहते हैं । वर्तमान में इन कर्मों के फलों को मनुष्य के चित्त में स्थित पुरुष  सुख /दुःख रूप में भोगता रहता है ।  हम ऊपर व्यक्त  25 तत्त्वों के समूह हैं जिनमें 24 तत्त्व मूलतः जड़ और त्रिगुणी हैं केवल चित्त केंद्रित पुरुष चेतन एवं निर्गुणी हैं।  इसे ऐसे भी समझा जा सकता है - मानो चेतन एवं निर्गुणी पुरुष , प्रकृति सहित उसके 23 जड़ एवं त्रिगुणी तत्त्वोंसे निर्मित पिजड़े में कैद है । पुरुष प्रकृति संयोग के साथ चेतन पुरुष चित्ताकार हो जाता है और प्रकृति से 23 तत्त्वीं के माध्यम से संसार का अनुभव करने लगता है । 

ऊपर व्यक्त सिद्धांत सांख्य दर्शन का मूल सिद्धांत है । महर्षि पतंजलि अपनें योग सूत्र दर्शन में  195 सूत्रों के माध्यम से प्रकृति रूपी पिजड़े में कैद चेतन पुरुष को मुक्त कराने का विज्ञान देते हैं । जो इस योग सूत्र दर्शन में व्यक्त विज्ञान का अपनें जीवन में निरंतर अभ्यास करता रहता है , उसे वैराग्य के माध्यम से समाधि घटित होती है जिनसे उसे अपनें मूल स्वरूप का बोध होने लगता है और वह प्रकृति से मुक्त हो जाता है । जब पुरुष को स्व बोध हो जाता है और वह कैवल्य प्रवेश कर जाता  है तब विकृत हुई प्रकृति

 ज्ञान -अज्ञान , धर्म - अधर्म , वैराग्य -  राग और ऐश्वर्य - अनैश्वर्य इन 08 भावों में से ज्ञान को छोड़ शेष 07 भावों से मुक्त हो जाती है और ज्ञान माध्यम से अपनें तीन गुणों की साम्यावस्था में लौट आती है । 

पुरुषार्थ का शून्य हो जाना तथा गुणों का प्रतिप्रसव होना , कैवल्य है ।

ऊपर सांख्य दर्शन के प्रारंभिक 68 कारिकाओं और पतंजलि योग सूत्र दर्शन के 195 सूत्रों के आधार पर प्रकृति -पुरुष एवं सृष्टि निष्पत्ति के सार को व्यक्त किया गया ।

~~~ ॐ ~~

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