Monday, April 22, 2024

श्रीमद्भगवद्गीता के 36 तत्त्व


श्रीमद्भगवद्गीता के मूल तत्त्व ⤵️

1️⃣

2️⃣

3️⃣

4️⃣

ब्रह्म

महाभूत 

कर्म

कर्मयोग

ईश्वर

तन्मात्र

ज्ञान

ज्ञानयोग

परमात्मा 

बुद्धि

भाव

समत्वयोग

आत्मा

अहंकार

समभाव

स्थिरप्रज्ञ 

जीवात्मा

मन

आसक्ति

मोह 

पुरुष

10 इंद्रियां

कामना

भय

प्रकृति 


स्थूल शरीर 

क्रोध

आलस्य

माया 

सूक्ष्म शरीर

लोभ

गुण 

स्व धर्म

पर धर्म

कुल धर्म

जाति धर्म

# श्रीमद्भगवद्गीता ऊपर व्यक्त 36 तत्त्वों पर केंद्रित है । 

# गीता के शब्दों के अर्थ को गीता में खोजना बुद्धि योग में ले लाता है और  गीता के शब्दों का अर्थ स्वयं लगाना, अहंकार में पहुंचाता है ।

# श्रीमद्भगवद्गीता को आदि शंकराचार्य जी गीतोपनिषद् कहते हैं अर्थात उनकी दृष्टि गीता महाभारत का अंश मात्र नहीं एक पूर्ण उपनिषद्  है अर्थात इसके शब्द वेद के शब्द हैं जिनकी अपनी ऊर्जा होती है ।

# दुःख होता है यह देख कर कि लोग लोग बोल तो रहे होते हैं गीता पर लेकिन उनके विचारों में कहीं दूर तक गीता नजर नहीं आता।

~~ ॐ ~~

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