Monday, April 8, 2024

परमहंस श्री रामकृष्ण जी की आध्यात्मिक यात्रा का एक अंश

परमहंस रामकृष्ण जी की दक्षिणेश्वर की आध्यात्मिक यात्रा ( 1855 - 1871  )  में क्या - क्या घटित हुआ ?

जन्म > 1836 , महानिर्वाण > 1886

# 1855 में 20 वर्ष की उम्र में दक्षिणेश्वर आगमन ( 1855 ) ।

# 1856 में बड़े भाई रामकुमार की मृत्यु के बाद मां काली के प्रधान पुजारी बने । रामकुमार गदाधर से 21 वर्ष बड़े थे । भाई की मृत्यु के बाद गदाधर रात भर पंचवटी में ध्यान करने लग गए थे जिसके कारण उनका स्वास्थ्य कमजोर होने लगा था । गदाधर की बहन का बेटा हृदय जो उनसे 4 साल छोटा था , उनके साथ ही पल रहता था और उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखता था ।

# 1857 में मानसिक संतुलन बिगड़ गया  जिसके कारण अपनें पैतृक गांव चले गए थे ।

# 1858 में  मुंह से काला खून निकलने लगा था ।

# 1859 संग्रहिणी रोग से पीड़ित हुए और पुनः गांव चले गए और इसी साल 05 वर्षीय शारदा के संग 24 वर्षीय गदाधर का ब्याह भी करा दिया गया , इस उम्मीद से कि शायद ब्याह के बाद इनका स्वास्थ्य ठीक रहे । 

# 1861 के प्रारंभ में गदाधर संग्रहिणी रोग से ग्रसित हुए , धीरे - धीरे स्बहुत कमजोर हो गए थे । इस प्रतिकूल स्थिति में हृदय का व्यवहार इतना खराब हो गया था कि रामकृष्ण जी कई बार आत्महत्या करने को सोचने लग गए थे ।  हृदय अहंकार का गुलाम बन गया था ।1861 संकठ  भरा वर्ष था। 

1861 रानी रासमणि का संग्रहिणी मर्ज के कारण 67 वर्ष की उम्र में मृत्यु हो गई । मथुर बाबू दक्षिणेश्वर परिसर के प्रधान बन गए ।  भैरवी ब्राह्मणी का दक्षिणेश्वर में आगमन भी 1861 में हुआ जो 1867 तक रामकृष्ण के साथ रही ।

# 1863 - 64 में बहुत बड़े संत समागम का आयोजन किया गया जिसके फलस्वरूप संत जटाधारी और नागा संन्यासी तोतापुरी का आगमन हुआ । संत जटाधारी रामलला के सिद्ध भक्त थे और तोतापुरी जी वेदांत के साधक थे ।

# 1866 में गोविंद राय जो इस्लाम धर्म कबूल कर लिए थे और सूफी दर्शन से आकर्षित थे , परमहंस जी उनसे इस्लाम धर्म की दीक्षा ली । इस्लाम धर्म साधना में परमहंस जी इस्लाम के अनुसार भोजन करते , वैसे ही कपड़े पहनते और नवाज पढ़ते । तीन दिन में इन्हें सिद्धि मिल गई थी । मां काली से स्वीकृति पाने के बाद इस्लाम धर्म की साधना शुरू की थी । 

# 1868 में मथुर बाबू अपनें परिवार , परमहंस रामकृष्ण , हृदय एवं अन्य  100 कर्मचारियों के साथ काशी - वृंदावन की तीर्थ यात्रा की थी । इस यात्रा में जब काशी पहुंचे तो  वहां केदार घाट पर दो बड़े - बड़े मकान किराए पर लिए थे  । यहां परमहंस जी के साथ भैरवी भी आ गई थी जो काशी में ही रहती थी । भैरवी काशी से वृंदावन तक यात्रा में भी परमहंस जी के साथ थी । बृंदाबन में वह रुक गई थी और कुछ समय बाद वहीं आखिरी श्वास भरी थी । भैरवी और रामकृष्ण का लगभग 7 वर्ष का साथ अपनें में एक रहस्य ही है । जब भैरवी दक्षिणेश्वर आई उस समय परमहंस जी लगभग 25 - 26 वर्ष के थे ।1867 में  कामारपुकुर में मां शारदा भी परमहंस जी के साथ ही थी और उस समय उनकी उम्र 13 वर्ष की रही होगी । एक दिन मां शारदा पूछी , मेरा और आपका संबंध क्या है ? परमहंस जी बोले , मैं और तुम दोनों मां काली की सखियां हैं । परमहंस जी मां शारदा की ऊर्जा का रूपांतरण करते रहे । 

# अक्षत , परमहंस जी के बड़े भाई श्रीरामकुमार जी का पुत्र 1866 से 1870 तक परिसर में राधा कृष्ण मंदिर का पुजारी रहा और 22 वर्ष की उम्र में खून की उलटी होने के कारण  इसकी मृत्यु 1870 में हो गई थी ।

# जुलाई 1871 में मथुरबाबू की भी मृत्य हो गई । परमहंस जी मथुर बाबू की मृत्यु के 6 माह बाद कामारपुकुर चले गए वहां मां शारदा भी थी जिनकी उम्र लगभग 17वर्ष की रही होगी । कुछ दिन बाद फिर लौट आए और मां शारदा अपने माइके चली गई । 

~~ ॐ ~~

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