पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र : 15 , 16 ,17
महर्षि पतंजलि अपनें कैवल्य पाद सूत्र - 15 में कह रहे हैं ,
“ एक वस्तु चित्त भेद के कारण अलग - अलग दिखती है ” । अब इस सूत्र किन्समझते हैं - एक सेव को चार भागों में विभक्त करके चार लोगों खाने को दें और इस सेव के संबंध में उनकी राय जानने की कोशिश करें। सेव एक है लेकिन उसके बारे में लोगों के विचार एक से अधिक हो सकते हैं ;
ऐसा क्यों ? क्योंकि उनके चित्त अलग - अलग हैं अतः चित्त भेद के कारण एक वस्तु अलग - अलग दिख रही होती है।
पतंजलि के इस सूत्र ( सूत्र - 15 ) का सार यह निकला कि वस्तु चित्त के अनुसार दिखती है ।
आगे कैवल्य पाद सूत्र - 16 में महर्षि पतंजलि स्वयं से प्रश्न पूछ रहे है , “ वस्तु किसी एक चित्त के अधीन नहीं “।
यह सूत्र सूत्र - 15 के ठीक विपरीत दिख रहा है क्योंकि
सूत्र - 15 में कहते हैं , वस्तु चित्त के अनुसार दिखती है और यहां सूत्र - 16 में कह रहे हैं , वस्तु किसी एक चित्त के अधीन नहीं । अब सूत्र - 16 को ऐसे समझते हैं - कल्पना करें कि एक कुर्सी सामने पड़ी है जिसे हम देख रहे हैं अर्थात जबतक कुर्सी को देखने वाली हमारी आँखें सक्रिय हैं तबतक वह कुर्सी है लेकिन जब हमारी आँखें सक्रिय नहीं होगी तब क्या वह कुर्सी वहां नहीं होगी ? यह प्रश्न महर्षि पतंजलि स्वयं से पूछ रहे हैं। वह कुर्सी तो वहां होगी ही चाहे उसका प्रमाण हमारी आँखें वहां हो या न हो । इस तर्क के आधार पर यह सिद्ध होता है कि वस्तु किसी एक चित्त के अधीन नहीं।
अब आगे कैवल्य पाद सूत्र - 17 में महर्षि संसार की वस्तुओं और चित्त के संबंध को स्पष्ट कर रहे हैं ….
यहां आगे बढ़ने से पहले यह समझ लेते हैं कि चित्त क्या है ? चित्त शक्ति ( पुरुष ) क्या है ? और वस्तु , चित्त और पुरुष का आपसी संबंध क्या है ?
जड़ त्रिगुणी प्रकृति के तीन त्रिगुणी तत्त्व - बुद्धि , अहंकार और मन के समूह को चित्त कहते हैं । चेतन एवं निर्गुणी पुरुष (चित्त शक्ति ) चित्त केंद्रित रहता है अर्थात चित्त त्रिगुणी प्रकृति और निर्गुणी पुरुष का संयोग भूमि है । निर्गुणी एवं चेतन पुरुष चित्त केंद्रित होते ही त्रिगुणी बन जाता है और संसार को चित्त के माध्यम से देखता एवं समझता है । ऐसा समझें कि ज्ञानी पुरुष अंधा है और चित जड़ है ; वह स्वयं को भी नहीं जानता फिर और किसी को क्या जानेगा ! लेकिन उसके पास देखने की इंद्रियां हैं , वह देख सकता है । चित्त जिस वस्तु को देखता है , उस वस्तु का प्रतिबिम्ब उस पर बनता है और उस प्रतिबिम्ब के माध्यम से चित्त केंद्रित पुरुष उस वस्तु को देखता और समझता है । चित्त केंद्रित पुरुष भोक्ता है और उसे इस कार्य में चित्त सहयोग करता रहता है, ऐसा भिनकह सकते हैं कि चित्त पुरुष के टूल्स की भांति है जिसेनपुरुष अपनें अनुभव के लिए प्रयोग करता रहता है । प्रकृति से उत्पन्न 23 तत्त्व ( बुद्धि , अहंकार , 11 इंद्रियां , 5 तन्मात्र और 5 महाभूत ) पुरुष के टूल्स हैं जिनका प्रयोग करके पुरुष संसार को भोग एवं समझ कर कैवल्य प्राप्त करता है।
अब ऊपर व्यक्त कैवल्य पाद के तीन सूत्रों को देखें
वस्तु साम्ये चित्त भेदात् तयोः विभक्तः पंथा:
कैवल्यपाद - 15
न च एक चित्त तंत्रम् वस्तु तत् प्रमाणकम् तदा किं स्यात्
कैवल्यपाद - 16
तदुपरागा पेक्षित्वात् चित्तस्य वस्तु ज्ञाताज्ञातम्
कैवल्यपाद - 17
~~ॐ~~
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