बहुत सीधा समीकरण है ; साधना का चाहे जो भी मार्ग हो , सबमें साधना की विधियों का अभ्यास निरंतर करते रहना होता है । अभ्यास से अपर वैराग्य के आयाम में प्रवेश मिलता है और अपर वैराग्य , पर वैराग्य में पहुंचाता है । पर वैराग्य तक पहुंचते - पहुंचते परोक्ष ज्ञान की सिद्धि मिल गई होती है और प्रत्यक्ष ज्ञान की यात्रा प्रारंभ हो गई होती है । परोक्ष ज्ञान उधार का ज्ञान होता है जो आगे चल कर प्रत्यक्ष ज्ञान में बदल जाता है। बुद्धि , सात्त्विक अहंकार , मन और इंद्रियों के माध्यम से चित्त केंद्रित पुरुष को विवेक ज्ञान की प्राप्ति होती है । विवेक ज्ञान की सिद्धि विवेक निपुणता लाती है जिससे चित्त केंद्रित पुरुष को स्व बोध हो जाता है । प्रकृति और पुरुष को पृथक - पृथक समझना , स्व बोध है । स्व बोध तक की यात्रा में चित्त ( बुद्धि , अहंकार और मन ) निर्मल
पारदर्शी वस्तु जैसा हो चुका होता है , गुणों के प्रभाव से अछूता रहने लगता है और तब विज्ञान में प्रवेश मिलता है । बुद्धि , अहंकार ,11 इंद्रियों , पांच तन्मात्र और पांच महाभूतों की पकड़ से परे की अनुभूति समाधि में मिलती है जो समाधि टूटने के बाद अव्यक्तातीत होती है और वही अनुभूति विज्ञान है । विज्ञान को सांख्य एवं पतंजलि योग दर्शनों में प्रकृति - पुरुष के सूक्ष्म बोध को कहते है और वेदांत दर्शन के विभिन्न इकाईयों में आत्मा - ब्रह्म एकत्व को विज्ञान कहते हैं जिसमें माया , जीवात्मा , आत्मा और ब्रह्म के स्वरूपों के रहस्य से पर्दा उठ जाता है ।
ब्रह्म, प्रकृति - पुरुष में विभक्त सा प्रतीत होता है जिसमें प्रकृति , माया और पुरुष , स्वप्रकाशित ब्रह्म है ।
।। ॐ।।
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