पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र : 22 (पुरुष )
चितेरप्रतिसंक्रमायास्तदाकारापत्तौ स्वबुद्धिसंवेदनम्
चित्ते: + अप्रति + संक्रमाया: + तद् आकार +
आपत्तौ + स्व + बुद्धि + संवेदनम्
<> चितेः अर्थात चेतन पुरुष
# अप्रतिसंक्रमाया > अ + प्रति + संक्रमाया अर्थात निष्क्रिय
# तदाकार > तत् + आकार अर्थात जिस आकार के संपर्क में आना उसी के आकार का हो जाना ।
# स्व बुद्धि संवेदनम् अर्थात जब चित्त किसी और के आकार में आते ही उसे अपनी बुद्धि का आभास होने लगता है ( चित्त बुद्धि , अहंकार और मन के संयोग को कहते हैं ) ।
सूत्र - 22 का भावार्थ
मूलतः पुरुष निष्क्रिय है लेकिन प्रकृति से संयोग के साथ सक्रिय हो उठता है और उसे बुद्धि की संवेदनाओं का आभास होने लगता है । पुरुष , प्रकृति जनित चित्त माध्यम से संसार को देखता और समझता है ।
सूत्र भावार्थ को विस्तार से समझते हैं ….
शुद्ध चेतन पुरुष मूलतः निष्क्रिय है क्योंकि उसे सक्रिय होने के लिए तंत्र चाहिए जो उसके पास नहीं है , वह तो शुद्ध चेतन निर्गुणी तत्त्व और मूल प्रकृति तीन गुणों की साम्यावस्था को कहते हैं । जब निष्क्रिय पुरुष , निष्क्रिय , प्रसवधर्मी ,जड़ एवं त्रिगुणी प्रकृति से जुड़ता है तब मूल प्रकृति के तीन गुणों की साम्यावस्था विकृत हो उठती है जिसके फल स्वरूप त्रिगुणी बुद्धि की निष्पति होती है । बुद्धि से अहंकार , अहंकार से 11 इंद्रियों , पांच तन्मात्र और तन्मात्रो से पांच महाभूतों की निष्पति होती है ।
ये प्रकृति के कार्य रूप त्रिगुणी 23 जड़ तत्त्व चित्त केंद्रित शुद्ध चेतन पुरुष के तंत्र हैं जो उसे त्रिगुणी विषयों के भोगने एवं भोगने के बाद वैराग्य में पहुंचने में सहयोग करते हैं।
पुरुष प्रकृति को देखने एवं समझने के लिए उससे जुड़ता है और जब उसे ठीक तरह से देख और समझ लेता है तब इस अनुभव से उसे अपने मूल स्वरूप में पुनः लौटने में मदद मिलती है।
अभी तक प्रकृति अज्ञान , धर्म , अधर्म , वैराग्य ,अवैराग्य (राग ), ऐश्वर्य और अनैश्वर्य - इन 07 भावों से बधी रहती है लेकिन जब उसे यह आभास होने लगता है कि पुरुष उसे देख लिया है तब उसे अपने मूल स्वरूप का ज्ञान हो जाता है और पुरुष की भांति वह भी अपने मूल स्वरूप में लौट आती है ।
प्रकृति का मूल स्वरूप तीन गुणों की साम्यावस्था होती है । इस प्रकार प्रकृति के विकृत होने के फलस्वरूप उत्पन्न 23 तत्त्वों ( बुद्धि , अहंकार , 11 इंद्रियां, 5 तन्मात्र , 5 महाभूत ) का अपनें - अपनें कारणों में लय हो जाता है जिसे प्रकृति लय की अवस्था कहते हैं और पुरुष का स्वबोध होना अस्मिता लय कहलाता है ।
यहां इस संदर्भ में देखें पतंजलि समाधि पाद सूत्र - 19
भव प्रत्ययो विदेहप्रकृतिलयानाम्
ऐसे योगी जिनको पिछले जन्म में असंप्रज्ञात समाधि की सिद्धि मिली हुई होती है , उनको वर्तमान का जीवन प्रकृति लय एवं विदेह की अवस्था प्राप्ति के लिए मिला हुआ होता है अर्थात ऐसे योगी धर्ममेघ समाधि सिद्धि प्राप्त कर कैवल्य की प्राप्ति करते हैं । पुरुषार्थ शून्य एवं तीन गुणों की प्रतिप्रसव अवस्था को कैवल्य कहते हैं ।
।। ॐ ।।
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