Wednesday, December 4, 2024

पतंजलि कैवल्य पाद चित्त और भ्रमित स्मृति ( संकर स्मृति )


कैवल्य पाद सूत्र - 21 > चित्त और संकर स्मृति 

चित्त अंतर दृश्ये बुद्धिबुद्धेरतिप्रसंगः स्मृति संकर: च 

चित्त अंतर दृश्य , बुद्धि बुद्धे: , अतिप्रसंगः , स्मृति शंकर: च 

यहां इस सूत्र में पहला शब्द चित्त है और चौथा एवं पांचवां शब्द बुद्धि है जो चित्त के लिए प्रयोग किया जा रहा है , इसे ध्यान में रखना होगा ।

 चित्त हर पल बदल रहा है और पिछला चित्त वर्तमान चित्त का दृश्य बन जाता है , ऐसी स्थिति में वर्तमान चित्त शंकर स्मृति वाला होना चाहिए क्योंकि एक चित्त दूसरे चित्त का दृश्य है , पर ऐसा होता नहीं , क्यों ? क्योंकि चित्त एक समय में एक ही विषय को धारण करता है , यहां इस संदर्भ में देखें निम्न पिछले सूत्र - 20 को …

एकसमये च उभयानवधारणम् 

# एक समय में चित्त एक विषय को ही धारण करता है ।

अब सूत्र : 21 के शब्दार्थ को भी देख लेते हैं …

 चित्त अंतर दृश्ये का अर्थ है - एक चित्त का दूसरे चित्त द्वारा देखा जाना ।

बुद्धिबुद्धेरतिप्रसंगः बुद्धि , बुद्धे:अति प्रसंग: इस प्रकार  

यदि एक चित्त दूसरे चित्तका दृश्य है तो वह दूसरा चित्त अन्य चित्तका भी दृश्य होगा और यह क्रम यूंही चलता रहेगा

 और 

स्मृति संकर: च अर्थात ऐसी स्थिति में चित्त की स्मृति संकर हो जाएगी पर ऐसा होता नहीं !

 यहां पहले स्मृति संकर के अर्थ को समझते है …

हर पल बदल रहे चित्त के कारण स्मृतियाँ भी बदल रही हैं । जब सारी स्मृतियां एक साथ उपस्थित होंगी तक चित्त स्मृतियों को स्पष्ट रूप से न देख कर भ्रम की स्थिति में देखने लगेगा जिसे स्मृति संकर कहते हैं पर ऐसा होता नहीं क्योंकि चित्त एक कालांश में एक ही स्मृति से जुड़ सकता है जैसा ऊपर  कैवल्य पाद सूत्र - 20 में बताया जा चुका है ।

No comments: