Wednesday, February 5, 2025

पतंजलि योग सूत्र के प्राणायाम का सार


पतंजलि अष्टांगयोग में प्राणायाम रहस्य

भाग - 05 ( प्राणायाम का यह आखिरी अंक है )

पतंजलि योग दर्शन के अष्टांगयोग साधना के अंतर्गत यम , नियम , आसन के साथ प्राणायाम की योग साधना - यात्रा अब पूरी हो रही है । अष्टांगयोग के आठ अंगों में अगला अंग प्रत्याहार है । प्रत्याहार में प्रवेश करने से पहले हम एक बार अभी तक के अंगों के सार को एक बार पुनः देख लेते हैं ।

अहिंसा , सत्य , अस्तेय , ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह तत्त्वों को यम के अंतर्गत एवं शौच , संतोष , तप , स्वाध्याय तथा ईश्वर प्रणिधानि तत्वों को नियम के अंतर्गत देखा गया है। स्थिर सुखम् आसनम् , आसन की परिभाषा को भी समझा जा चुका है । श्वास - प्रश्वास , अभ्यंतर और बाह्य कुंभक के रूप में श्वास - प्रश्वास के रूप में प्राणायाम की भी साधना यात्रा पूरी हो रही है लेकिन अष्टांगयोग के अगले अंग , प्रत्याहार की यात्रा से पूर्व प्राणायाम का पूर्वावलोकन कर लेते हैं जिससे अगले अंगों की यात्रा सरल हो सके।

पतंजलि साधन पाद सूत्र : 49 - 53 में प्राणायाम को निम्न प्रकार से व्यक्त किया गया है ….

प्राणायाम के 05 अंग हैं । पहला अंग श्वास है , जिसकी साधना को पूरक प्राणायाम कहते हैं । दूसरा अंग प्रश्वास है जिसकी साधना को रेचक प्राणायाम कहते हैं । तीसरा अंग अभ्यांतर प्राणायाम । जब श्वास लेने की क्रिया पूरी होती है तब श्वास रुक सी जाती है, इस अवस्था को अभ्यांतर कहते हैं। चौथा अंग  बाह्य कुंभक है। जैसे अन्दर ली जा रही श्वास के पूरा होने पर श्वास रुक सी जाती है , जिसे अभ्यंतर कहते हैं ठीक उसी तरह बाहर निकल रही प्रश्वास भी जब पूरी होती है तब रुक जाती है, इस अवस्था को बाह्य कुंभक कहते हैं

जब प्राणायाम के पांच अंगों की सिद्धि मिल जाती है तब चित्त में राजस एवं तामस गुणों की वृत्तियां शांत हो जाती है , केवल सात्विक गुण की वृत्तियों का आवागमन बना रहता है । नियमित प्राणायाम अभ्यास से चित्त में विषय - वितृष्णा का भाव भरने लगता है और चित्त परा वैराग्य ऊर्जा के प्रभाव में समाधि मुखी रखने लगता है।

अविद्या मुक्त चित्त , क्लेश एवं दुःख मुक्त रहते हुए परमानंद की झलक पाने लगता है । पतंजलि कहते हैं , दुःख की अनुपस्थिति ही कैवल्य है ।

अगले अंक में अष्टांगयोग के पांचवें अंग प्रत्याहार की यात्रा की जाएगी ….

।। ॐ।।


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