केदार नाथ से बूढ़ा केदार की यात्रा
यात्रा मार्ग ⤵️
बूढ़ा केदार मंदिर के पुजारी जब देह त्यागते हैं तब उन्हें मंदिर परिसर में ही भूमि समाधि दी जाती है। बूढ़ा केदार के पुजारी , नाथ संप्रदाय के राजपूत (कान छिदे हुए) होते है न कि ब्राह्मण। बूढ़ा केदार क्षेत्र के लोग केदारनाथ दर्शन करने नहीं जाते।
टिहरी झील से 40 km घमसाली है जहां से जीप द्वारा लगभग 2 घंटे की 20 - 25 km की यात्रा , बूढ़ा केदार की है। बाल गंगा नदी के समानांतर घमसाली से उत्तर - पश्चिम दिशा में बूढ़ा केदार का मंदिर बालगंगा एवं धर्म गंगा संगम पर स्थित है। केदारनाथ मंदिर हरिद्वार से लगभग 215km सड़क मार्ग से तथा लगभग 20 km की चढ़ाई की यात्रा है । यह मंदाकिनी के तट पर स्थित है । बूढ़ा केदार में रुकने के लिए सीमित धर्मशालाएँ उपलब्ध है।
केदारनाथ से बूढ़ा केदार के यात्रा मार्ग का विस्तृत विवरण ⤵️
1.यात्रा केदारनाथ मंदिर से दक्षिण - पश्चिम दिशा में स्थित सोनप्रयाग की खड़ी उतराई से प्रारंभ होती है।
2. सोनप्रयाग से आगे त्रिजुगीनारायण पहुंचते। सोनप्रयाग से त्रिजुगीनारायण तक का मार्ग घने जंगलों और ढलानों से होकर गुजरता है। यह स्थान एक प्राचीन विष्णु मंदिर के लिए प्रसिद्ध है और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह स्थान शिव-पार्वती विवाह का स्थान है ।
3.त्रिजुगीनारायण से पंवाली कांठा की चढ़ाई शुरू होती है। यह मार्ग का सबसे दुर्गम हिस्सा है, जहाँ खड़ी चढ़ाई , खड़ी ढलान और संकरे रास्ते हैं। मौसम साफ होने पर यहाँ से हिमालय के शानदार दृश्य दिखाई देते हैं।
4.पंवाली कांठा से उतरकर घुत्तू गाँव पहुँचते हैं, जिसके आगे हटकुणी गाँव आता है जहां स्थानीय घरों में आवास या भोजन की सुविधा उपलब्ध है।
5.हटकुणी से विनयखाल होते हुए बूढ़ा केदार मंदिर पहुंचते हैं ।
यात्रा की प्रमुख चुनौतियाँ और सुझाव
अप्रैल-जून में बर्फबारी से रास्ता कठिन हो जाता है। पंवाली कांठा दर्रा विशेष रूप से खतरनाक है। यात्रा में 4-5 दिन लगते हैं। अनुभवी ट्रेकर्स या स्थानीय गाइड के साथ समूह में यात्रा करनी चाहिए। आवश्यक सामान (टेंट, राशन, फर्स्ट-एड किट) साथ ले जाएँ। मई-जून और सितंबर-अक्टूबर उपयुक्त महीने हैं। जुलाई-अगस्त (मानसून) में भूस्खलन और सर्दियों में भारी बर्फबारी से बचें ।
रास्ते में आवास और भोजन की सीमित सुविधाएँ हैं। बूढ़ा केदार में शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।
मार्ग के धार्मिक और प्राकृतिक आकर्षण
मान्यता है कि इस मार्ग से पांडव स्वर्गारोहण के लिए गए थे और बूढ़ा केदार में शिव ने उन्हें वृद्ध संन्यासी के रूप में दर्शन दिए थे । बूढ़ा केदार के दर्शन के बिना केदारनाथ यात्रा अधूरी मानी जाती है। यात्रा के दौरान महासर ताल, सहस्त्र ताल जैसी झीलें और बालखिल्य ऋषि आश्रम भी देखना चाहिए । बालगंगा-धर्मगंगा का संगम अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है। बूढ़ा केदार को पांचवाँ धाम कहा जाता है, क्योंकि यह यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ के मध्य स्थित है ।
स्थानीय लोग अक्सर केदारनाथ की बजाय बूढ़ा केदार के दर्शन को ही पर्याप्त मानते हैं, क्योंकि यहाँ के शिवलिंग की महत्ता केदारनाथ के समान है । यह यात्रा धार्मिक श्रद्धा और प्राकृतिक साहसिकता का अनूठा संगम है, लेकिन इसे केवल अनुभवी पैदल यात्रियों या स्थानीय गाइड की सहायता से ही करना उचित है। यात्रा ग्रुप में करनी चाहिए।
प्राचीन काल में यह केदारनाथ जाने का प्रमुख मार्ग था।
बूढ़ा केदार मंदिर परिसर में 18 फीट गहरा कुआँ है, जिसके जल से गौमय की गंध आती है । इस कुआं को भोलागंगा कूप या गौमुख कूप भी कहा जाता है।
पानी से आने वाली गौमय (गोबर जैसी ) गंध के बारे में कुछ प्रमुख बातें ….
भूगर्भीय दृष्टिकोण से, उत्तराखंड का यह क्षेत्र युवा हिमालय पर्वतमाला में स्थित है, जहाँ विभिन्न प्रकार की चट्टानें और खनिज मौजूद हैं। ऐसा संभव है कि कुएँ के जलस्रोत में सल्फर (गंधक) या अन्य खनिजों की अधिक मात्रा मौजूद हो , हाइड्रोजन सल्फाइड (H₂S)जैसी गैसें, जो प्राकृतिक रूप से कुछ भूमिगत जलस्रोतों या ज्वालामुखीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं जो सड़े हुए अंडे या गोबर जैसी तीखी गंध पैदा करती हैं। पानी में कार्बनिक पदार्थों के विघटन से भी ऐसी गंध उत्पन्न हो सकती है, विशेषकर अगर जल प्रवाह धीमा हो या स्रोत सीमित हो। मान्यता है कि इस कुएँ का पानी अमृततुल्य है और इसका सेवन करने से पापों का नाश होता है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। श्रद्धालु इस पानी को पीते हैं और अपने साथ ले जाते हैं। यह गंध उनके लिए इसकी पवित्रता और दिव्यता का प्रमाण होती है।
गंध का वास्तविक कारण की वैज्ञानिक संभावना
यह गंध स्थानीय भूगर्भीय विशेषताओं का परिणाम है।
भूजल में हाइड्रोजन सल्फाइड (H₂S)गैस मिलने पर सड़े अंडे या गोबर जैसी तीखी गंध आती है। उत्तराखंड के कई हॉट स्प्रिंग्स (जैसे सूरतकुंड, गरम पानी) में यह गंध मिलती है। सीमित भूमिगत जलभृत में कार्बनिक पदार्थों (पत्तियाँ, मिट्टी) के सड़ने से भी ऐसी गंध उत्पन्न हो सकती है। चूना पत्थर (लाइमस्टोन), शेल या जिप्सम युक्त चट्टानों के संपर्क में आने वाला जल कभी-कभी अजीब गंध देता है।
इस संबंध में निम्न दो अन्य उदाहरण भी देखें ..
1.हरिद्वार के हर की पौड़ी के जल में भी कभी-कभी विशिष्ट गंध आती है, जिसका कारण जैविक/खनिज तत्व हैं, पर श्रद्धालु इसे गंगा की पवित्रता मानते हैं।
2.प्रयागराज में भारद्वाज कूप के पानी में भी सल्फर गंध है, जिसे पवित्र माना जाता है।
।। ॐ ।।
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