Wednesday, March 6, 2013

वह दिन और आज का दिन

सब कुछ तो बदल रहा है .....

कुछ लोग पार्टी बदल रहे हैं
कुछ लोगों का देश बदल रहा है
कुछ लोगों का धर्म बदल रहा है
कुछ लोग घर बदल रहे हैं
कुछ लोग गाँव  बदल रहे हैं
कुछ लोग अपनी भाषा बदलें में लगे हैं
कुछ अपना खान - पान बदलनें में लगे हैं
कुछ पाठशाला बदल रहे हैं
कुछ अपना पेशा बदल रहे हैं
लेकिन बहुत दुःख होता है ......
यह देख कर कि -----
कोई स्वयं को बदलनें के लिए कभीं सोचता भी नहीं /
क्या होगा यह सब बदलनें से जबतक हम स्वयं को नहीं बदलते ?
भाषण से इमानदारी आयेगी ?
परिस्थितियों को बदलनें से क्या संसार बदलेगा ?
मंदिर बदलनें से क्या भगवान बदलेगा ?
धर्म बदलनें से क्या प्राकृतिक नियम बदलेंगे ?
भाषा बदलनें से क्या हम अंग्रेज बन जायेंगे ?
पोशाक बदलनें से क्या हम बदल जायेंगे ?

कुछ नहीं बदलता , जबतक हम स्वयं को नहीं बदलते ,  हम रुके हुए हैं एक जगह और परेशान हैं कि यह सब क्या हो रहा है ? यह सब जो हो रहा है सा दिख रहा है वह सब हमारा अपना भ्रम है , वस्तुतः कुछ नहीं हो रहा , मात्र हम रुक - रुक कर स्वप्न देख रहे हैं , स्वप्न तबतक प्यारा होता है जबतक देखा जाता है और ज्योंही आँख खुलती है , हम कहीं होते हैं और हमारा स्वप्न हमपर हसता रहता है और मौन में कहता है , अब देख तूं कि कितना बुद्धिमान है ; जबतक तेरी ऑंखें बंद थी , सब सत्य था लेकि जब आँखे खुली तो वह सत्य असत्य में बदल गया , अब तूं soc



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