Saturday, March 30, 2013

आखिर उसे भूल न सकोगे


  • परमात्मा में कोई  बसना नहीं चाहता ....
  • परमात्मा भोग संसार  में नहीं टिकनें देता ....
  • हम दुःख नहीं चाहते और दुःख बिना सुख को समझते भी नहीं ....
  • हम दुःख के झोपड़े में सुख की बीन बजाना चाहते हैं और सुख  के महल का हमें कोई अनुभव नहीं ...
  • हम जिसे अपना बनाते हैं वही एक दिन पराया हो जाता है .....
  • हम भूल जाते हैं कि सभीं अपनें एक दिन पराये ही तो थे ....
  •  पुनः जब वे पराया बन जाते हैं फिर हमें दुःख क्यों होता है ?



  1. काम को परम का दर्जा देते हैं और परम का गुण गान करते हैं मात्र कामना पूर्ति के लिए ...
  2. हमारी चाह हमें संसार से जोड़ रखी है और बिना चाह वाला प्रभु में बसा होता है ....
  3. अहँकार की कडुआहट को बिना समझे उसे अपनाए हुए हैं और चैन से रहना भी चाहते हैं ...
  4. क्रोध की रस्सी में अपना पैर बाध रखे हैं और परम की ओर दौडना भी चाहते हैं ....
  5. राग में डूबे हैं और वैराज्ञ को समझना चाहते हैं ....
  6. आँखों से मोह की ऊर्जा है और देखना चाहते हैं योगीराज मोहन को .....


आखित हम चाहते क्या हैं ? क्या  बिना उसके हमारा अस्तित्व संभव है ?
चाहे लाख उपाय करलो , लेकिन उसे अपनें ह्रदय से निकाल न सकोगे 
फिर 
क्यों नहीं उसे अपना लेते ?

=== ओम् ====


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