- परमात्मा में कोई बसना नहीं चाहता ....
- परमात्मा भोग संसार में नहीं टिकनें देता ....
- हम दुःख नहीं चाहते और दुःख बिना सुख को समझते भी नहीं ....
- हम दुःख के झोपड़े में सुख की बीन बजाना चाहते हैं और सुख के महल का हमें कोई अनुभव नहीं ...
- हम जिसे अपना बनाते हैं वही एक दिन पराया हो जाता है .....
- हम भूल जाते हैं कि सभीं अपनें एक दिन पराये ही तो थे ....
- पुनः जब वे पराया बन जाते हैं फिर हमें दुःख क्यों होता है ?
- काम को परम का दर्जा देते हैं और परम का गुण गान करते हैं मात्र कामना पूर्ति के लिए ...
- हमारी चाह हमें संसार से जोड़ रखी है और बिना चाह वाला प्रभु में बसा होता है ....
- अहँकार की कडुआहट को बिना समझे उसे अपनाए हुए हैं और चैन से रहना भी चाहते हैं ...
- क्रोध की रस्सी में अपना पैर बाध रखे हैं और परम की ओर दौडना भी चाहते हैं ....
- राग में डूबे हैं और वैराज्ञ को समझना चाहते हैं ....
- आँखों से मोह की ऊर्जा है और देखना चाहते हैं योगीराज मोहन को .....
आखित हम चाहते क्या हैं ? क्या बिना उसके हमारा अस्तित्व संभव है ?
चाहे लाख उपाय करलो , लेकिन उसे अपनें ह्रदय से निकाल न सकोगे
फिर
क्यों नहीं उसे अपना लेते ?
=== ओम् ====
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