- बुद्ध कहते हैं , अब बस्ती रहनें लायक नहीं ----
- नौजवान बस्ती से दूर शहर की ओर पलायन कर रहे हैं ----
- स्त्रियाँ कहती हैं , अब गाँव रहनें लायक नही रहा -----
- बेटियाँ कहती हैं , अब बस्ती की हवा ठीक नहीं ----
- बुड्ढे कहते हैं , अंगरेजों का जबाना ठीक था -----
- पशु कहते हैं , अब बस्ती में गुजारा नहीं होता ----
आखिर , आखिर बस्ती [ गाँव ] के मोहौल को कौन बरबाद कर रहा है ?
- गाँव के लोग शरह की ओर भाग रहे हैं .....
- गाँव के किसानों की जमीनें बेटियों की शादी में बिक रहा हैं .....
- चाहे गाँव हो या शहर , सभीं जगह काम की गहरी छाया है ....
- काम के सम्मोहन में मनुष्य मनुष्य नहीं हेवान बन चुका है ....
नर हों या नारियाँ , लड़के हों या लडकियां सभीं जो हैं जैसे हैं वैसे अपनें को नहीं दिखाना चाहते , क्यों ?
बुड्ढे अपनें को बुड्ढा समझनें की गलती कभीं नहीं करते ....
सिर के बाल , दाढ़ी , मूंछ सफ़ेद हो चुके हैं , उनकी उम्र को छिपानें की पूरी ब्यवस्था की जा चुकी है ....
नारियों के वस्त्रों की डिजाइन को देखिये , उनके अंदर से जैसे कामदेव झाँक रहे हों ....
आखिर आज के मनुष्य को क्या हो गया है ?
वह अपी असलियत को क्यों छिपा रहा है ?
वह प्रकृति के साथ क्यों खिलवाड कर रहा है ?
आज एक नहीं अनेक प्रश्न हैं जिन पर यदि गहराई से ध्यान न दिया कया तो -----
जैसे वर्तमान से पूर्व की सभीं सभ्यताएं पृथ्वी के अंदर दब चुकी है ....
वैसे ---
वर्तमान की सभ्यता भी , पृथ्वी के अंदर विश्राम करनें लगेगी //
==== ओम् =====
2 comments:
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (20-03-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
सूचनार्थ |
बहुत सार्थक प्रस्तुति...
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