Tuesday, June 11, 2013

सरस्वती सरिता

Title :कुछ कथाएं भागवत से :--- Content: कुछ कथाएं भागवत से कलि युग के आगमन तक.... महाभारत युद्ध के समापन तक.... प्रभु श्री कृष्ण के परम धाम यात्रा तक... द्वारका का समुद्र में विलीन होने तक ... परीक्षित के पुत्र जनमेजय के समय तक.... हिमालय से चल कर प्रभास क्षेत्र में पश्चिम मुखी हो कर अरब सागर में अपनें को अर्पित करनें वाली परम पवित्र नदी सरस्वती एक निर्मल उर्जा क्षेत्र की जननी थी । सरस्वती के दोनों तटों पर द्वापर युग के लगभग सभीं परम सिद्ध योगियों के आश्रम हुआ करते थे । भागवत के आधार पर सरस्वती ब्रह्मावर्त क्षेत्र में पूर्व मुखी बहती थी । ब्रह्मावर्त महाराजा मनु का क्षेत्र था जो यमुना के तट पर शूरसेन एवं कुरुक्षेत्र (कुरुक्षेत्र नगर नहीं , क्षेत्र ) के मध्य का भाग था । ब्रह्मावर्त में प्रभु विष्णु भगवान वाराह अवतार में पृथ्वी को रसातल से निकाल कर लाया था । सूकर के रूप में पृथ्वी के भार से प्रभु की देह में कुछ कम्पन हुआ और फल स्वरुप उनके कुछ रोम झड गए थे जो कुश और काश के रूप में उगे । कुश का पयोग धार्मिक कार्यों में नकारात्मक शक्तितों से बचाव के लिए किया जाता है । ब्रह्मावर्त के सम्राट मनु अपनीं पुत्री देवहूति का ब्याह कर्मद ऋषि के किया जिसके गर्भ से विष्णु अवतार रूपमेंकपिलमुनिकाजन्महुआ।विन्दुसरोवर पर कर्मद ऋषि का आश्रम हुआ करता था । सरस्वती नदी के पश्चिमी तट पर जहाँ बेर का जंगल हुआ करता था , वहाँ शम्याप्रास आश्रम था जहां हर समय यज्ञ हुआ करते थे । शाम्याप्रास के साथ वेदव्यास जी का भी आश्रम था जहाँ भागवत की रचना हुयी और व्यास ही सर्वप्रथम भागवत की कथा अपने पुत्र शुकदेव जी को सुनाया था । कुरुक्षेत्र में महाभारत युद्ध के समय पांडवो की सेना सरस्वती के पश्चिमी तट पर रुकी थी अर्थात शम्याप्रास एवं जहाँ महाभारत युद्ध हुआ ( कुरुक्षेत्र ) दोनों जगह सरस्वती का रुख उत्तर से दक्षिण की ओर रहा होगा जब की ब्रह्मावर्त में इनका रुख पश्चिम से पूर्व की ओर था । जिस समय प्रभास क्षेत्र में ब्रिष्णी , भोज , अन्धक बंशीलोग वारुणी मदिरा पी कर आपस में लड़ रहे थे उस समय सूर्यास्त हो चला था और प्रभु सरस्वती नदी - तट पर मैत्रेय के साथ एक पीपल पेड़ के नीचे वैठे थे । :::: ॐ ::::::

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