कतरन -12
जरा सोचना :----
# नदियोंके साथ ---- # पहाड़ोंके साथ --- # जंगलोंके साथ --- # पेड़ोंके साथ ---- # समुद्रके साथ ---- # पशुओंके साथ ---
और अब
अंतरिक्षके साथ --- अपनें परिवार के साथ एवं स्वयं अपनें साथ --- हम सब क्या कर रहे हैं ?
# प्रकृति प्रभुको देखनेंका आइना है ।
* वैज्ञानिक , दार्शनिक , कवि , लेखक , ऋषि और अन्य सत्यके खोजी एक प्रभुके अनेक रूपों में देखा और उपनिषद्के ऋषियोंनें यह भी नहीं , वह भी नहीं अर्थात नेति - नेति के माध्यम से सबको ऐसे मार्ग पर रखना चाहा जो प्रकृति दर्पण पर ही हम सबका ध्यान केंद्रित रखती है।
# और#
आज हम सब इस प्रकृति - दर्पणके अस्तित्व को ही समाप्त करनें पर जुटे हुये हैं । # फ्रेडरिक नितझे आज से 60 साल पहले मनुष्यके मनोविज्ञानके रुखको भाफ गया और एक दिन बोल उठा कि :----
" प्रभु मर चुका है , उसे हम सब मार चुके हैं अब वह कभीं नहीं उठेगा और हम सब आजाद हैं ।
~~~ ॐ ~~~
Friday, May 8, 2015
कतरन - 12
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