Wednesday, July 7, 2021

श्रीमद्भागवत पुराण से - 1

 💐 प्रभु श्री कृष्ण - उद्धव वार्ता के अंतर्गत स्कन्ध : 11 , अध्याय : 21 और श्लोक - 15 के माध्यम से धर्म के सम्बन्ध में जो कहा गया है , उसे आप यहाँ स्लाइड में देख रहे हैं 

1# यहाँ देश का अर्थ है स्थान जहाँ हम हैं अर्थात जिस समय जहाँ हम रह रहे होते हैं , वह स्थान साधना की दृष्टि में हमारा देश कहलाता है।

2 # काल का भाव है समय अर्थात जिस घडी जिस देश में हम होएभिं , वह घडी काल कहलायगी ।

3 # पदार्थ का भाव है उपयोग की जा रही वस्तु ।

4 # कर्ता अर्थात हम स्वयं 

5 # मन्त्र अर्थात वेद - उपनिषद् के वचन जिसे हम उस समय  बोल रहे होते हैं ।

6 # कर्म ; कर्म वह जिसे हम अपनें जीवन को बनाये रखने के लिए उस घडी कर रहे होते हैं । श्वास लेने से लेकर अन्य सभीं क्रियाएं कर्म कहलाती हैं । हम दो के योग से हैं ; माया अर्थात 03 गुणों का एक अति सूक्ष्म अव्यक्त माध्यम जिससे बुद्धि , अहँकार , 11 इन्द्रियां , 05 तन्मात्र और 05 महाभूत अर्थात 23 तत्त्व हैं और इन 23 तत्त्वों से हम हैं । दूसरा तत्त्व है आत्मा । आत्मा प्रभु के ब्रह्म ऊर्जा का एक कण जैसा है जिसकी ऊर्जा संपूर्ण 23 तत्त्वों को  विकिरण माध्यम से ऊर्जा देती रहती है । इस प्रकार यह हृदय में स्थित आत्मा संपूर्ण 23 तत्त्वों को जड़ से चेतन और निष्क्रिय से सक्रीय बनाये रखता है । 

💐प्रभु श्री कह रहे हैं , ऊपर व्यक्त 06 तत्त्वों को शुद्ध बनाये रखना ही हम सबका धर्म है ।



// ॐ //

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