Friday, October 29, 2021

पतंजलि अष्टांगयोग

 


पतंजलि अष्टांग योग 

पतंजलि अष्टांगयोग 16 तत्त्वों की साधना है जो राग से वैराग्य , वैराग्य से समाधि तक की यात्रा कराती है और अंततः कैवल्य के द्वार को दिखाती है जहाँ से मोक्ष में प्रवेश मिलता है ।

अष्टांगयोग के निम्न 08 अंगों में यम - नियम के 05 - 05 अंग हैं जिनको आगे चल कर देखा जाएगा । ऊपर बताये गए 16 तत्त्वों में यम - नियम के 10 तत्त्व और शेष अष्टांगयोग के 06 अंग आते हैं ।

श्रीमद्भगवत पुरं में यम - नियम के 12 - 12 तत्त्व बताये गए हैं जिनको विस्तार से आगे चल कर देखा जा सकता है ।

☝ऊपर अष्टांगयोग के 08 अंगों को दिखया गया है 

पतंजलि योग सूत्र दर्शन में अष्टांगयोग को समझने के लिए निम्न सन्दर्भों को देखना चाहिए ⬇️


1 - पतंजलि साधन पाद सूत्र : 1+10+ 28 - 55

2 - पतंजलि विभूति पाद सूत्र : 1 - 5


➡️ अष्टांगयोग से चित्त की वृत्तियों के क्षीण होने से सम्प्रज्ञात समाधि तक की  योग साधना - यात्रा होती है । 

सम्प्रज्ञात समाधि से आगे की यात्रा में संयम , एकाग्रता , असम्प्रज्ञात समाधि , कैवल्य और मोक्ष की होती है ।

➡️ सम्प्रज्ञात समाधि आलंबन आधारित समाधि है जिसे सबीज समाधि या साकार समाधि भी कहते हैं ।

अष्टांगयोग के अंतिम 03 अंग > धारणा , ध्यान और समाधि की एक साथ सिद्ध का घटित होना , संयम है , ➡️इसे ऐसे समझें ! 

जब योगासन में बैठ कर धारणा की साधना हो रही हो और धारणा सिद्धि के साथ - साथ ध्यान की भी सिद्धि मिल रही हो तथा ध्यान के साथ - साथ सम्प्रज्ञात समाधि में उतरना घटित होता हो और यह बार - बार हो रहा हो तब उस योगी का चित्त संयम आयाम में होता है । यहां इस आयाम में चित्त से राजस - तामस गुणों की वृत्तियों का प्रभाव नष्ट हो  गया होता है और चित्त में केवल सात्त्विक गुण की वृत्तियों की ऊर्जा बह रही होती है ।


अब आइये ! इस अनंत की यात्रा पर ⬇


इस यात्रा का प्रारंभ यम से होता है और यात्रा समाधि में लीन हो जाती है । 

पतंजलि योग दर्शन 04 पादों में विभक्त हैं जिनमें कुल 195 सूत्र हैं जैसा निम्न स्लाइड में दिखाया जा रहा हैं। 

पतंजलि के ये 195 सूत्र गणित - सूत्र की भांतिभां जिनमें से किसी एक को हटाया नहीं जा सकता । के 195 सूत्र योग परिभाषा से प्रारंभ हो कर मोक्ष तक की यात्रा कराते हैं । 

वह जो सांख्य दर्शन के 72 कारिकाओं और पतंजलि योग दर्शन के 195 सूत्रों से परिचय करने में असमर्थ रहा हो , उसका आध्यात्मिक जीवन अधूरा ही रहता है ।

पतंजलि योग सूत्र में अष्टांगयोग ⬇️

पतंजलि अष्टांगयोग को निम्न सन्दर्भों की मदद से समझा जा सकता है ⬇️

 1 - पतंजलि साधन पाद सूत्र : 1+10+ 28 - 55

2 - पतंजलि विभूति पाद सूत्र : 1 - 5 

अब पतंजलि के इन सूत्रों को देखते हैं ⬇️


साधन पाद सूत्र : 1 + सूत्र - 10👇

➡️ साधन पाद सूत्र - 01

क्रियायोग की परिभाषा ⬇️

# तप , स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान को आगे स्पष्ट किया है #

➡️पतंजलि साधन पाद सूत्र : 10 👇

सूत्र भावार्थ 

क्रियायोग से क्लेष क्षीण तो हो जाते हैं, लेकिन उनके सूक्ष्म बीज अभीं भी रहते हैं , क्लेष निर्मूल नहीं होते । अनुकूल परिस्थिति आने पर इनका अंकुरण होना संभव है ।

पतंजलि  साधन पाद सूत्र : 28 - 55 ⬇️

➡️पतंजलि साधन पाद सूत्र : 28

अष्टांगयोगसे क्या मिलता है ? 

सूत्र रचना 

योग अंग अनुष्ठानात् अशुद्धि : क्षये

ज्ञानदीप्तिरा विवेक ख्याते : 

सूत्र शब्दार्थ 

अष्टांगयोग अंगों के  अनुष्ठान से अशुद्धियाँ नष्ट होती हैं और ज्ञान - प्रकाश विवेक ख्याति तक होता है ।

चित्तकी राजस - तामस गुणों वाली भूमियाँ निर्मूल हो जाती हैं और सबीज समाधि मिलती है । अब इसे और समझते हैं ;  

चित्त की निम्न 05 भूमियाँ / अवस्थाएँ हैं ⬇️

इन 05 भूमियों में से क्षिप्ति , मूढ़ और विक्षिप्त राजस एवं तामस गुण प्रभावित भूमियाँ हैं जो भोग से जोड़ कर रखती हैं और शेष दो भूमियाँ सत् गुण आधारित भूमियाँ हैं जो योग से जोड़ती हैं।

पतंजलि साधन पाद सूत्र : 28 (ऊपर दिया गया है ) में कह रहे हैं , " अष्टांगयोग अंगों के  अनुष्ठान से अशुद्धियाँ नष्ट होती हैं और ज्ञान - प्रकाश विवेक ख्याति तक होता है " अर्थात चित्त में निर्मल ऊर्जा बहने लगती है ।

➡️पतंजलि साधन पाद सूत्र : 29

यहाँ अष्टांग

योग के निम्न  08 अंग बताये जा रहे हैं ⬇️


अष्टांगयोग अंग : 1 और  2 *  यम और नियम ) में प्रवेश करने से पहले निम्न को देखते हैं ⤵️


क्रमशः ⤵️

क्रमशः ⤵️


क्रमशः ⤵️


अब आगे पतंजलि योग सूत्र में उतरते हैं⤵️

अष्टांगयोग अंग - 1 यम के 05 अंग⬇️


➡️पतंजलि साधन पाद सूत्र - 30



ऊपर सूत्र में यम के निम्न 05 अंग बताये गए  हैं ⬇️

यम ⬇️

➡️पतंजलि साधन पाद सूत्र - 31

➡️ यम के 05 अंगों का व्रत जाति , देश , काल और समय आदि से खण्डित नहीं होना चाहिए । जब यह जीवन का अभिन्न अंग बन जाएं तब उस स्थिति को महाव्रत कहते हैं ।


नियम ⬇️


➡️पतंजलि साधन पाद सूत्र - 32 अष्टांगयोग दूसरा अंग नियम


इस सूत्र में नियम के निम्न 05 अंग दिखाये गए हैं  ⬇️


➡️ पतंजलि साधन पाद सूत्र - 33

यम - नियम


➡️पतंजलि साधन पाद सूत्र - 34 

यम - नियम

यह सूत्र सूत्र - 33 का क्रमशः है । इस सूत्र - 34 में बताया जा रहा है ⤵️

यम - नियम साधना में लोभ , क्रोध और मोह के प्रभाव में निम्न 03 रूपों में रुकावटें उठती हैं ⬇️

1 - स्वयं करने के लिए प्रेरित करती हैं ..

2 - किसी अन्य से करवाने के लिए प्रेरित करती हैं ..

3 - अनुमोदित हो सकती हैं ।

इन की तीब्रता भी 03 प्रकार की होती हैं ⤵️

मृदु , मध्य और तीव्र 

इन वितर्कों से बचने के केवल एक उपाय है  ; इनसे अनंत काल तक मिलने वाले अज्ञान - दुःख के सम्बन्ध में नियमित मनन करते रहना चाहिए ।



➡️पतंजलि साधन पाद सूत्र - 35 


➡️यम का पहला अंग - अहिंसा⬇️

अहिंसक से मित्रता बनाने और उसकी संगती करने से अहिंसक बना जा सकता है ।

अहिंसा क्या है ?

तन और मन से किसी जड़ - चेतन को हानि न पहुँचाने का भाव , अहिंसा है ।

➡️पतंजलि साधन पाद सूत्र - 36⬇️


यम का दूसरा अंग - सत्य⬇️

सूत्र भावार्थ ⬇️

सत्य सिद्धि प्राप्त योगी की क्रियाएं और उनके फल उसके नियंत्रण में होते हैं अर्थात 

ऐसे योगी के कर्म और उनके फल उसके नियंत्रण में होते हैं ।


➡️साधन पाद सूत्र - 37⬇️


यम का तीसरा अंग - अस्तेय⬇️



अस्तेय का अर्थ है चोरी न करना । 

अस्तेय में प्रतिष्ठित , सभीं रत्नों का उपस्थान होता है 

अर्थात ऐसा योगी सर्वसम्पन्न होता है ।


➡️साधन पाद सूत्र - 38⬇️


यम का चौथा अंग - ब्रह्मचर्य ⬇️



सूत्र भावार्थ : 

ब्रह्मचर्य सिद्धि प्राप्त योगी को वीर्य लाभ मिलता है अर्थात उसके पास असीमित ऊर्जा होती है ।


➡️साधन पाद सूत्र - 39⬇️


यम का पाँचवां अंग - अपरिग्रह ⬇️


अपरिग्रह का अर्थ है , वस्तुओं का संग्रह न करना । 

 बहुत कठिन है , अपरिग्रह - साधना । 

सूत्र कह रहा है , अपरिग्रह सिद्ध योगी केवल जिज्ञासा मात्र से अपनें जन्म के बिषय में जान लेता है अर्थात ऐसा योगी यह जनता है कि उसे अपनें वर्तमान जीवन में क्या करना है ।

अष्टांगयोग का दूसरा अंग नियम ⬇️

नियम का पहला अंग शौंच ⬇️

पतंजलि साधन पाद सूत्र - 40⬇️

शौंच का अर्थ है अंदर - बाहर की निर्मलता

स्व अंगों की नियमित होशपूर्ण सफाई करते रहने से उनसे निकलनेवाले मल को देखते रहने से अपनें ही अंगों के प्रति घृणा होने लगती है ।

इस तरह निरंतर इस बिषय पर चिंतन करते रहने से दूसरे के शारीरिक अंगों को स्पर्श न करने का भाग जागृत होने लगता है ।


शौंच क्रमशः⬇️

➡️साधन पाद सूत्र - 41⬇️


◆आतंरिक शौंच सिद्धि से निम्न 05 योग्यताएँ मिलती हैं⬇

1 - बुद्धि निर्मल होती है ..

2 - मन शांत रहता है ..

3 - एकाग्रता साधना में सहयोग मिलता है ..

4 - इंद्रियों पर पूर्ण नियंत्रण रहता है ..

5 - आत्म दर्शन में मदद मिलती है ।


नियम का दूसराअंग संतोष ⬇️

➡️साधन पाद सूत्र - 42⬇

" संतोष से सर्वोच्च लाभ मिलता है "


नियम का तीसरा अंग तप ⬇️

➡️साधन पाद सूत्र - 43⬇️

सूत्र रचना ⤵️

काया इन्द्रिय सिद्धि : अशुद्धि क्षयः तपः 

भावार्थ ⤵️

तप सिद्धि से अशुद्धियों का क्षय होता है और

काया - इंद्रियों की सिद्धि मिलती है ।

अशुद्धि क्या है ? राजस - तामस गुणों की वृत्तियों का प्रभाव अशुद्धि है ।


नियम का चौथा अंग स्वाध्याय ⬇️

➡️साधन पाद सूत्र - 44⬇️

" स्वाध्याय सिद्धि से इष्ट देवता से मिलना होता है "


नियम का पांचवां अंग ईश्वर प्रणिधान


➡️ साधन पाद सूत्र - 45⬇

 ईश्वर के सम्बन्ध में पतंजलि समाधि पाद 

सूत्र : 23 - 29 तक को देखना चाहिए ।

ईश्वर प्रणिधान से सम्प्रज्ञात समाधि मिलती है ।


अष्टांगयोग का तीसरा अंग आसन


साधन पाद सूत्र - 46⬇️

" जिस मुद्रा में स्थिर सुख मिले , उसे आसन कहते हैं "


अष्टांगयोग का तीसरा अंग आसन क्रमशः

साधन पाद सूत्र - 47⬇️


आसन सिद्धि प्राप्त योगी का चित्त सहज अभ्यास से अनंत पर स्थिर हो जाता है ।


अष्टांगयोग का तीसरा अंग आसन क्रमशः


साधन पाद सूत्र - 48⬇

अष्टांगयोग का तीसरा अंग आसन क्रमशः

आसन सिद्धि प्राप्त योगी सभीं प्रकार के द्वंदों से मुक्त होता है ।


अष्टांगयोग का  चौथा अंग प्राणायाम

साधन पाद सूत्र - 49⬇

पूरक , रेचक और कुम्भक को प्राणायाम के अंगों के रूप में देखा जाता है ।

पूरक - रेचक अभ्यासः में श्वास का स्वतः रुक जाना प्राणायाम है


अष्टांगयोग का  चौथा अंग प्राणायाम

क्रमशः ⬇️

साधन पाद सूत्र - 50⬇️

पूरक , रेचक और कुम्भक देश , काल एवं संख्या में दीर्घ एवं सूक्ष्म होने चाहिए ।


चौथे प्रकार का प्राणायाम⬇️

साधन पाद सूत्र - 51⬇️

यहाँ पतंजलि चौथे प्रकार के प्राणायाम की ओर इशारा कर रहे हैं ।इस प्राणायाम को केवली प्राणायाम भी कहा जाता है ।

बिना पूरक , रेचक और कुम्भक किये सीधे श्वास का रुक जाना , बाह्य अभ्यंतर या बाह्य कुम्भक कहलाता है ।


पतंजलि साधन पाद सूत्र : 52- 53⬇️

प्राणायाम की सिद्धि से प्रकाश पर पड़ा आवरण क्षीण हो जाता है अर्थात अविद्या का अंत हो जाता है और धारणा में चित्त लग जाता है 

अष्टांगयोग का पांचवां अंग प्रत्याहार ⬇️


पतंजलि साधन पाद सूत्र - 54

इंद्रियों का अपनें - अपनें बिषयों से विमुख हो कर चित्त स्वरूपाकार हो जाना प्रत्याहार है ।


साधन पाद सूत्र - 55⬇️


प्रत्याहार 

" सिद्धि मिलने पर पूर्ण रूपेण इन्द्रियाँ बश में रहती हैं "

प्रत्याहार > प्रति + अहार अर्थात इंद्रियों का अपनें - अपनें बिषयों से आकर्षित न होना ।

अष्टांगयोग का  छठवां , सातवाँ और आठवां  अंग धारणा , ध्यान और समाधि ⬇️

पतंजलि विभूति पाद सूत्र : 1 - 5

अष्टांगयोग का छठवां अंग धारणा 

" देश से  चित्त को बाधना , धारणा है "

➡️ यहाँ देश का भाव है कोई सात्त्विक आलंबन ⬅️

अष्टांगयोग का सातवां अंग ध्यान

" धारणा में चित्त का लंबे समय तक टिके रहना  ध्यान है । "

अष्टांगयोग का आठवां अंग समाधि 

" जब ध्यान में आलंबन अर्थ मात्र रह जाए और उस पर चित्त शून्य हो जाना ,  समाधि  है "

" धारणा , ध्यान और समाधि का एक साथ घटित होना , संयम है " 

तत् + जयात् + प्रज्ञा +आलोकः 

अर्थात धारणा , ध्यान , समाधि और संयम की सिद्धि से प्रज्ञा आलोकित हो उठती है ।


🕉️पतंजलिअष्टांगयोग समाप्त हुआ 🕉️

No comments: