Sunday, April 2, 2023

सांख्य दर्शन में सृष्टि रचना रहस्य


सृष्टि रचना 

सांख्य दर्शन आधारित 

           स्लाइड - 01🔼


सांख्य दर्शन द्वैत्य वादी दर्शन है । प्रकृति और पुरुष दोनों सनातन है और सूक्ष्म हैं । शुद्ध चेतन पुरुषेक नहीं अनेक हैं जबकि जड़ प्रकृति एक है । प्रकृति पुरुष ऊर्जा ग्रहण करती है फलस्वरूप स्लाइड दर्शित प्रकृति के विकृत होने से बुद्धि की उत्पत्ति होती है । बुद्धि के विकृत होने से 03 अहंकारो की उत्पत्ति होती है । सात्त्विक अहंकार से 11इंद्रियों की उत्पत्ति होती है । 03 अटंहकर और 11 इंद्रियों के समूह को भाव सृष्टि कहते हैं । राजस अहंकार सात्त्विक और तमस अहंकरों को विकृत होने सहयोग देता है । तामस अहंकार के विकृत होने से पञ्च तनमत्रों की उत्पत्ति होती है । तन्मात्रो से उनके अपने - अपनें महाभुतों की उत्पत्ति होती है।

05 तन्मात्र और 05 महाभूतों को लिंग सृष्टि कहते हैं । बिना भाव सृष्टि लिंग सृष्टि का होना संभव नहीं और बिना लिंग सृष्टि के भाव सृष्टि की कल्पना करना भी संभव नहीं ।

बुद्धि , अहंकार , 11इंद्रियां, 05 तन्मात्र और 05 महाभूतों का लय होता है और इन्हें लिंग तत्त्व कहते हैं । तीन गुणों की साम्यावस्था को मूल प्रकृति कहलाती है जिसका लय नहीं होता और यह अलिंग कहलाती है । 

प्रकृति विकृति के फलस्वरूप उत्पन्न 23 तत्त्वों में 05 महाभूतों को छोड़ शेष को लिंग शरीर कहते 

हैं । प्रकृति , पुरुष को कैवल्य दिलाने और स्वयं पुरुष को समझने के लिए , पुरुष से आकर्षित होती है । जबतक प्रकृति के मुक्त हो कर पुरुष कैवल्य नहीं प्राप्त कर लेता तबतक सुक्ष्म शरीर आवागमन करता रहता है । जब पुरुष का अपना अनुभव प्राप्त जो जाता है और वह समझ जाता है कि वह कौन है , उसी घड़ी वह अपने मोल स्वरूप में लौट आता है । प्रकृति जब साख जाति है कि वह कौन है , अपनें मूल स्वरूप ( तीन गुणों की साम्यावस्था ) में लौट आती है । इस प्रकार लिंग तत्त्वों का लय प्रकृति में जो जाता है । 


सांख्य आधारित भाव - लिंग सृष्टियां

इस स्लाइड 02 को ऊपर स्पष्ट किया जा चुका है


सांख्य में लिंग शरीर

स्लाइड - 03 सांख्य दर्शन में लिंग शरीर

बुद्धि , अहँकार , 11 इन्द्रियाँ और 05 तन्मात्रो के समूह को सूक्ष्म या लिङ्ग शरीर कहते हैं । यह लिङ्ग शरीर तबतक आवागमन में रहता है जबतक इसे कैवल्य नहीं मिल जाता । प्रकृति , पुरुष कैवल्य की हेतु है । लिङ्ग शरीर निर्मल , सनातन और नित्य है 

( कारिका - 40 ) ।

4 - बिना पञ्च भूत आश्रय लिङ्ग शरीर स्थिर नहीं रहता । 

5 - पुनर्जन्म पुरुष का नहीं होता , अन्य 18  सगुणी तत्त्वों का होता है । चित्ताकार पुरुष के लिए लिङ्ग शरीर का पुनर्जन्म , मोक्ष प्राप्ति के लिए एक और अवसर है । पुरुष का मोक्ष उसका अपनें मूल स्वरूप में लौटनें का नाम है ।

 5 - लिङ्ग शरीर पुरुष मोक्ष प्राप्ति हेतु अलग - अलग शरीर धारण करता रहता है। 

6 - लिङ्ग शरीर प्रकृति का स्वामी है  ( कारिका : 41 - 42 )।

 7 - लिङ्ग शरीर के माध्यम से आवागमन है ।

8  - लिङ्ग शरीर  08 भावों से अधिवासित

(सुगन्धित ) रहता है ।

08 भाव क्या हैं ? 

देखें कारिका : 44 - 45 ) 👇

 1 - धर्म 2 - अधर्म  3 - ज्ञान 4 - अज्ञान  

5 - वैराग्य 6 - राग 7 - ऐश्वर्य  8 - अनैश्वर्य 

बुद्धि सहित 11 इंद्रियों को भाव सृष्टि या बुद्धि सृष्टि या प्रत्यय सृष्टि कहते हैं और पञ्च तन्मात्रों को लिङ्ग सृष्टि या भौतिक सृष्टि कहते हैं ।

1 - लिङ्ग - अलिङ्ग (पतंजलि योग दर्शन आधारित )

ऐसे तत्त्व जिनका लय होता है , लिंग कहलाते हैं और इसके विपरित सनातन अनादि को अलिंग कहते हैं ।

प्रकृति की साम्यावस्था को अलिङ्ग कहते हैं ।  प्रकृति विकृति के फलस्वरूप उपजे 23 तत्त्वों को लिङ्ग कहते हैं जो सगुणी हैं ।

2 - सांख्य दर्शन में लिङ्ग शरीर

1- लिङ्ग शरीर नित्य और सनातन है जबकि माता - पिता से मिला स्थूल शरीर अनित्य है । सूक्ष्म शरीर , माता - पितासे मिला शरीर और प्रभूत ( सुख , दुःख और मोह ) , ये 03 प्रकारके विशेष हैं 

( कारिका - 39 )

2 - महत् , अहंकार , 11 इन्द्रियाँ तथा 05 तन्मात्र लिङ्ग शरीर के अंग हैं । सुक्ष्म शरीर और लिंग शरीर एक दूसरे के पर्यायवाची हैं।

3 - लिङ्ग शरीर निर्मल , सनातन और नित्य है ( कारिका - 40 ) ।

4 - बिना पञ्च भूत आश्रय लिङ्ग शरीर स्थिर नहीं रहता । 

 5 - लिङ्ग शरीर पुरुष मोक्ष प्राप्ति हेतु अलग - अलग शरीर धारण करता रहता है। 

6 - लिङ्ग शरीर प्रकृति का स्वामी है । 

 ( कारिका : 41 - 42 ) 

7 - लिङ्ग शरीर के माध्यम से आवागमन है ।

8  - लिङ्ग शरीर  08 भावों से अधिवासित ( सुगन्धित ) रहता है ।

08 भाव क्या हैं ? 

देखें कारिका : 44 - 45 ) 👇

  1 - धर्म 2 - अधर्म  3 - ज्ञान 4 - अज्ञान 

 5 - वैराग्य 6 - राग  7 - ऐश्वर्य  8 - अनैश्वर्य 


3  - लिङ्ग और भाव सृष्टियाँ एवं आवागमन 

 सम्बंधित सांख्य कारिकायें

  46 - 47 , 52 - 54 , 56  - 58

कारिका : 46 - 47 : इनका सम्बन्ध बुद्धि से है अतः इन्हें आगे देखा जायेगा ।

कारिका : 52 

 ★ सर्ग , सृष्टि का पर्यायवाची शब्द है ★

👌भाव ( प्रत्यय या बुद्धि ) सृष्टि के बिना लिङ्ग 

(भौतिक ) सृष्टि या पञ्च तन्मात्रो के होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती और ⤵

💐 लिङ्ग ( भौतिक ) सृष्टि के बिना भाव ( प्रत्यय या बुद्धि ) सृष्टि की निष्पत्ति नहीं हो सकती । 

👉 लिङ्ग  ( भौतिक ) सृष्टि में  05 तन्मात्र आते हैं जिनसे 05 महाभूतों की उत्पत्ति होती है ।

◆ भाव (प्रत्यय या बुद्धि ) सृष्टि में बुद्धि , तीन अहँकार और 11 इन्द्रियाँ आती हैं । 


          स्लाइड - 04 लिंग - भाव सृष्टियां 


कारिका : 46 - 47

बुद्धि निम्न 04 प्रकार की है 👇

 विपर्यय + अशक्ति + तुष्टि + सिद्धि

1 - विपर्यय (विपरीत समझना , अविद्या , अज्ञान )यह 05 प्रकार की है ।

2 - अशक्ति (दुर्बलता )यह 28 प्रकार की है ।

3 - तुष्टि 4 प्रकार की आध्यात्मिक तुष्टि  + 8 प्रकार की बाह्य तुष्टि है  अर्थात तुष्टि 12 प्रकार की है ।

4 - सिद्धि  

पतंजलि योग विभूति पाद में 45 प्रकार की सिद्धियां बतायी गयी हैं जिनमें 08 प्रमुख सिद्धियां हैं जिनके सम्बन्ध में भागवत में बताया गया है कि ये सिद्धियां प्रभु श्री कृष्ण के साथ हर पल रहती हैं ।



कारिका - 53

मुख्यरूप से भौतिक (लिङ्ग )सृष्टि निम्न 03 प्रकार की है ⬇️

1-  दैव , 2 - तैर्यम्योन और 3 - मनुष्य

1 - दैवी सृष्टि 08 प्रकट की है 

2 - तैर्यम्योन सृष्टि 05 प्रकार की है 

3 - मनुष्य - सृष्टि एक प्रकार की है 

कुल मिला कर भौतिक ( लिङ्ग ) सृष्टि 14 प्रकार की है 

1 - दैव सृष्टि के अंतर्गत ब्रह्मा ,प्रजापत्य , सौम्य , इंद्र , गांधर्व , यक्ष , राक्षस और पिशाच आदि आते हैं ।

2 - तिर्यक सृष्टि के अंतर्गत  पशु , पक्षी , सरीसृप और स्थावर आदि आते हैं ।

कारिका - 54 गुण आधारित सृष्टि


👉ब्रह्मा आदि सर्ग सत्त्व गुण प्रधान हैं , लेकिन अन्य दो गुण भी इनमें होते हैं ।

 👉पशु - पक्षी आदि सर्ग तामस गुण प्रधान हैं लेकिन अन्य दो गुण भी होते हैं 

👉और मनुष्य सर्ग राजस गुण प्रधान है । 

👉सब में होते तो 03 गुण ही हैं लेकिन एक समय में सक्रियता केवल एक ही गुण की होती है । किसी जीव में एक समय पर एक से अधिक गुण सक्रिय नहीं  होते । 

कारिका :56 - 57 - 58

कारिका : 56 

👉  प्रकृति निर्मित महत् से लेकर पंच महाभतों तक की सृष्टि, पुरुष मोक्ष के साधन हैं  ।

👌प्रकृतिक स्वार्थ की तरह ही परार्थ के कार्य भी करती है ।

👌 प्रकृति जड़ है और पुरुष चेतन । 

👌 प्रकृति पृरुष को देखना चाहती है और पुरुष प्रकृति को जानना चाहता है । 

👌 पुरुष प्रकृति के 23 तत्त्वों से निर्मित पिजड़े में कैद हो जाता है और प्रकृति अनुभव प्राप्ति के बाद उसे अपनें मूल स्वरूप में लौटने में मदद करती है । प्रकृति का यही परार्थ है 

कारिका : 57 + 58   

पुरुष मोक्ष की हेतु प्रकृति है 

👉 जैसे अचेतन दूध , चेतन बछड़े का निमित्त होता है उसी तरह अचेतन प्रकृति , चेतन पुरुष के मोक्ष की हेतु है ।

👉जैसे लोग अपनी - अपनी उत्सुकताओं को पूरा करने हेतु अलग -अलग क्रियाओं में प्रवृत्त होते हैं वैसे ही पुरुष मोक्ष के लिए प्रकृति भी प्रवृत्त रहती है । पुरुष मोक्ष ही प्रकृति का मूल लक्ष्य है 

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