Sunday, April 16, 2023

कुंडलिनी जागरण


कुंडलिनी ,  07चक्र और दो ब्रह्मरंध्र 

कर्म बंधनों ( आसक्ति , काम , कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय और आलस्य रूपिकर्म बंधनों से बधे हुए सामान्य गृहस्थ का  दिन धन इकट्ठा करने की हाय - हाय में और रात्रि स्त्री प्रसंग में गुजरती है । ऐसे भोग आसक्त गृहस्थ का चित्त  सात चक्रों में से  मूलाधार , स्वाधिष्ठान और मणिपुर के मध्य घूमती रहता है । भोग आसक्त गृहस्थ के विपरीत भक्ति में डूबे भक्त का चित्त , हृदय ( अनहत ) चक्र एवं विशुद्ध चक्र के मध्य विचरण करता है । सिद्ध और परमहंस का चित्त आज्ञा चक्र एवं सहस्त्रार के मध्य विचारित करता है और कभीं - कहीं ऐसे योगी अपने चित्त को विशुद्ध चक्र पर भी ला कर शिष्यों की साधनाओं को आगे बढ़ाने हेतु ईश्वरानुभूति को व्यक्त भी करते हैं ।

 योग साधना में  जिस साधक का गुणातीत चित्त 21 दिनों तक निर्विज समाधि अवस्था में सहस्त्रार पर स्थिर हो गया होता है , वह योगी कैवल्य प्राप्ति के साथ स्वेच्छा से  देह का त्याग भी कर जाते हैं । 

जब योगाभ्यास  सतत निरंतर बिना किसी रुकावट दिन प्रतिदिन ऊर्ध्व मुखी बना रहता है देह में स्थित प्राण महाप्राणमें बदलने लगता है ।  योग साधनके संदर्भ में प्राण और महाप्राण को समझना बहुत आवश्यक भी

 है । 

स्पाइनल कॉर्ड के निचले छोर पर स्थित तथा सहस्त्रार पर स्थित ब्रह्म रंध्रों का रहस्य ⤵️

स्पाइनल कॉर्ड के सबसे निचले छोर पर स्थित ब्रह्म रंध्र कुंडलिनी ऊर्जा को स्पाइनल कॉर्ड में अंदर यात्रा करने में सहयोग करता है । सहस्त्रार चक्र पर स्थित दूसरा ब्रह्म रंध्र से चेतन ऊर्जा का संतुलित प्रवाह बना रहता

 है । मनुष्य के देह में स्थित न्यूरोलॉजिकल  माइंड कॉस्मिक माइंड से जुड़ा होता है । निचले ब्रह्म रंध्र से सक्रिय कुंडलिनी ऊपर की यात्रा करती हैं और सबसे ऊपर स्थित ब्रह्म रंध्र पर स्थित शिव कुंडलिनी शक्ति से मिल जाते हैं जिसके फलस्वरूप योगी की चेतना फैल जाती है , ज्ञेय अल्प और ज्ञान अनंत हो जाता है ।

चक्र - कुंडलिनी साधना

कुण्डलिनी 

प्रभुसे एकत्व स्थापित करने की जिज्ञासा , मनुष्य को साधना मार्ग पर ले आती है । जैसे - जैसे साधना गहराती जाती है , वैसे - वैसे रीढ़की हड्डीके सबसे निचले नोकीले भागके क्षेत्रमें स्थित कुण्डलिनी सक्रीय होने लगती है । साढ़े तीन कुण्डल की कुण्डलिनीका एक सिरा रीढ़की हड्डीके नोकीले छोर पर स्थित ब्रह्म रंध्रमें प्रवेश करता है  और कुण्डलिनी की ऊर्जा ऊपरकी ओर चलने लगती है । साधकको इस स्थितिमें ऐसा लगता है जैसे उसके रीढ़की  हड्डीके मध्य कोई चीज़  चल रही हो । साधनामें ऐसी घटना , एक शुभ लक्षण

 है । जब विभिन्न चक्रोंसे होती हुई कुण्डलिनी आज्ञा चक्र  पर पहुँचती है तब उस साधकको सिद्धियाँ मिलती हैं । इस प्रकार जब साधना और गहराती है तब कुण्डलिनी आज्ञाचक्र से दूसरे ब्रह्म रंध्रकी ओर चल पड़ती है । दूसरा ब्रह्म रंध्र  सिरके उस क्षेत्रमें होता है जहाँ शिखा रखी जाती है ।  कुण्डलिनीकी  ब्रह्म रंध्र - 1 से ब्रह्म  रंध्र - 2 की यात्रामें प्राण ,महाप्राणमें रूपांतरित होता है , और निर्विकल्प समाधि माध्यमसे परमसे एकत्व  स्थापित   हो जाता है।

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03 नाड़ियाँ और कुंडलिनी 

कुछ ज्ञान संदर्भ ⤵️

शिव संहितामें 3,50,000 नाड़ियोंकी बात बताई गयी है , जिनमे 14 को प्रमुख बताया गया है जबकि इडा , पिंगला और सुषुम्ना नाड़ी तंत्रकी मूल नाड़ियाँ हैं । 

1- इडा 

शरीरके बायीं तरफ spinal cord के सबसे निचले नोकीले छोर पर स्थित मूलाधार चक्र से स्पाइनल कार्ड के समानांतर ऊपर की ओर जाती है। 

2 - पिंगला 

नाड़ी शरीरके दाहिनी ओर  स्वाधिष्ठान चक्र (sex  center से spinal cord के समानांतर ऊपर की ओर जाती हैं।

3 - सुषुम्ना 

spinal cord के अंदर केंद्र में नीचे से ऊपर की ओर जाती है ।

तीनो नाड़ियाँ आज्ञा चक्र पर जा कर मिलती हैं  और वहाँ से एक बन कर सहस्त्रार  चक्र में विनीत हो जाती  हैं

औरा रहस्य 

नीचे स्लाइड में औरा संबंधित 04 फोटोज दी गई हैं ।

फोटो नंबर : 01

यहां दो फोटोज एक साथ दी गई हैं जिनमें यह दिखाया गया है कि जब ध्यान की गहरी अवस्था में निर्मल विवेक की धारा अंतःकरण में बहने लगती है तब मनुष्य के शरीर से सतरंगी सूक्ष्म प्रकाश की किरणें निकलने लगती हैं ।

अमेरिका में ध्यान की गहराई में डूबे योगी के अंदर की conscious energy को मापने का प्रयोग किया गया । योगी लगभग जब समाधि की अवस्था में आने को होता है तब vibration of subtle conscious energy ' frequency was found as 200,000 cycles /second where as this. Frequency in ordinary state was found as 350 cycles )seconds .

फोटो नंबर : 02

A Kirlian photo showing an artistic representation of a man in the Lotus position , surrounded by a blue glow .


फोटो नंबर : 03

Representation of a human Aura , after a diagram by Walter John Kilmer ( 1847 - 1920 ) .

In 1939 , Semiyon Davidovich Kirlian discovered that by placing an object or body part directly on photographic paper , and then passing a high voltage across the object , he would obtain the image of a glowing countour surrounding the object . This process came to be known as Kirlian Photography .


आभा मंडल 

आभा मंडल 07 चक्रों से नियंत्रित होते हैं ।

मूलाधार का रंग लाल होता है । इसके असामान्य होने पर रीढ़ की हड्डी में दर्द रक्त एवं कोशिकाओं पर इसका प्रभाव होता है ।

स्वाधिष्ठान का रंग नारंगी है । इसका संबंध प्रजनन अंगों से है । इसके कारण मनुष्य का आचरण और व्यवहार प्रभावित होता है ।

मणिपुर का रंग पीला होता है ।यह बुद्धि और शक्ति को नियंत्रित करता है । इसके असामान्य यावहार से मानसिक बीमारियां लग जाती हैं ।

अनाहत का रंग हरा है । इसके असामान्य होने पर भाग्य साथ नहीं देता ।धनाभाव , दमा , यक्ष्मा , फेफड़ों संबंधित बीमारियों  से जूझना पड़ता है ।

विशुद्ध हल्का नीले रंगका है । टानसिल और आवाज संबंधित विकार आते हैं , जब यह सही कार्य नहीं करता।

सत्पुरुषों एवं सिद्धों का आभा मंडल 30 - 50 मीटर के क्षेत्र में फैला होता है।

आभा मंडल सत चक्रों के रंगीन का शरीर से निकलता हुआ और होता है जिसको समझने वाला उस व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक अवस्थाओं को समझ सकता है।

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