Thursday, August 3, 2023

गीता में अर्जुन का प्रश्न 10 , 11 और 12



प्रश्न – 10

श्लोक – 11.1 से 11.4 तक 

आपके परम आध्यात्मिक वचन सुनने के बाद मैं मोह मुक्त हो गया हूं । मैंने आप से भूतों की उत्पत्ति - प्रलय और अव्यय महात्म्य भी सुना । हे परमेश्वर !आप का कथन परम सत्य है । अब मैं आपके ऐश्वर्य - अव्यय रूप को देखना चाहता हूं ।

अर्जुन के इस प्रश्न से संबंधित प्रभु का उत्तर देखने से पहले निम्न इनसे संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बातों को देख लेते हैं ।

गीता अध्याय - 11 में कुल 55 श्लोक हैं जिनका विवरण निम्न प्रकार है ⬇️

कृष्ण

अर्जुन

संजय

योग

14

33

08

55


अर्जुन अपनें 33 श्लोकों में से 32 श्लोकों के माध्यम से 03 प्रश्न करते हैं और श्लोक : 51 में कहते हैं ⬇️

हे जनार्दन ! आप के शांत मनुष्य रूप को देख कर मैं सचेत हो गया हूं और अपने स्वाभाविक प्रकृति में लौट आया हूं ।


गीता अध्याय ही 11 के तीन प्रश्नों में पहला प्रश्न अर्जुन का 10 वां , दूसरा अर्जुन का 11 वां और तीसरा अर्जुन का 12वां प्रश्न है । ये तीनों प्रश्न निम्न प्रकार से हैं ⤵️

 

  1.  प्रश्न : 10 - श्लोक : 11.1 - 11.4

आपके इस आध्यात्मिक वचन को सुनने के बाद मेरा मोह समाप्त हो गया है । 

मैं आपके अव्यय स्वरूप को देखना चाहता हूं । 


  1. प्रश्न : 11 - श्लोक : 11.15 -11.11.31

प्रभु के विराट स्वरूप को देखने के बाद पूछ रहे हैं अर्जुन की आप उग्र रूपवाले कौन हैं (श्लोक : 11.31)?

  1. प्रश्न : 12 - श्लोक : 11. 36 - 11.46

मैं आपके इस आश्चर्यमय रुप को देख कर हर्षित हो रहा हूं और साथ ही भय से व्याकुल भी मेरा मन हो रहा है अतः आप अपने देवरूप रूप को दिखाए।  अब आगे ⬇️

 ( गीता श्लोक : 11.1 में अर्जुन कह रहे हैं , मैं आपके परम गोपनीय अध्यात्म विषयक वचन को सुनने के बाद मोह मुक्त हो गया हूं । प्रभु गीता के प्रारंभ के  श्लोक : 2.2 में कहते हैं कि हे अर्जुन ! यह असमय में तुम्हें मोह कैसे हो गया है ? और अर्जुन को मोह मुक्त कराने हेतु गीता ज्ञान देना प्रारंभ करते 

हैं । यदि अर्जुन वास्तव में प्रभु श्री कृष्ण की नजरों में मोह मुक्त हैं फिर तो गीता का यहां अंत ( अध्याय : 10 के साथ ) हो जाना चाहिए था लेकिन ऐसा है नहीं अर्थात अर्जुन गलत बोल रहे हैं । एक तरफ अर्जुन स्वयं को मोह मुक्त बता रहे हैं और प्रश्न के बाद प्रश्न भी पूछ रहे हैं ! , ऐसा कैसे संभव है ? गीता के इस अध्याय में अर्जुन तीन प्रश्न उठा रहे हैं और स्वयं को मोह मुक्त भी बता रहे हैं । 

गीता श्लोक : 18.73 में भी अर्जुन यही कहते हैं कि अब मैं मोह मुक्त हूं और अर्जुन का गीता में यह आखिरी श्लोक भी है। 

गीता एक अंतहीन अनंत की यात्रा है जिसका प्रारंभ तो है और अंत का नाम ही अनंत है ।  


अब आगे अर्जुन का गीता में प्रश्न : 10

श्लोक – 11.1 से 11.4 तक 

आपके परम आध्यात्मिक वचन सुनने के बाद मैं मोह मुक्त हो गया हूं । मैंने आप से भूतों की उत्पत्ति - प्रलय और अव्यय महात्म्य भी सुना । हे परमेश्वर !आप का कथन परम सत्य है । अब मैं आपके ऐश्वर्य - अव्यय रूप को देखना चाहता हूं ।


प्रभु श्री कृष्ण का उत्तर 

श्लोक – 11.5 से 11. 8 तक

हे पार्थ! अब तुम मेरे हजारों विभिन्न प्रकार के आकृतियों वाले अलौकिक रूपों को देखो।  मुझमें 12आदित्यों , 8 वसुओ, 11रुद्रों , दोनो अश्विनी कुमारों , 49 मरुतगणों को देख लेकिन तुम अपनी इन आँखों से तो देख नहीं सकता अतः मैं तुमको दिव्य आँखें देता हूँ जिनकी मदद से तुम मेरे अव्यय रूप को देख सकते हो / इसके बाद अर्जुन दिव्य नेत्रों से जो देखते हैं उसका हाल संज्जय श्लोक 11.9 - 11.14 के मध्य निम्न प्रकार से सम्राट धृतराष्ट्र को बता रहे हैं ⬇️

प्रभु अपनें अव्यय रूप मेंअनेक इन्द्रियों वाला असीमित देह वाला , असीमीत अनंत सूयों के प्रकाश के तुल्य प्रकाश फैलाते हुए विराट रूप में दिख रहे हैं । इस प्रकार ऐश्वर्य रूप देखने के बाद अर्जुन प्रभु को प्रणाम करते हैं ।


यह है प्रभु का विश्वरूप । अर्जुन इस रूप को देखने के बाद अगला प्रश्न पूछते हैं जिसे अगले अंक में देखा जा सकता है ।

~~ ॐ ~~ 


प्रश्न – 11

श्लोक – 11.15 से 11.31 


यहां अर्जुन अपनें इन सोलह श्लोकों में क्या कह रहे हैं , आइये देखते हैं ⤵️


हे देव ! आप के शरीर में संपूर्ण देवों और भूतों के साथ ब्रह्मा , महादेव , संपूर्ण ऋषि और  दिव्य सर्पों को देखता हूं । आपके अनेक भुजा , पेट , मुख , नेत्र देख रहा हूं तथा सब ओर अनंत रूप वाला भी देख रहा हूं । आप के शरीर के अंत , मध्य और आदि को नहीं देख पा रहा ।

आपको मुकुटयुक्त , गदायुक्त ,और चक्रयुक्त सब ओर से प्रकाशमान, तेज के पुंज रूप में , प्रज्वलित अग्नि और सूर्य के समान ज्योति वाला , कठिनता से देखे जाने वाला , सब ओर से अप्रमेय देखता हूं । आप परम अक्षर , परब्रह्म , परम आश्रय , अनादि धर्म के रक्षक और सनातन पुरुष हैं । आप का कोई आदि , मध्य और अंत नहीं । आप को अनंत सामर्थ्य से युक्त अनेक भुजा धारी , चंद्र - सूर्य रूप नेत्रों वाले प्रज्वलित अग्नि रूप मुख वाले इस संसार को अपने तेज से संतप्त करते हुए देख रहा हूं।  हे महात्मन् ! स्वर्ग से लेकर पृथ्वी तक सभी दिशाओं में आप का ही शरीर दिख रहा है । आप के इस भयंकर रूप को देख कर तीनों लोक व्यथित हैं ।

 देवताओं के समूह आप में प्रवेश कर रहे हैं , उनमें से कुछ भयभीत हो कर आपके गुणों का गान करते हुए दिख रहे हैं । महर्षि और सिद्ध समुदाय आपकी जय जयकारा लगा रहे हैं । 11 रुद्र , 12 आदित्य , 8 बसु , साध्य गण , विश्वेदेव , अश्विनीकुमार और मरुद्गण , पितरों का समुदाय , गंधर्व , राक्षस और सिद्ध आदि सभी विस्मय हो कर आपको देख रहे हैं ।

 आप के इस आश्चर्य रूप को देख सभी लोग व्याकुल हो रहे हैं और मैं भी व्याकुल हूं । सभी धृतराष्ट्र के पुत्र आपके मुंह में प्रवेश कर रहे हैं , दोनो पक्ष से सभी रथी एवं महारथी एवं अन्य सैन्य दल आप के मुंह में प्रवेश कर रहे हैं । अब आप मुझे बताए कि यह उग्ररूपवाले आप कौन हैं ?

प्रभु श्री कृष्ण का उत्तर 

श्लोक -  11.32 से 11.35 तक 

प्रभु कह रहे हैं ⬇️

कालः अस्मि लोक क्षय कृत् प्रबृद्ध : लोकान् समाहर्तुम् इह प्रबृत्त : 

मैं महाकाल हूँ सभीं लोकों का नाश करनें के लिए यहाँ प्रकट हुआ हूँ /

जो प्रतिपक्षी सेना में योद्धा लोग हैं वे सब के सब तेरे बिना मारे भी नहीं बचने वाले हैं , सब मारे जानेवाले हैं । अतः तुम उठो , युद्ध करो और जीत का सम्मान प्राप्त करो क्योंकि ये सभीं मेरे द्वारा मारे जाने वाले ही हैं । तुम केवल निमित्त मात्र बन जा ।

मैं  द्रोणाचार्य, भीष्म पितामह , जयद्रत और कर्ण आदि को मार चुका हूं , तुम इन्हें मार ,भय मत कर। 

अब संजय कह रहे हैं (श्लोक : 11.35 )

केशव के वचन सुन कर मुकुटधारी अर्जुन हांथ जोड़ कर कांपता हुआ नमस्कार  करके कुछ जानने की जिज्ञासा दिखाते हैं जिसे अर्जुन के अगले प्रश्न के रूप में आगे देख सकते हैं ।

~~ ॐ ~~  


प्रश्न – 12

श्लोक – 11.36 से 11.45 ( 10 श्लोक ) 


अर्जुन यहाँ 10 श्लोकों के माध्यम से कह रहे हैं है ⬇️ 


त्वं अक्षरं सत् - असत् तत् परम् [ गीता - 11.37 ]

आप अविनाशी सत् और असत् से परे हैं 

# आप ब्रह्मा से बढकर हैं , आप आदि श्रष्टा हैं  # आप परम श्रोत हैं , परम अक्षर हैं और भौतिक जगत से परे हैं 

# आप आदि देव , सनातन , जगत के आश्रय हैं

 # आप वायु , अग्नि , जल , चन्द्रमा और ब्रह्मा हैं

 [ गीता - 11.39 ] 

# आप चर – अचर से युक्त जगत के जनक हैं 

#  आप ईश्वर हैं , मैं आप के विराट स्वरुप का दर्शन करके धन्य हो गया हूँ और व्याकुल भी हूं । 

अब आप मुझे अपना देवरूप (चतुर्भुज ) को दिखाएं

 मैं  आपको मुकुट , गदा और चक्र धारण किए हुए देखना चाहता हूं । 

हे सहस्त्रबाहो ! आप कृपया चतुर्भुज रूप में प्रकट होइए ।


प्रभु श्री कृष्ण का उत्तर 

श्लोक – 11.47 से 11.55 ( 09 श्लोक )

(इन 9 श्लोकों में श्लोक : 47- 49 कृष्ण के हैं और 

श्लोक : 50 संजय का है , श्लोक : 51 में अर्जुन आभार प्रकट करते हैं । श्लोक : 52 - 55 प्रभु श्री कृष्ण के हैं )


अब आगे ⤵️

श्लोक : 47 - 49 

प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं कि …

हे अर्जुन ! मैं तुम्हें अपना आश्चर्ययुक्त परम तेजोमय विराट स्वरूप दिखाया जिसे तेरे अतिरिक्त पहले और कोई नहीं देख सका है । 

मनुष्य लोक में मेरा यह विश्वरूप न वेदों और न यज्ञों के मध्यम से देखा जा सकताहै तथा न दान से , न क्रियाओं से और न उग्र तपों से ही देखा जा सकता है ।  अभीं तक तेरे अलावा और किसी से इस रूप में मुझे नहीं देख पाया है । मेरे विराट रूप को देखने से तुमको व्याकुल नहीं होना चाहिए।  अब तुम  मेरे शंख , गदा और चक्र धारण किया हुए देव रूप को देख ।

श्लोक : 50

 संजय धृतराष्ट्र को बता रहे हैं ….

 प्रभु अपना चतुर्भुज रूप अर्जुन को दिखाया और फिर सामान्य रूप में भयभीत अर्जुन को धीरज दिए। 

श्लोक : 51

 अर्जुन का प्रभु को आभार प्रकट करना

हे जनार्दन ! आप की इस अति शांत रूप को देख कर अब मैं स्थिर चित्त हो गया हूं और अपनी स्वाभाविक स्थिति प्राप्त कर लिया हूं ।

श्लोक : 51 - 55 

प्रभु कह रहे हैं 

मेरे  चतुर्भुज रूप का दर्शन दुर्लभ है । ऐसा मेरा रूप वेदों से , तपो से , यज्ञों से और दान से देखना संभव नहीं परंतु अनन्य भक्ति से देखा जा सकता है।

~~ॐ ~~ 

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