Monday, August 14, 2023

गीता में अर्जुन का 16वाँ प्रश्न


प्रश्न – 16

श्लोक – 17.1


अर्जुन पूछ रहे हैं , " हे कृष्ण ! कुछ लोग शास्त्र विधियों को त्याग कर श्रद्धायुक्त पूजन करते हैं , ऐसे पूजकों की स्थिति सात्विकी , राजसी और तामसी में से कौन सी होती है ? "

यह प्रश्न प्रभु श्री के श्लोक : 16.23 से निकलता हैं जहां प्रभु कहते हैं ….

जो शास्त्र विधियों से हट कर स्व इच्छा से निर्मित पूजन विधियों का आचरण करते हैं वे न तो सिद्धि पाते हैं और न ही परम गति पाते हैं । 

प्रभु श्री कृष्ण का उत्तर 

श्लोक : 17.2 से 17.28 ( 27 श्लोक )

यहाँ प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं ⤵️

# काम्य कर्मों के त्याग को कर्म संन्यास कहते हैं । अन्य कर्मों में कर्म फल की सोच का न होना कर्म संन्यास होता है। 

# सभी मनुष्यों का विश्वास उनके मन की प्रकृति के अनुरूप होता है और सभीं अपनें - अपनें प्रकृतियों के गुलाम हैं ।

# देवता , यक्ष - राक्षस तथा भूत - प्रेत क्रमशः सात्त्विक , राजस एवं तामस गुण धारकों द्वारा पूजे जाते हैं।

यहां श्लोक - 7.16 को भी देखें जो निम्न प्रकार है

∆ प्रभु कह रहे हैं , हे अर्जुन ! मैं अर्थार्थी , आर्त , जिज्ञासु और ज्ञानियों द्वारा पूजा जाता हूं ।

 अर्थार्थी कौन हैं ?

  सांसारिक पदार्थों की प्राप्ति के लिए पूजन करने वाले लोग ।

 आर्त कौन हैं ?

  संकट निवारण हेतु पूजा करनेवाले लोग ।

जिज्ञासु कौन हैं ?

 जो मुझे ( श्री कृष्ण को  ) समझने की गहरी चाह रखने वाले हैं ।

ज्ञानी कौन हैं

जो तत्त्व से मुझे (श्री कृष्ण को ) जानना चाहते हैं । 

# आसुरी स्वभाव वाले शास्त्र विधियों से हट कर स्वनिर्मित विधियों से घोर तप करते हैं ।  अहंकार एवं आसक्ति तथा कामना से युक्त , ऐसे लोग शरीर को कठिन दुःख देते हैं और मुझे भीं दुखी करते हैं। 

## भोजन , यज्ञ और दान तीन - तीन प्रकार के हैं ⬇️

गुण आधारित भोजन के तीन प्रकार

# आयु , बुद्धि , बल , आरोग्य , सुख और प्रीति को बढ़ाने वाले रसयुक्त , चिकने , स्वभावतः मन को पसंद सात्त्विक भोजन होता है ।

# कड़वे , खट्टे लवण युक्त , गर्म , तीखे , दाह कारक , रोग उत्पन्न करनेवाले राजस भोजन हैं ।

# अधपका , रस रहित , दुर्गंधयुक्त , बासी भोजन तामसी भोजन हैं

गुण आधारित यज्ञ के तीन प्रकार

# फल की चाह न रख कर शास्त्रानुकूल किए जा रहे यज्ञ , सात्त्विक यज्ञ हैं

# दंभ आचरण से , फल प्राप्ति हेतु किए जाने वाले यज्ञ राजसी यज्ञ हैं ।

# शास्त्र से हट कर , बिना मंत्रों के बिना श्रद्धा के जो यज्ञ हों उन्हें तामसी यज्ञ कहते हैं ।

तप के प्रकार 

# देवता , ब्राह्मण , गुरु , ज्ञानी का पूजन , ब्रह्मचर्य , अहिंसा , शरीर संबंधित तप हैं

# वाणी संबंधित तप में प्रिय , हितकारी और यथार्थ भाषण तथा वेद - शास्त्र पठन एवं परमेश्वर के नामका जप - अभ्यास आते हैं 

# मन तप  में शांत भाव , प्रसन्नता , मन निग्रह आदि आते हैं ।

# शरीर , वाणी और मन से पूर्ण श्रद्धायुक्य किए गए कर्मों में फल चाह की अनुपस्थिति , सात्त्विक तप है ।

 # किसी कामना की पूर्ति एवं अहंकार के प्रभावमें किया गया तप राजस तप होता है ।

# जो तप हठ और मूढ़ भाव में होता हैं तथा दूसरे के अनहित के लिए हो उसे तामस तप कहते हैं ।

गुण आधारित दान के तीन प्रकार

# सात्त्विक दान : जिस व्यक्ति को  जिस वस्तु का अभाव हो उसे वह दान करना बिना किसी अहँकार एवं अन्य कामना के , सात्त्विक दान है ।

# राजस दान : जिस दान में कोई कामना हो , उपकार करने की सोच हो , वह राजस दान होता है।

# तामस दान : तिरस्कार के साथ किया गया दान और जब किसी समय किसी को किसी वस्तु की जरूरत न हो , उसे उस वस्तु का उस समय दान करना तामस दान होता है ।

 ब्रह्म के सम्बोधन

# ॐ + तत् + सत् हैं , अब इन्हें समझते हैं ⤵️

# को समझें #

◆ दान , यज्ञ और तप संबंधित वैदिक क्रियायों का प्रारंभ ॐ से  होता है । ॐ को प्रणव शब्द से भी संबोधित करते हैं । 

अब देखिए महर्षि पतंजलि योग दर्शन में प्रणव को समझने की कोशिश करें ⬇️

● पतंजलि योग दर्शन समाधि पाद सूत्र 23 - 29 ( 07 सूत्रों में ) ईश्वर प्रणिधानि ( ईश्वर केंद्रित रहना ) से संबंधित हैं । महर्षि पतंजलि  चित्त वृत्ति निरोध के 09 उपायों को बताते हैं जिनमें से एक उपाय ईश्वर प्रणिधानि है  । ईश्वर प्रणिधानि का अर्थ है ईश्वर के प्रति अतीत श्रद्धा और आस्था का होना अर्थात चित्त का ईश्वर पर स्थिर बने रहना । जब किसी एक सात्त्विक आलंबन के शब्द , अर्थ और ज्ञान अंगों में से किसी एक पर चित्त लंबे समय तक स्थिर बना रहता हैं तब उस योगी को सम्प्रज्ञात समाधि की अनुभूति होती है । ऊपर बताए गये समाधि पाद के 07 ( समाधि पाद सूत्र : 23 - 27 ) सूत्रों का सार यहां देखें जहां ईश्वर के संबंध में बताया गया है । पतंजलि योग सूत्र दर्शन मूलतः सांख्य आधारित है और सांख्य में ईश्वर शब्द अनुपस्थित है । पतंजलि योग दर्शन में कुल 195 सूत्र हैं और इन सूत्रों में ईश्वर ( ब्रह्म ) को वेदान्त की भाँति सृष्टि करता के रूप में नहीं बताया गया है अपितु ईश्वर को चित्त वृत्ति निरोध के लिए एक सात्त्विक आलंबन के रूप में बताया गया है । अब पतंजलि समाधि पाद में ईश्वर संबंधित 07 सूत्रों का सार ⬇️

क्र सं

सूत्र

सूत्र भावार्थ

1

23

ईश्वर समर्पण से चित्त वृत्तियाँ निर्मूल होती हैं ।

2

24

कर्म , कर्मफल और कर्माशय मुक्त ईश्वर है।

3

25

सभीं ज्ञानों का बीज , ईश्वर हैं

4

26

ईश्वर सभीं पूर्व में हुए गुरुओं का गुरु है , समायातीयत है और सनातन है ।

5

27

प्रणव उसका संबोधन है। 

6

28

प्रणव का अर्थ समझते हुए उसका जाप अभ्यास करते रहें 

7

29

ईश्वर समर्पण से योग बाधाएँ दूर होती हैं और प्रज्ञा आलोकित होती है 

# ब्रह्म के संबोधन तत् को समझें

जो है वह सब उस ब्रह्म से है , ऐसे भाव का अंतःकरण में होना तत् है ।

# ब्रह्म संबोधन सत् को समझें #

 अंतःकरण में सात्त्विक भाव भरने के लिए सत् का सुमिरन किया जाता है और जब सुमिरन की सिद्धि मिलती है तब चित्त में प्रज्ञा आलोकित होती है। प्रज्ञा से सत् और असत् का बोध होता है ।

# बिना श्रद्धा जो भी किया जाता है वह सब असत् है ।


~~~ ॐ ~~~ 


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