Thursday, September 7, 2023

सांख्य दर्शन में लिंग शरीर और पुनर्जन्म संबंध


- 42 

सूक्ष्म शरीर का अलग - अलग देह धारण करना

कारिका - 42

💐 जैसे नट अलग - अलग कपड़े धारण कर कभीं राजा तो कभीं विदूषक इत्यादि बनता रहता है , उसी तरह सूक्ष्म शरीर भी मोक्ष हेतु निमित्त तथा नैमित्तिक (धर्म आदि तथा उर्धगमन आदि ) ,के प्रसंग से प्रकृति का विभु ( प्रकाशित करनेवाला , स्वामी ) होने के कारण अलग - अलग शरीर धारण करके अलग - अलग बनता रहता है ।

सार : लिङ्ग शरीर प्रकृति को प्रकाशित  करता है । यह मोक्ष प्राप्ति हेतु अलग - अलग शरीर धारण  करता रहता है ।  कारिका : 21 में बताया गया है , "  पुरुष , प्रकृति दर्शनार्थ और प्रकृति पुरुष को कैवल्यार्थ एक दूसरे से जुड़ते हैं  । "


 सांख्य दर्शन में लिङ्ग शरीर

1- लिङ्ग शरीर नित्य और सनातन है जबकि माता - पिता से मिला स्थूल शरीर अनित्य है । सूक्ष्म शरीर , माता - पितासे मिला शरीर और प्रभूत ( सुख , दुःख और मोह ) , ये 03 प्रकारके विशेष हैं 

( कारिका - 39 )

2 - महत् , अहंकार , 11 इन्द्रियाँ तथा 05 तन्मात्र लिङ्ग शरीर के अंग हैं । सुक्ष्म शरीर और लिंग शरीर एक दूसरे के पर्यायवाची हैं।

3 - लिङ्ग शरीर निर्मल , सनातन और नित्य है ( कारिका - 40 ) ।

4 - बिना पञ्च भूत आश्रय लिङ्ग शरीर स्थिर नहीं रहता । 

 5 - लिङ्ग शरीर पुरुष मोक्ष प्राप्ति हेतु अलग - अलग शरीर धारण करता रहता है। 

6 - लिङ्ग शरीर प्रकृति का स्वामी है । 

 ( कारिका : 41 - 42 ) 

7 - लिङ्ग शरीर के माध्यम से आवागमन है ।

8  - लिङ्ग शरीर  08 भावों से अधिवासित ( सुगन्धित ) रहता है ।

08 भाव क्या हैं ? 

देखें कारिका : 44 - 45 ) 👇

  1 - धर्म 2 - अधर्म  3 - ज्ञान 4 - अज्ञान 

 5 - वैराग्य 6 - राग  7 - ऐश्वर्य  8 - अनैश्वर्य 


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