Wednesday, September 27, 2023

सांख्य दर्शन और पतंजलि योग दर्शन एक दूसरे के पूरक दर्शन हैं

सांख्य दर्शन और पतंजलि योग सूत्र दर्शन एक दूसरे के पूरक दर्शन हैं 

पतंजलि योगसूत्र दर्शन समाधि पाद सूत्र : 1 - 4 का सार , 

" योग अनुशासन है । योग से चित्त - वृत्तियों का निरोध होता है जिसके फलस्वरूप चित्त वृत्ति स्वरूपाकार पुरुष अपनें मूल स्वरूप में लौट आता है " 

महर्षि पतंजलि योगसूत्र दर्शन के ये प्रारंभिक चार सूत्र चित्त वृत्ति स्वरूपाकार पुरुष को चित्त वृत्तियों की जाल से मुक्त होने की बात कह रहे हैं ।  महर्षि पतंजलि के इन चार सूत्रों को ठीक से समझने के लिए पहले सांख्य दर्शन के निम्न 08 कारिकाओं को समझना चाहिए ⬇️

कारिका 3 , 21 , 22 , 40 - 42 , 44 - 45 

सांख्य दर्शन द्वैत्यबादी दर्शन है जहां शुद्ध चेतन निष्क्रिय सनातन एवं निर्गुणी तत्त्व पुरुष की ऊर्जा से जड़ , सनातन स्वतंत्र , निष्क्रिय तथा तीन गुणों की साम्यावस्था वाली मूल प्रकृति विकृत हो उठती है । मूल प्रकृति के विकृत होने से बुद्धि तत्त्व की उत्पत्ति है । बुद्धि से अहंकार , अहंकार से 11 इंद्रियां और 05 तन्मात्रों की उत्पत्ति हैं और तन्मात्रों से 05 महाभूतो की उत्पत्ति  है । प्रकृति के ये  23 तत्त्व त्रिगुणी हैं और इनके योग से सृष्टि है । 

ऊपर व्यक्त 23 तत्त्वों में बुद्धि , अहंकार और मन का सामूहिक नाम चित्त है । प्रकृति -पुरुष संयोग से शुद्ध निर्गुणी तत्त्व पुरुष चित्त केंद्रित हो कर स्वयं को सगुणी समझने लगता है अर्थात जड़ की संगति चेतन को जड़ के रंग में रंग देती है । 

पुरुष , प्रकृति दर्शनार्थ प्रकृति से जुड़ता है और प्रकृति , पुरुष - कैवल्यार्थ पुरुष से जुड़ती हैं । अर्थात मूल प्रकृति जिसे जड़ होने के कारण स्वयं का पता नहीं होता , पुरुष ऊर्जा से विकृत होने पर उसे यह बोध हो जाता है कि उसे क्या करना है । जब पुरुष पूर्ण रूप से प्रकृति को समझ लेता है तब उसे वैराग्य हो जाता है और वह समझने लगता है की वह चित्त नहीं , वह 23 तत्त्व नहीं , वह तो शुद्ध चेतन है । जब उसकी यह सोच गहरा जाती है तब उसकी अविद्या का नाश हो जाता है और अविद्या का नाश होना ही कैवल्य है ( यहां देखें पतंजलि साधनपाद सूत्र : 25 ⤵️

" तत् अभावत् संयोग अभावः हानं तत् दृशे कैवलयं "

" अविद्या का अभाव , दुःख का अभाव है और यही

 कैवल्य है "

 सगुणी अवस्था से निर्गुणी अवस्था में होना , कैवल्य है। 

पुरुष - प्रकृति संयोग ऐसे होता है जैसे एक पंगु (लंगड़े )और एक अंधे का संयोग होता है । अँधा , लंगड़े के कंधे पर बैठ कर मार्ग दिखाता है । यहां पंगु पुरुष है और प्रकृति अंधी है । 

जड़ प्रकृति पुरुष ऊर्जा से विकृत हो जाती है जिसके फलस्वरूप पुरुष को कैवल्य प्राप्ति में सहयोग करने के लिए 23 तत्त्वों ( बुद्धि , अहँकार , 11 इन्द्रियाँ , 5 तन्मात्र और 5 महाभूत ) की उत्पत्ति करती है । इन 23 तत्त्वों से भौतिक सृष्टि उत्पन्न होती है। प्रकृति के ये 23 तत्त्व त्रिगुणी हैं और पुरुष को सहयोग करते हैं ।

23 तत्त्वों में पांच महाभूतों को छोड़ शेष 18 तत्त्वों को लिंग शरीर या सूक्ष्म शरीर कहते हैं ।  लिंग शरीर तबतक आवागमन में रहता है जबतक पुरुष को कैवल्य नहीं मिल जाता ।

जैसे नट अलग - अलग कपड़े धारण कर कभीं राजा तो कभीं विदूषक इत्यादि बनता रहता है , उसी तरह सूक्ष्म शरीर भी मोक्ष हेतु अलग - अलग शरीर धारण करके अलग - अलग बनता रहता है । ध्यान रहे -आवागमन में सुक्ष्ण शरीर रहता है न  कि  पुरुष क्योंकि सुक्षण शरित के 18 तत्त्व लिंग हैं अर्थात इनका लय होता है और इनके अंदर पुरुष अलिंग है अर्थात उसका कभी लय नहीं होता । मूल प्रकृति भी अलिंग है पर विकृत प्रकृति के 23 तत्त्व लिंग हैं ।

पुरुष एक नहीं अनेक हैं जो सुख - दुःख का भोक्ता हैं । हर एक जड़ और चेतन इकाई का अपना - अपना पुरुष होता 

है । पुरुष प्रकृति से जुड़ते ही स्वयं को प्रकृति समझने लगता है लेकिन उसकी स्मृति की गहराई में उसके मूल स्वरूप की स्मृति भी बनी रहती है। 

अब ऊपर व्यक्त सांख्य सिद्धांत को समझने के बाद पतंजलि समाधि पाद सूत्र : 1 - 4 तक के भावार्थ को ठीक से समझा जा सकता है जिसे प्रारंभ में दिया गया है और वह इस प्रकार है ⤵️

पतंजलि योगसूत्र दर्शन समाधि पाद सूत्र : 1 - 4 का सार , 

" योग अनुशासन है । योग से चित्त - वृत्तियों का निरोध होता है जिसके फलस्वरूप चित्त वृत्ति स्वरूपाकार पुरुष अपनें मूल स्वरूप में लौट आता है " 

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