Tuesday, December 17, 2024

नर कंकालों से भरी रूपकुंड झील का रहस्य


नर कंकालों की झील रूप कुण्ड

एक कढ़ाई के आकार वाली , 5029 m समुद्रतल से ऊंचाई पर लगभग 2 - 3 मीटर गहरी एवं लगभग ढाई एकड़ क्षेत्रफल वाली नरकंकालों से भरी हुई रहस्यात्मक  रूपकुंड झील त्रिशूल पर्वत की गोंदी में स्थित है । इस झील से संबंधित निम्न सूचनाओं को देखें ..

  • इस झील में लगभग 35 - 40 वर्ष उम्र के 600 - 800 स्त्री - पुरुष के कंकाल पाए गए हैं …

  • नंदा देवी शिकार आरक्षण के ब्रिटिश रेंजर Mr H.K.Madhawal सन् 1942 में इस झील में नर कंकालों को देखा था ..

  • तबसे आज तक इस कुण्ड में नर कंकालों की उपस्थिति एक रहस्य बनी हुई है ।

  • नर कंकालों के साथ इस कुण्ड में , स्त्रियों के लंबे बाल , लकड़ी की कलाकृतियाँ, लोहे के भाले, चमड़े की चप्पलें, और अंगूठियाँ भी मिली है ।

  • इस कुण्ड के रहस्य के ऊपर भारतीय , जर्मन , ब्रिटिश और अमेरिकन लगभग 16 शोध संस्थानों के वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा शोध किया गया हैं जिसकी रिपोर्ट के 28 सह लेखक हैं । इस अध्ययन की मुख्य लेखिका ईडेओइन हार्ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पीएचडी की छात्र हैं।

  • सन् 2003 में नेशनल जियोग्राफिक्स की एक टीम 30 कंकाल निकाले थे जिनमें से कुछ पर मांस दिखी थी। यह झील बर्फ में जमी रहती है केवल कुछ सीमित समय के लिए जब बर्फ पिघलता है तब इसमें छुपे नर कंकाल दिखने लगते हैं । 

  •  रूपकुंड झील से 38 कंकालों की डीएनए टेस्टिंग की गई जिनमें से 15 कंकाल स्त्रियों के थे । रिपोर्ट के अनुसार ये कंकाल - अवशेष तीन अलग - अलग समूहों के पाए गए थे।

रिपोर्ट के कुछ अंश इस प्रकार है …

  • कंकाल अलग - अलग मूल के स्त्री - पुरुषों के थे ।

  • कुछ दक्षिण एशिया के लोगों जैसी जेनेटिक्स पाई गई है लेकिन वे लोग एक आबादी के नहीं थे।

  • कुछ की जेनेटिक्स यूरोप के लोगों से मिलते जुलते हैं । खासतौर पर यूनान के द्वीप क्रीट के रहने वालों जैसे हैं।

कुछ कंकाल पूर्वी भूमध्यसागरीय इलाके के लोगों से मिले हैं। इन लोगों का यहां झील तक आने के कारण का कोई पता नहीं चल पाया है ।


  • जेनेटिक्स के आधार पर कंकालों में से कुछ ऐसे लोगों के हैं जो इस उपमहाद्वीप के उत्तरी हिस्से के लोगों से मिलते हैं जबकि अन्य दक्षिणी हिस्से के लोगों से मिलते हैं । 

#  ऊपर व्यक्त 38 कंकाली में 23 कंकाल  800 CE के हैं जिनका संबंध  एक विशिष्ट दक्षिण एशियाई वंश से है जान पड़ता है । इन 38  कंकालों में एक व्यक्ति का कंकाल 1800 CE का है जिसका संबंध दक्षिणपूर्व एशियाई वंश से है । 14 कंकाल  1800 CE के विशिष्ट पूर्वी भूमध्यसागरीय वंश के पाए गए हैं । आश्चर्य होता है कि 38 कंकालों में से 14 कंकाल पूर्वी भूमध्यसागरीय लोगों के पाए गए हैं जिनका संबंध यूनान के द्वीप क्रीट से होने की संभावना है । पूर्ण भूमध्य सागरीय लोगों की इतनी संख्या में रूपकुंड आना एक रहस्य ही दिखता है। ऐसी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इन कंकालों में से कुछ कंकाल उन लोगों के भी हो सकते हैं जो हर 12 वर्ष में एक बार यहदं राजजात तीर्थ यात्री के रूप में आते रहे हों । कुमाऊं - गढ़वाल क्षेत्र की परम पवित्र 12 वर्ष  में एक बार आयोजित होने वाली नंदा देवी राजजात यात्रा से रूपकुंड का गहरा संबंध है । राज जात यात्रा  नौटी गांवों से हेमकुंड तक की 280 Km की 18 दिनों की  पैदल यात्रा है। रूप कुण्ड से हेमकुंड की दूरी 7.7 Km हैहोमकुंड झील, नंदा घुंटी चोटी के ठीक नीचे है ।

नंदा देवी कैलाशबासी शिव की पत्नी हैं और नौटी गांवों की बेटी मानी जाती हैं । बेटी को माइके के लोग बिदाई करते हैं और इस बिदाई समारोह का नाम है - राजजात यात्रा । 

इस यात्रा का नेतृत्व एक चार सींगों वाली भेड़ करती है । भेड़ के ऊपर एक विशेष प्रकार की थैली में  नंदा देवी के श्रृंगार की सामग्री , आभूषण तथा अन्य नाना प्रकारणके gift भी रखे जाते हैं । राजजात यात्रा के आखिरी पड़ाव होमकुंड में भेड़ को कैलाश जाने के लिए छोड़ दिया जाता है इस उम्मीद के साथ कि यह भेड़ नंदा जी के पास सारी सामग्री पहुंचा देगी और लोग वहां से लौट आते हैं ।

रूपकुंड कैसे पहुंचें ? 

रूपकुंड पहुंचने के लिए Lohajung पहुंचना पड़ता है जो हरिद्वार से लगभग 270.6 Km है । Lohajung , Didna , Ali Bugyal , Pathar Nachauni , Bjaguwabasa होते हुए रूपकुंड की दूरी 35.4 Km है चढ़ाई लगभग 77 m / Km की है । रूपकुंड से वापिसी की यात्रा रूपकुंड - Bhagwabasa - Pathar Nachauni - Badani Bugyal - Gharoli Patal से Wan तक 22.4 Km पैदल यात्रा है और Wan से kuling होते हुए Lohajung की 19.3 Km की यात्रा रोड वाहन से की जाती है।

 

।।। हर हर महादेव ।।।


Monday, December 9, 2024

पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र - 22


पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र : 22  (पुरुष )


चितेरप्रतिसंक्रमायास्तदाकारापत्तौ स्वबुद्धिसंवेदनम् 


चित्ते: + अप्रति + संक्रमाया: + तद् आकार + 

आपत्तौ +  स्व + बुद्धि + संवेदनम् 

<> चितेः अर्थात चेतन पुरुष 

# अप्रतिसंक्रमाया > अ + प्रति + संक्रमाया अर्थात निष्क्रिय 

# तदाकार > तत् + आकार अर्थात जिस आकार के संपर्क में आना उसी के आकार का हो जाना ।

# स्व बुद्धि संवेदनम् अर्थात जब चित्त किसी और के आकार में आते ही उसे अपनी बुद्धि का आभास होने लगता है ( चित्त बुद्धि , अहंकार और मन के संयोग को कहते हैं ) ।

सूत्र - 22 का भावार्थ 

 मूलतः पुरुष निष्क्रिय है लेकिन प्रकृति से संयोग के साथ सक्रिय हो उठता है और उसे  बुद्धि की संवेदनाओं का आभास होने लगता है । पुरुष , प्रकृति जनित चित्त माध्यम से संसार को देखता और समझता है ।

सूत्र भावार्थ को विस्तार से समझते हैं ….

शुद्ध चेतन पुरुष मूलतः निष्क्रिय है क्योंकि उसे सक्रिय होने के लिए तंत्र चाहिए जो उसके पास नहीं है , वह तो शुद्ध चेतन निर्गुणी तत्त्व और मूल प्रकृति तीन गुणों की साम्यावस्था को कहते हैं । जब निष्क्रिय पुरुष , निष्क्रिय , प्रसवधर्मी ,जड़ एवं त्रिगुणी प्रकृति से जुड़ता है तब मूल प्रकृति के तीन गुणों की साम्यावस्था विकृत हो उठती है जिसके फल स्वरूप  त्रिगुणी बुद्धि की निष्पति होती हैबुद्धि से अहंकार , अहंकार से 11 इंद्रियों , पांच तन्मात्र और तन्मात्रो से पांच महाभूतों की निष्पति होती है

 ये प्रकृति के कार्य रूप  त्रिगुणी 23 जड़ तत्त्व चित्त केंद्रित शुद्ध चेतन पुरुष के तंत्र हैं जो उसे त्रिगुणी विषयों के भोगने एवं भोगने के बाद वैराग्य में पहुंचने में सहयोग करते हैं। 

पुरुष प्रकृति को देखने एवं समझने के लिए उससे जुड़ता है और जब उसे ठीक तरह से देख और समझ लेता है तब इस अनुभव से उसे अपने मूल स्वरूप में पुनः लौटने में मदद मिलती है। 

अभी तक प्रकृति अज्ञान , धर्म , अधर्म , वैराग्य ,अवैराग्य (राग ), ऐश्वर्य और अनैश्वर्य - इन 07 भावों से बधी रहती है लेकिन जब उसे यह आभास होने लगता है कि पुरुष उसे देख लिया है तब उसे अपने मूल स्वरूप का ज्ञान हो जाता है और पुरुष की भांति वह भी अपने मूल स्वरूप में लौट आती है । 

प्रकृति का मूल स्वरूप तीन गुणों की साम्यावस्था होती है । इस प्रकार प्रकृति के विकृत होने के फलस्वरूप उत्पन्न 23 तत्त्वों ( बुद्धि , अहंकार , 11 इंद्रियां, 5 तन्मात्र , 5 महाभूत ) का अपनें - अपनें कारणों में लय हो जाता है जिसे प्रकृति लय की अवस्था कहते हैं और पुरुष का स्वबोध होना अस्मिता लय कहलाता है ।

यहां इस संदर्भ में देखें पतंजलि समाधि पाद सूत्र - 19

भव प्रत्ययो विदेहप्रकृतिलयानाम्

ऐसे योगी जिनको पिछले जन्म में असंप्रज्ञात समाधि की सिद्धि मिली हुई होती है , उनको वर्तमान का जीवन प्रकृति लय एवं विदेह की अवस्था प्राप्ति के लिए मिला हुआ होता है अर्थात ऐसे योगी धर्ममेघ समाधि सिद्धि प्राप्त कर कैवल्य की प्राप्ति करते हैं । पुरुषार्थ शून्य एवं तीन गुणों की प्रतिप्रसव अवस्था को कैवल्य कहते हैं ।

।। ॐ ।।

Wednesday, December 4, 2024

पतंजलि कैवल्य पाद चित्त और भ्रमित स्मृति ( संकर स्मृति )


कैवल्य पाद सूत्र - 21 > चित्त और संकर स्मृति 

चित्त अंतर दृश्ये बुद्धिबुद्धेरतिप्रसंगः स्मृति संकर: च 

चित्त अंतर दृश्य , बुद्धि बुद्धे: , अतिप्रसंगः , स्मृति शंकर: च 

यहां इस सूत्र में पहला शब्द चित्त है और चौथा एवं पांचवां शब्द बुद्धि है जो चित्त के लिए प्रयोग किया जा रहा है , इसे ध्यान में रखना होगा ।

 चित्त हर पल बदल रहा है और पिछला चित्त वर्तमान चित्त का दृश्य बन जाता है , ऐसी स्थिति में वर्तमान चित्त शंकर स्मृति वाला होना चाहिए क्योंकि एक चित्त दूसरे चित्त का दृश्य है , पर ऐसा होता नहीं , क्यों ? क्योंकि चित्त एक समय में एक ही विषय को धारण करता है , यहां इस संदर्भ में देखें निम्न पिछले सूत्र - 20 को …

एकसमये च उभयानवधारणम् 

# एक समय में चित्त एक विषय को ही धारण करता है ।

अब सूत्र : 21 के शब्दार्थ को भी देख लेते हैं …

 चित्त अंतर दृश्ये का अर्थ है - एक चित्त का दूसरे चित्त द्वारा देखा जाना ।

बुद्धिबुद्धेरतिप्रसंगः बुद्धि , बुद्धे:अति प्रसंग: इस प्रकार  

यदि एक चित्त दूसरे चित्तका दृश्य है तो वह दूसरा चित्त अन्य चित्तका भी दृश्य होगा और यह क्रम यूंही चलता रहेगा

 और 

स्मृति संकर: च अर्थात ऐसी स्थिति में चित्त की स्मृति संकर हो जाएगी पर ऐसा होता नहीं !

 यहां पहले स्मृति संकर के अर्थ को समझते है …

हर पल बदल रहे चित्त के कारण स्मृतियाँ भी बदल रही हैं । जब सारी स्मृतियां एक साथ उपस्थित होंगी तक चित्त स्मृतियों को स्पष्ट रूप से न देख कर भ्रम की स्थिति में देखने लगेगा जिसे स्मृति संकर कहते हैं पर ऐसा होता नहीं क्योंकि चित्त एक कालांश में एक ही स्मृति से जुड़ सकता है जैसा ऊपर  कैवल्य पाद सूत्र - 20 में बताया जा चुका है ।

Tuesday, November 26, 2024

पतंजलि कैवल्यपाद सूत्र 18,19,20 पुरुष एवं प्रकृति संबंध


सूत्र : 18 , 19 , 20 चित्त और पुरुष संबंध 

कैवल्य पाद सूत्र 18 , 19 और 20 का सार 

त्रिगुणी जड़ प्रकृति और निर्गुण शुद्ध चेतन पुरुष के संयोग से प्रसवधर्मी जड़ प्रकृति विकृत होती है जिसके फलस्वरूप बुद्धि की उत्पत्ति होती है । बुद्धि से अहंकार , अहंकार से 11 इंद्रियों एवं 5 तन्मात्रो की निष्पति होती है और तन्मात्रों से उनके अपनें - अपनें महाभूतों की उत्पत्ति होती है । 

ऊपर व्यक्त प्रकृति से उत्पन्न 23 तत्त्वों  में प्रथम तीन को अंतःकरण या चित्त कहते हैं । इस प्रकार त्रिगुणी , प्रसवधर्मी एवं जड़ प्रकृति के 23 तत्त्व भी त्रिगुणी एवं जड़ होते हैं और जड़, अग्यानी होते हैं जिन्हें स्वयं का भी पता नहीं होता , जबकि पुरुष शुद्ध चेतन है।

# चित्त बिना पुरुष ऊर्जा , निष्क्रिय है लेकिन पुरुष ऊर्जा के प्रभाव में ,विषय धारण करता है ।

# चित्त एक समय में एक से अधिक विषयों पर चिंतन नहीं कर सकता । 

अब सूत्रों को देखते हैं ….

पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र : 18  

सदा ज्ञाताश्चित्तयस्तत्प्रभो: पुरुषस्यपरिणामित्वात् 

# चित्त परिणामी ( परिवर्तनीय ) होता है ।

# पुरुष अपरिणामी ( अपरिवर्तनीय ) होता है ।

#  चित्त वृत्तियों का स्वामी , पुरुष है ।

# पुरुष को सदैव चित्त वृत्तियों का ज्ञान रहता है ।


पतंजलि कैवल्यपाद सूत्र - 19 

न तत् स्वाभासम् दृष्यत्वात् 

# चित्त न स्वयं को जानता है और न दूसरों को ।


पतंजलि कैवल्यपाद सूत्र - 20 

एकसमये च उभयानवधारणम् 

# एक समय में चित्त एक विषय को ही पकड़ता है । 


~~ ॐ ~~ 



Thursday, November 21, 2024

पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र 15,16,17 का सार


पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र : 15 , 16 ,17

महर्षि पतंजलि अपनें कैवल्य पाद सूत्र - 15 में कह रहे हैं , 

एक वस्तु चित्त भेद के कारण अलग - अलग दिखती है ” । अब इस सूत्र किन्समझते हैं - एक सेव को चार भागों में विभक्त करके चार लोगों खाने को दें और इस सेव के संबंध में उनकी राय जानने की कोशिश करें। सेव एक है लेकिन उसके बारे में लोगों के विचार एक से अधिक हो सकते हैं ; 

ऐसा क्यों ? क्योंकि उनके चित्त अलग - अलग हैं अतः चित्त भेद के कारण एक वस्तु अलग - अलग दिख रही होती है। 

पतंजलि के इस सूत्र ( सूत्र - 15 ) का सार यह निकला कि वस्तु चित्त के अनुसार दिखती है

आगे कैवल्य पाद सूत्र - 16 में महर्षि पतंजलि स्वयं से प्रश्न पूछ रहे है , “ वस्तु किसी एक चित्त के अधीन नहीं “

 यह सूत्र सूत्र - 15 के ठीक विपरीत दिख रहा है क्योंकि

 सूत्र - 15 में कहते हैं , वस्तु चित्त के अनुसार दिखती है और यहां सूत्र - 16 में कह रहे हैं , वस्तु किसी एक चित्त के अधीन नहीं । अब सूत्र - 16 को ऐसे समझते हैं - कल्पना करें कि एक कुर्सी सामने पड़ी है जिसे हम देख रहे हैं अर्थात जबतक कुर्सी को देखने वाली हमारी आँखें सक्रिय हैं तबतक वह कुर्सी है लेकिन जब हमारी आँखें सक्रिय नहीं होगी तब क्या वह कुर्सी वहां नहीं होगी ? यह प्रश्न महर्षि पतंजलि स्वयं से पूछ रहे हैं। वह कुर्सी तो वहां होगी ही चाहे उसका प्रमाण हमारी आँखें वहां हो या न हो । इस तर्क के आधार पर यह सिद्ध होता है कि वस्तु किसी एक चित्त के अधीन नहीं।

अब आगे कैवल्य पाद सूत्र - 17 में महर्षि संसार की वस्तुओं और चित्त के संबंध को स्पष्ट कर रहे हैं ….

यहां आगे बढ़ने से पहले यह समझ लेते हैं कि चित्त क्या है ? चित्त शक्ति ( पुरुष ) क्या है ? और वस्तु , चित्त और पुरुष का आपसी संबंध क्या है ? 

जड़ त्रिगुणी प्रकृति के तीन त्रिगुणी तत्त्व - बुद्धि , अहंकार और मन के समूह को चित्त कहते हैं । चेतन एवं निर्गुणी पुरुष (चित्त शक्ति ) चित्त केंद्रित रहता है अर्थात चित्त त्रिगुणी प्रकृति और निर्गुणी पुरुष का संयोग भूमि है । निर्गुणी एवं चेतन पुरुष चित्त केंद्रित होते ही त्रिगुणी बन जाता है और संसार को चित्त के माध्यम से देखता एवं समझता है । ऐसा समझें कि ज्ञानी पुरुष अंधा है और चित जड़ है ; वह स्वयं को भी नहीं जानता फिर और किसी को क्या जानेगा ! लेकिन उसके पास देखने की इंद्रियां हैं , वह देख सकता है । चित्त जिस वस्तु को देखता है , उस वस्तु का प्रतिबिम्ब उस पर बनता है और उस प्रतिबिम्ब के माध्यम से चित्त केंद्रित पुरुष उस वस्तु को देखता और समझता है । चित्त केंद्रित पुरुष भोक्ता है और उसे इस कार्य में चित्त सहयोग करता रहता है, ऐसा भिनकह सकते हैं कि चित्त पुरुष के टूल्स की भांति है जिसेनपुरुष अपनें अनुभव के लिए प्रयोग करता रहता है । प्रकृति से उत्पन्न 23 तत्त्व ( बुद्धि , अहंकार , 11 इंद्रियां , 5 तन्मात्र और 5 महाभूत ) पुरुष के टूल्स हैं जिनका प्रयोग करके पुरुष संसार को भोग एवं समझ कर कैवल्य प्राप्त करता है।

अब ऊपर व्यक्त कैवल्य पाद के तीन सूत्रों को देखें 

वस्तु साम्ये चित्त भेदात्  तयोः विभक्तः पंथा: 

कैवल्यपाद - 15

न च एक चित्त तंत्रम् वस्तु  तत् प्रमाणकम् तदा किं स्यात् 

कैवल्यपाद - 16

तदुपरागा पेक्षित्वात्  चित्तस्य वस्तु ज्ञाताज्ञातम् 

कैवल्यपाद - 17

~~ॐ~~