Sunday, March 24, 2024

पतंजलि योग सूत्र में कैवल्य पाद से परिचय

पतंजलि योग सूत्र दर्शन में कैवल्य पाद का सार

पतंजलि योग सूत्र चार भागों में विभक्त हैं जिन्हें पाद कहते हैं। पहला पाद समाधिपाद है , दूसरा साधन पाद है , तीसरा विभूति पाद है और चौथा कैवल्य पाद है । समाधिपाद समाधि जिज्ञासा उत्पन्न करने वाला पाद है । दूसरा साधन पाद मूलतः अष्टांगयोग से संबंधित है जिसमें इसके 08 अंगों से परिचय कराया गया है । अष्टांगयोग का आखिरी अंग समाधि है। तीसरे  विभूति पाद में संयम सिद्धि से 45 प्रकार की सिद्धियों को प्राप्त करने के संबंध में बताया गया है । यहां ध्यान रहे किट धारणा , ध्यान और समाधि जब एक साथ एक ही समय घटित होने को संयम कहते हैं । यहां यह भी बताया गया कि जो सिद्धियों के आकर्षण में उलझ जाता है उसकी योग साधना खंडित हो जाती है और जो सिद्धियों को योग साधना के मार्ग के अवरोध रूप में देखता हुआ उनसे प्रभावित हुए बिना अपनिन्योग साधना में लीन रहता है , वह योगी  कैवल्य यात्रा का यात्री होता है । पतंजलि योग सूत्र में चौथा पाद कैवल्य पाद का है जो समाधि से आगे की यात्रा पर प्रकाश डालता है। इस पाद में मूलतः धर्ममेघ समाधि की सिद्धि तथा कैवल्य के स्वरूप की व्याख्या की गई है । कैवल्य पाद के 34 सूत्रों को समझते समय यह ध्यान में रखना होगा कि इन सूत्रों का रुख कैवल्य की ओर है अतः इनकी भाषा को समझना अपनें आप में बुद्धि योगाभ्यास है । हम जो भी समझते हैं वह मन , अहंकार एवं बुद्धि आधारित होता है और ये तीनों तत्त्व त्रिगुणी तत्त्व है अतः सगुण तत्त्वों की मदद से निर्गुणी तत्त्व को समझना बहुत कठिन कार्य है । 

 कैवल्य सिद्धि में तीन गुणों का प्रतिप्रसव हो जाता हैं और पुरुषार्थ शून्य हो जाता है । अब आप स्वत: समझने की कोशिश करें कि कैवल्य सिद्धि के बाद साधक की क्या स्थिति होती होगी और इस सगुणी संसार में कैसे रहता होगा ! 

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