श्रीमद्भागवत पुराण
आधारित गंगा रहस्य भाग - 02
गंगा स्वयं नहीं आयी, लायी गई
( भागवत स्कंध : 5.16 , 5.17 , 9.9 )
ऋग्वेद की परम पवित्र नदी सरस्वती है । ऋग्वेद में गंगा शब्द 01 बार और यमुना शब्द 03 बार आया है इस प्रकार ऋगवेदीय काल में गंगा का आज जैसा महत्व नहीं रहा होगा ।
राजा बलिकी यज्ञशाला में यज्ञ मूर्ति प्रभु श्री विष्णु बामन रूप में जब तीन कदम भूमि मापने के लिए अपना पहला बाया पैर ऊपर उठाया तब उनके पैर का अंगूठा ब्रह्मांड की आखिरी परत को छेद दिया । इस छिद्र से ब्रह्माण्ड सीमा के उस पार से एक जल धारा ब्रह्मांड में प्रवेश की और प्रभु श्री के चरण को स्पर्श करती हुई ध्रुवलोक में पहुंची । प्रभु श्री के चरण स्पर्श करके गंगा भगवत्पदी कहलाने लगी ।
➡ ध्रुवलोक जिसे विष्णुपद भी कहते हैं से गंगा अन्य 5 लोकों से होती हुई हजारों युगों बाद पृथ्वी लोक में पहुंचती हैं । जम्बू द्वीप 07 द्वीपों में केंद्र द्वीप है । जंबू द्वीप के केंद्र में इलावृत्त वर्ष स्थित है जो शिव क्षेत्र है । इलावृत वर्ष के केंद्र में मेरु पर्वत स्थित है जिसके उच्च शिखर पर स्थित सुवर्णमयी ब्रह्माकी पूरी हैं । गंगा ब्रह्मा की सुवर्ण पूरी में उतरती हैं , यहां देखें निम्न दो ग्राफिक्स को ⤵️
मेरु पर्वत के संबंध में विस्तार से देखने के लिए भागवत
स्कंध : 3 .21 - 3 33 + 4.19 + 5.16 + 12.8 - 12.9 को देख सकते हैं ।
मेरु के उच्च शिखर पर स्थित ब्रह्मास की सुवर्ण पूरी में उतरते ही गंगा निम्न 04 भागों में विभक्त हो जाती हैं ।
1 - उत्तर दिशामें बहनें वाली गंगा को भद्रा कहते हैं जो मेरु शिखर से चल कर क्रमशः नील पर्वत , रम्यक वर्ष , श्वेत पर्वत , हिरण्य वर्ष , श्रृंगवान पर्वत और कुरु वर्ष से होती हुई उत्तरी सागर से मिलती हैं । भद्रा का विस्तृत भूगोल ज्ञात नही है ।
यहां साइबेरिया का उत्तरी सागर का तटीय क्षेत्र कुरु वर्ष के रूप में बताया जा रहा है सिर दूसरा कुरुक्षेत्र हरियाणा में दिल्ली - चंडीगढ़ मार्ग पर स्थित हैं कुरुक्षेत्र जहां महाभारत युद्ध हुआ था । इन दो
कुरुक्षेत्रों पर शोध कार्य किया जाना चाहिए ।
2 - दक्षिण दिशामें बहने वाली गंगा धारा अलकनंदा कहलाती है जो क्रमशः निषध पर्वत , हरि वर्ष , हेमकूट पर्वत , किंपुरुष वर्ष से होती हुई हिमालय पर्वत को पार करके भारत वर्ष को पवित्र करती हुई सागर से जा मिलती हैं । यहां हिमालय , भारत वर्ष , अलकनंदा और जिस सागर में अलकनंदा लीन होती हैं उस सागर के संबंध पर भी शोध करना चाहिए । जिसे हम सब आज गंगा कह रहे हैं वह यहां अलकनंदा है ।
3 - पूर्व दिशा में गंगा की बहने वाली धारा सीता क्रमशः गंधमादन पर्वत को पार करके भद्राश्व वर्ष को पवित्र करती हुई सागर से जा मिलती हैं। इस का कोई पता नहीं मिलता ।
4 - पश्चिम दिशा में गंगा की बहने वाली धारा चक्षु क्रमशः माल्यावान पर्वत को पार करके केतुमान वर्ष को पवित्र करती हुई सागर से जा मिलती हैं , इस के संबंध में इतना ही ज्ञात है ।
ऊपर व्यक्त गंगा की 04 धाराओं को आप यहां जंबू द्वीप के भूगोल समनाधित ग्राफिक में देख सकते हैं ⤵️
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