श्रीमद्भागवत पुराण आधारित गंगा रहस्य भाग - 03
(;भागवत : 3.10 , 3.11, 5.24 28 , 11.24 )
गंगा रहस्य संबंधित पिछले दो भागों में ध्रुवलोक , जम्बू द्वीप , ब्रह्मा की सुवर्ण पूरी , इलावृत वर्ष और मेरु पर्वत आदि से परिचय हुआ लेकिन इनकी स्थितियों के बारे में जानने की जिज्ञासा बनी हुई है अतः इस अंक में इनके संबंध में चर्चा की जा रही है ।पिछले अंक में गंगा की ब्रह्मांड से परे से जंबू द्वीप में मेरु पर्वत के उच्च शिखर पर स्थित ब्रह्मा की सुवर्ण पूरी तक की यात्रा को देखा गया । भागवत में ब्रह्मांड से परे के आयाम का तो कोई जानकारी उपलब्ध नहीं लेकिन ध्रुव लोक के संबंध में उपलब्ध जानकारी के आधार ध्रुवलोक को समझते हैं …
14 लोकों में ध्रुव लोक की स्थिति ⤵️
नीचे ग्राफिक में 14 लोको को स्पष्ट किया गया है जिनमे पृथ्वी सहित पृथ्वी के ऊपर 07 लोक हैं और 07 पृथ्गी के नीचे के लोक हैं । इन 14 लोकों को भुवन भी कहते हैं ।
ॐ भूर्भुवः स्व : गायत्री छंद का पहला पद है । यह यजुर्वेदीय मंत्र है और गायत्री के शेष तीन पद ऋग्वेद एवं सामवेद में भी हैं । गायत्री पद में ॐ ईश्वर का संबोधन प्रणव है , भूः पृथ्वी का संबोधन है , भुवः अंतरिक्ष को कहते हैं और स्वः स्वर्गलोक के लिए प्रयोग किया गया है । पृथ्वी सहित पृथ्वी के ऊपर के 07 लोकों में 03 लोकों से आप का परिचय हो गया शेष 04 लोक और भी हैं जिन्हें ऊपर ग्राफिक में देख सकते हैं । ऊपर ग्राफिक में 14 लोकों में रहने वालों के संबंध में भी भागवत के आधार पर संक्षेप में दिया गया है ।
पृथ्वी सहित ऊपर के 07 लोकों में पृथ्वी ( भू: ) को मृत्यु लोक भी कहते हैं और यह कर्म भूमि है जहां मनुष्य सहित नाना प्रकार की अन्य सृष्टियां हैं और अपनें - अपनें कर्मों के आधारित अपना - अपना जीवन जी रहे हैं । पृथ्वी के ऊपर का लोक ( भुव: ) अंतरिक्ष लोक कहलाता है को भूत - प्रेत लोक है और इस लोक के ऊपर (स्वः) , स्वर्ग लोक में देवता रहते हैं । महर्लोक ( मह:) में अदृश्य रूप में साधक लोग निवास करते हैं तथा तप लोक में अदृश्य रूप में सिद्ध निवास करते हैं । ब्रह्मलोक ( सत् लोक ) में निष्काम कर्म करने वाले कर्मयोगी पहुंचते हैं । ध्रुव लोक , ध्रुव जी का लोक है ।
अब देखना होगा कि ध्रुव जी कौन हैं ?
ध्रुव जी कौन हैं ? [भागवत स्कंध - 4 आधारित ]
ध्रुव जी पहले मनु के दूसरे पुत्र उत्तान पाद के पुत्र हैं जो 36000 वर्ष राज्य करके बद्रीनाथ में निर्विकल्प समाधि माध्यम से देह त्याग कर ध्रुवलाेक के स्वामी बने हैं । 5 वर्षीय ध्रुव मथुरा में यमुना के तट पर नारद द्वारा बताए गए पूरक , रेचक और कुंभक प्रणायामों का अभ्यास 5 दिनों तक की और सिद्धि प्राप्ति पर श्री हरि का दर्शन प्राप्त कर ध्रुव पद प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त किए । श्री हरि ध्रुव जी को वापिस घर लौट जाने को कहा । प्रभु आगे कहते हैं , ध्रुव ! तुम जीवन के अंत में बदरी बन में जाकर तप करना और वहीं से तुम अपनें ध्रुव लोक चले जाओगे (भागवत स्कंध - 4 ) ।
अब अगले भाग में जम्मू द्वीप को समझने के लिए 07 द्वीपों एवं 07 सागरो के भूगोल पर चर्चा की जाएगी ।
~~ ॐ ~~
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