श्री कृष्ण अवतार
प्रभु श्री कृष्ण - जन्म के संबंध में श्रीमद्भागवत पुराण में निम्न दो संदर्भ हैं ।
1⃣ संदर्भ ..
कदाचिद् द्वापरस्यान्ते रहोलीलाधिकारिणः ।
समवेता यदात्र स्युर्यथेदानिम् तदा हरि : //
श्रीमद्भागवत पुराण खण्ड : 2 , माहात्म्य श्लोक - 1.29
2️⃣ संदर्भ ..
अष्टाविंशे द्वापरांते स्वयमेव यदा हरि : /
उत्सारयेन्निजाम् मायाम् तत्प्रकाशो भवेत्तदा //
श्रीमद्भागवत पुराण खण्ड : 2 ,माहात्म्य श्लोक - 3.10
ऊपर दिए गए भागवत के 02 श्लोकों का संबंध यदुकुल संहार से है अतः यदुकुल संहार संबंधित निम्नसंदरभों को भी आप देख सकते हैं…
भागवत 1.15.22- 51 > 30 श्लोक
भागवत 11.1 +11.6 > 74 श्लोक
भागवत 11.30 + 11.31 > 78 श्लोक (योग - 182 श्लोक )
ऊपर दिए गए संदर्भ 1 और संदर्भ 2 श्लोकों के भावार्थ को समझने से पूर्व इनके पृष्टिभूमि को जानना आवश्यक है।
अरब सागर तट पर स्थित तीर्थ प्रभास क्षेत्र में जहां सरस्वती नदी पश्चिम मुखी हो कर सागर से मिलती थी , वहां यदुकुल के लोग आपस में लड़ रहे थे और यदुकुल का संहार हो रहा था । इस भयावह समय में प्रभु श्री कृष्ण सरस्वती तट पर एक पीपल वृक्ष के नीचे बैठे हुए गंगा द्वार से आए मैत्रेय ऋषि की उपस्थिति में उद्धव को तत्त्व ज्ञान दे रहे थे। दोपहर में लड़ाई शुरू हुई और सूर्यास्त होते - होते यदुकुल का अंत भी हो गया था । इस समय अर्जुन द्वारका में ही रह रहे थे । प्रभु अपनें सारथी दारूक के माध्यम से अर्जुन को संदेश भेजवाले थे कि आज से ठीक तीसरे दिन द्वारका सागर में लीन हो जाएगा अतः तुम वहां रह रहे लोगों को लेकर इंद्रप्रस्थ चले जाओ और प्रभु स्वयं अपनें गरुण रथ से स्वधाम चले गए ।
यदुकुल संहार के बाद द्वारका में प्रभु श्री कृष्ण की 16108 रानियों में से 16000 रानियां और एक प्रपौत्र श्री बज्र नाभ बचे थे । अर्जुन इन को ले कर इंद्रप्रस्थ आ गए थे । हस्तिनापुर सम्राट परीक्षित बज्र नाभ को मथुरा मंडल का सेनाधिपति नियुक्त कर दिए थे और बज्र नाभ अपने 16000 दादियों को ले कर मथुरा चलें गए थे । इस समय तक ब्रज के कृष्ण लीला संबंधित स्थल धरती में समा चुके थे और ब्रज पूर्ण रूपेण निर्जन हो चुका था अर्थात ब्रज श्री कृष्ण लीला स्थलियों और प्रजा से रिक्त हो चुका था ।
कुछ दिन बाद सम्राट परीक्षित बज्र नाभ से मिलने मथुरा पधारे । बज्र नाभ बोलें, आप का धन्यवाद कि आप मुझे मथुरा मंडल का सेनाधिपति नियुक्त किए लेकिन इस निर्जन क्षेत्र में मैं क्या करूंगा , यहां तो कोई नहीं है ! मैं यहां आने को के कर प्रसन्न था , चाहता था कि अपनें दादा जी की लीला स्थलियों को देखूं , लेकिन यहां तो वे भी नहीं दिखते !
सम्राट परीक्षित यदुकुल के पुरोहित शांडिल्य ऋषि को आमंत्रित किए और उनसे अनुरोध किए कि वे मथुरा , वृंदावन , नंद गांव आदि सभीं कृष्ण से संबंधित स्थानों के लुप्त हो जाने तथा इन स्थानों का निर्जन हो जाने के रहस्य से पर्दा उठाएं ।
ऋषि शांडिल्य जो दृश्य प्रस्तुत करते हैं उसी के संदर्भ में प्रारंभ में दिए गए दो श्लोकों में पहला श्लोक है । दूसरा श्लोक गोवर्धन के निकट कुसुम सरोवर पर उद्धव जी द्वारा हस्तिनापुर नरेश परीक्षित , बज्रनाभ ( प्रभु श्री कृष्ण के प्रपौत्र ) और श्री कृष्ण की 16,000 रानियों को कृष्ण लीला रहस्य को व्यक्त करते समय बोला गया है।
अब प्रारंभिक दो श्लोकों के भावार्थ को समझते हैं ..
संदर्भ सूत्र 01 का भावार्थ
कभीं किसी द्वापर के अंत में जब प्रभु के रहस्य मयी लीला देखनें के अधिकारी ब्रज में एकत्र होते हैं जैसा अभी हुआ है ,उस समय प्रभु श्री कृष्ण अपने अंतरंग एवं परिकरों के साथ ब्रज में अवतार लेते हैं ।
संदर्भ सूत्र 02 का भावार्थ
जब 28 वें द्वापर के अंत में प्रभु श्री हरि स्वयं ही सामने प्रकट हो कर अपनी माया का पर्दा उठा लेते हैं , तब उस समय जीवों को उनका प्रकाश प्राप्त होता है । अब इन दो श्लोकों के संबंध में कुछ और जानकारी लेते हैं …
कभी किसी 28 वें द्वापर के अंत में जब प्रभु श्री कृष्ण की लीला देखने के अधिकारी ब्रज में इकट्ठे होते हैं तब प्रभु श्री कृष्ण अपने परिकरों एवं अंतरंगो के साथ ब्रज में अवतरित होते हैं और अपनी लीलाओं को दिखाते हैं । यहां ध्यान रहे कि
हमेशा नहीं कभी किसी 28 वें द्वापर युग के अंत समय में प्रभु श्री कृष्ण अवतरित होते हैं । श्रीमद्भागवत पुराण 3.11 , 8.1 और 12.4 में समय की गणित दी गई है । सतयुग ( 1, 728, 000 ) , त्रेतायुग ( 1,296,000 ) , द्वापर ( 864,000 ) और कलियुग ( 432,000 ) चार युगों की अवधियों का योग 4,320,000 वर्ष है । ब्रह्मा का एक दिन जिसे कल्प कहते हैं वह 1000 ( चार युगों की अवधि ) का होता है जो 4,320,000,000 वर्ष अर्थात एक कल्प = 4.32 billion years का होता है और इस प्रकार 28 वें द्वापर का अंत 120.96 million years पर आता है अर्थात यदि दुबारा कभी श्री कृष्ण का जन्म हुआ तो वह समय 120.96 × x वर्ष बाद ही होगा । यहां x = 28 वे द्वापर की संख्या है । इसे ऐसे समझते हैं ; अभी पिछले द्वापर में प्रभु श्री कृष्ण का अवतरण हुआ था । यदि इसके आगे तीसरे द्वापर के अंत में यदि पुनः प्रभु श्री कृष्ण अवतरित होते हैं तो वह समय होगा 120.96 मिलियन x 03 वर्ष का होगा । जब भी श्री कृष्ण अवतरित होते हैं अब वही मथुरा , वृंदावन , वसुदेव , देवकी , यशोदा और नंद , राधा , गोप , गोपियां आदि होते हैं । वही लोग और वही श्रीमद्भागवत की कहानी पुनः घटित होती रहती है।
प्रभु श्री कृष्ण का पिछला अवतरण न पहला था न आखिरी था , यह समयांतर पर पुनः - पुनः होता रहता है।
~~ ॐ ~~
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