Monday, October 7, 2013

ध्यान की आँखे

● ध्यान की आँखे ●
1- मनुष्य सोच कर और पशु सूंघ कर निर्णय लेते
हैं ।
2- स्थावरों में भोजन संचार नीचे से ऊपरकी ओर होता है ।
3- मनुष्यमें भोजन संचार ऊपरसे नीचे की ओर होता है ।
4- प्रकृति में जो सूचनाएं हैं वे सभी मनुष्य आश्रित हैं और मनुष्य प्रकृति आश्रित है। लेकिन मनुष्य इस बातको भूल रहा है ।
5- आप मुझे नीचा कर सकते हैं लेकिन कोई है जरुर जिसकी नज़र आप पर है , वह एक दिन आपको भी नीचे कर देगा ।
6- भाग लो तबतक जबतक श्वासे चल रही हैं , लेकिन इतनी बात अपनी सोच में रखना कि मिलेगा यहाँ वही जो प्रकृति देना चाहती है । हम दौड़ रहे हैं कुछ और पानें हेतु लेकिन इस लालच की दौड़ में कुछ हर पल खो भी रहे हैं जिसके प्रति हम बेहोशी में हैं। इतना तो सोचो ,जहांसे हम आये हैं ( प्रभु ) वहाँ किस चीज की कमी थी ? जब वहाँ सब है फिर यहाँ आयेही क्यों ? इस भिखारी संसार में । यहाँ बार - बार हमें हमारी भ्रमित चाह लाती रहती है , जिसे हम समझना नहीं चाहते और जिस दिन समझ गए , आनें - जानें से मुक्त हो जायेंगे ।
7- संसारमें पूर्णरूपसे डूबे ब्यक्तिकी आँखें सत्य को नहीं पकड़ पाती ।
8 - परम भोग ध्यानका प्रसाद है और इन्द्रिय भोग ध्यान की रुकावट ।
9- काम , कामना , क्रोध , लोभ और अहंकार में से किसी एक की समझ सबकी समझ होती है क्यों की ये तत्त्व राजस गुणके हैं ।
10- आलस्य , लोभ , अधिक निद्रा और मोह में से किसी एक की समझ सबकी समझ है क्योंकि ये तत्त्व तामस गुणके हैं ।
~~~ ॐ~~~

1 comment:

Unknown said...

सुन्दर प्रस्तुति ।

मेरी नई रचना :- सन्नाटा