Tuesday, October 22, 2013

ध्यानकी राह

● देखो और समझो ●
1- जो है उसे क्या ढूढ़ रहे , उसे पहचानो और उसकी पहचान होती है ध्यान से ।
2- ध्यान क्रिया नहीं है , क्रियामें ध्यान मिल सकता है ।
3- मन - बुद्धि तंत्रकी उर्जा जब निर्विकल्प होती है तब जो अनुभूति होती है वह परम सत्य की अनुभूति होती है ।
4- जब संदेह उठना बंद हो जाता है और श्रद्धा
तन - मनसे टपकनें लगती है तब वह ब्यक्ति ध्यान में होता है ।
5- साफ़ मन वाला मृत्युके आइनेंमें प्रभुकी धुधली तस्वीर देखता है ।
6- भाषा , भाव ब्यक्तका माध्यम है ।
7- शब्दसे दृश्य - द्रष्टाको ब्यक्त किया जाता है ।
8- मौतका भय जीवनके रस से दूर रखता है ।
9- वह जो अपनें जीवनको समझता है , प्रभुसे भयभीत न हो कर उनसे मित्रता स्थापित कर
लेता है ।
10- भय माध्यमसे प्रभुसे जुड़ना अति आसान पर प्रभुमें बसना अति कठिन ।
~~~ ॐ ~~~

1 comment:

Unknown said...

बहुत खूब..... ज्ञानवर्धक .....