Saturday, October 19, 2013

परम मार्ग

● साधनाके मूल मन्त्र ● 
 1- भोगतत्वोंके सम्मोहनसे अप्रभावित मन ब्रह्म -जीवात्मा एकत्वकी अनुभूतिके माध्यम से ब्रह्म वित् बनाता है ।
 2- वैदिक कर्म दों प्रकरके हैं : एक प्रवित्ति परक और दूसरा निबृत्ति परक कहलाता है ।प्रवित्तिपरकका केंद्र भोग होता है और निबृत्तिपरकका केंद्र मोक्ष । 
3- माया मोहित ब्यक्ति असुर कहलाता है । 
4- माया मोहितकी पीठ प्रभुकी ओर होती है और आँखें भोग पर टिकी होती हैं । 
5- संकल्प धारी योगी नहीं हो सकता ।
 6- संकल्पका न होना काममुक्त बनाता है । 
7- काममुक्त ब्रह्मवित् होता है ।
 8- ब्रह्मवित्  का बसेरा  प्रभुमें होता है । 
9- ब्रह्मवित् और माया सम्मोहितकी आँखें कभीं एक दुसरे से नहीं मिलती । 
10- दुःख संयोग वियोगः योगः - गीता 
 <> ऊपरके सूत्र मूलतः गीता आधारित हैं <> 
~~~ ॐ ~~~

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