Monday, November 10, 2014

कतरन भाग - 1

● कतरन भाग - 1●
# कबतक सहारेके इन्तजार में बैठे और उसके बारे में सोचते हुए समय को बर्बाद करते रहोगे ? क्या तुम्हें अपनें पर भरोषा नहीं कि अकेले कुछ कर
सको ? उठो और कदम बढाओ आगे , समय की गति को कौन जानता है , कहीं देर न हो जाए ।
# तुम भी उनकी तरह ही हो,एक इंच भी उनसे छोटे नहीं , फिर क्यों अपनें को सिकोड़ते चले जा रहे हो ? उठो , उनको प्रणाम करो ,जिनका तुम इंतज़ार कर रहे हो और अहंकार रहित भाव दशा में अपनें भविष्य निर्माण का पहला कदम भरो ।
# सच्ची लगन से तुम अपना पहला कदम तो उठाओ, दूसरा सही कदम स्वतः उठेगा, तुम संदेह क्यों करते हो , संदेह में सत्य असत्य सा दिखने लगता है ।
# पराश्रित रहना स्वयं को जीते जी कब्र में रखनें जैसा है ,मनुष्य हो ; मात्र मनुष्य एक ऐसा प्रकृति का उपहार है जिसके आश्रित संपूर्ण जड़ -चेतन हैं और यदि वह किसी के आश्रय जीना चाहता है तो वह जियेगा सही लेकिन मुर्दे जैसी जिंदगी उसे
मिलेगी ।परमात्मा के सहारे पर भरोषा मजबूत करो। क्या किसी ब्यक्ति के सहारे के भिखारी बनें बैठे हो ? एक भिखारी दुसरे भिखारी को क्या दे सकता है ? ज़रा गंभीर हो के सोचो तो सही ?
# क्या कभीं इस बात पर सोचते हो कि तुम जिससे सहारा चाह रहे हो , वह स्वयं किसी के सहारे का भिखारी है , तुम इतना तो जानते हो कि तुम्हारे अन्दर परमात्मा रहता है जो सभीं सहारों का सहारा है , फिर क्यों बाएं - दायें देख रहे हो कि कोई मिल जाय , उससे बड़ा और कौन है ?
~~ ॐ ~~

1 comment:

Kailash Sharma said...

बहुत सार्थक और प्रेरक प्रस्तुति...