Wednesday, January 10, 2024

पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र 1 - 6 का सार


पतंजलि कैवल्य पाद

 सूत्र : 1 - 6 का सार 

पतंजलि योग सूत्र दर्शन में सूत्रों की संख्या निम्न प्रकार है⬇️

कैवल्य पाद के प्रारंभिक 06 सूत्रों का सार यहां दिया दिया जा रहा है । सूत्र - 5 में प्रवृत्ति शब्द को  समाधिपाद सूत्र - 35 तथा विभूति पाद सूत्र - 25 के आधार ऑयर स्पष्ट किया गया है ।

जन्म , औषधि , मंत्र , तप और समाधि , सिद्धियां प्राप्त  करने के साधन हैं ( कैवल्य पाद सूत्र - 1 ) । सिद्धि प्राप्त योगी अनेक शरीर धारण करने में सक्षम होता है ( कैवल्यपाद सूत्र - 2 ) । सिद्धि योगी को अनेक शरीर धारण करने में प्रकृति से सहयोग मिलता है

 ( कैवल्यपाद सूत्र - 3 ) । योगी द्वारा धारण किये गए शरीरों के अपनें - अपनें चित्त भी होते हैं जिन्हें निर्माण चित्त कहते हैं और जो अस्मिता के निर्मित होते हैं ( कैवल्यपाद सूत्र - 4 ) । सभीं निर्मित चित्तों की प्रवित्तियाँ अलग - अलग होती हैं अतः उन सब का नियंत्रण कौन करता होगा ? इस प्रश्न के उत्तर में महर्षि पतंजलि कहते हैं कि निर्मित चित्त , मूल चित्त से नियंत्रित होते हैं ( कैवल्य पाद सूत्र - 5 ) । प्रवृत्ति चित्त के झुकाव को कहते हैं ( समाधिपाद सूत्र - 35 , विभूतिपाद सूत्र - 25 । प्रवित्ति सिद्धि प्राप्त योगी परदे के पीछे की वस्तु एवं सुदूर स्थित वस्तु को द्वखने की दृष्टि मिल जाती है । ध्यान से निर्मित चित्त संस्कारमुक्त चित्त होता है । चित्त को कर्माशय भी कहते हैं जहां कर्मों के फल बीज रूप रहते हैं और मनुष्य के दैनिक जीवन को नियंत्रित करते हैं । कर्मों के फल संस्कार का निर्माण करते हैं । असंप्रज्ञात समाधि सिद्धि से संस्कार लय हो जाते हैं ।

~~ ॐ ~~

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