Friday, January 19, 2024

भारतीय दर्शनों में धर्म की एक झलक


भारतीय दर्शनों में धर्म की एक झलक🌷 

तत्त्व

धर्म 

संदर्भ

मनुष्य का धर्म 

मनुष्य के वेद निहित कर्म , धर्म हैं 

भागवत

6.1.40

ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र के कर्म 

मनुष्य 04 वर्णों में विभक्त हैं और चार वर्णों के कर्म अलग - अलग हैं अतः उनके धर्म भी अलग - अलग हुए , क्योंकि वेद कहते हैं , कर्म ही धर्म हैं।

गीता 

18.41 - 

18 .45 में चार वर्णों के कर्म दिए गए हैं 

मनुष्य धर्म के प्रकार 

जाति धर्म , कुल धर्म , स्व धर्म , पर धर्म 

गीता 

1.40 - 1.44

3.35 +18.47

18.41 - 18.45

संसार का धर्म

जन्म - मृत्यु , भूख - प्यास , श्रम , कष्ट ,भय , तृष्णा 

भागवत 

 11.2


चित्त के धर्म

व्युत्थान , निरोध

पतंजलि विभूति पाद 

सूत्र - 9


⚛️ श्रीमद्भागवत पुराण : 1.2 

# धर्म वह जो प्रभु से जोड़े। # धर्म का फल मोक्ष और जीवन का फल  तत्त्व - जिज्ञासा है

⚛️ श्रीमद्भागवत पुराण : 1.3

प्रभु श्री कृष्ण जब स्वधाम जा रहे थे तब उनके संग धर्म और ज्ञान भी यहाँ से स्वधाम चले गए ।

⚛️ श्रीमद्भागवत पुराण  : 1.11.39

अहँकार ईश्वर को अपने धर्म से युक्त मानता है ।

◆  धर्म का शाब्दिक अर्थ है - धारण करने योग्य और कुछ ज्ञानी कहते हैं ,  एकनिष्ठ भाव से प्रभु चिंतन ही धर्म है ।

धर्म वह अनुशासित जीवन क्रम है जिसमें लौकिक उन्नति (अविद्या ) तथा आध्यात्मिक परम गति ( विद्या ) दोनों की प्राप्ति होती है । अविद्या की गहरी परख , विद्या में पहुंचाती है।

पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र : 12 + 13

धर्म त्रिगुणी और समयाधीन हैं लेकिन इनकी सत्ता तीनों कालों में रहती है । धर्मों में  समय के अनुसार बदलाव आता रहता है ।

~~ ॐ ~~

 

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